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वाराणसी में संस्कृति का केंद्र बना गुरुधाम मंदिर, आज दिवस विशेष पर सजेगा उत्तर प्रदेश

वाराणसी में दो जनवरी को श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के नव्य भव्य परिसर के लोकार्पण अवसर पर आयोजित काशी यात्रा के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की ओर से भारतीय सनातन परंपरा विषयक चित्र प्रदर्शनी लगाई गई थी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 10:31 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 10:31 AM (IST)
वाराणसी में संस्कृति का केंद्र बना गुरुधाम मंदिर, आज दिवस विशेष पर सजेगा उत्तर प्रदेश
आध्यात्मिक व पुरातात्विक मंदिर गुरुधाम संस्कृति का केंद्र बन रहा है।

वाराणसी [प्रमोद यादव]। शहर के दक्षिणी छोर पर स्थित आध्यात्मिक व पुरातात्विक मंदिर गुरुधाम संस्कृति का केंद्र बन रहा है। इस 207 साल पुरान मंदिर में बढ़ी सांस्कृतिक गतिविधियां लोगों को आकर्षित कर रही हैं। रहस्य-रोमांच जगाते आठ द्वार वाले योग-तंत्र साधना से जुड़े मंदिर में सोमवार को उत्तर प्रदेश दिवस मनाया जाएगा। सुबह 11.30 बजे से शाम चार बजे तक सजी अभिलेख प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश नजर आएगा तो कई रहस्यों से पर्दा उठाते पत्र चौंकाएंगे। दोपहर में गीत-संगीत के साथ नृत्य के भाव सजेंगे। इस दौरान विद्वतजनों के व्याख्यान में उत्तर प्रदेश और काशी का बखान होगा। क्षेत्रीय अभिलेखागार व संस्कृति विभाग के इस आयोजन में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट सेवा के लिए लोगों को सम्मानित भी किया जाएगा।

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इससे पहले अभी दो जनवरी को यहां श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के नव्य भव्य परिसर के लोकार्पण अवसर पर आयोजित काशी यात्रा के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की ओर से भारतीय सनातन परंपरा विषयक चित्र प्रदर्शनी लगाई गई थी। उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग, संग्रहालय निदेशालय व संस्कृति विभाग के सहयोग से आयोजित समारोह में विद्यालय स्तरीय चित्रकला प्रतियोगिता में विद्यार्थी कलाकारों ने चित्र भी उकेरे थे। इस तरह के आयोजनों की लंबी चौड़ी शृंखला है जो इधर चार वर्षों से समय-समय पर आयोजित की जाती है। क्षेत्रीय पुरातत्व एवं संस्कृति अधिकारी डा. सुभाष चंद्र यादव बताते हैं कि मंदिर प्राचीन समय से संस्कृति संरक्षण का केंद्र रहे हैं। एेसे में योग साधना की भावभूमि पर निर्मित यह अद्भुत मंदिर भला कैसे इससे अलग हो सकता है। यह भारत की धार्मिक व राष्ट्रीय एकता के साथ ध्यान व भक्ति के माध्यम से अपनी अभीष्ट की प्राप्ति का प्रमुख प्रतीक है।

वास्तव में इस अनूठे गुरु मंदिर का निर्माण राजा जयनारायण घोषाल ने 1814 में कराया। इस तरह का मंदिर पश्चिम बंगाल में हंतेश्वरी व दक्षिण भारत में भदलूर है। योग व तंत्र साधना से जुड़े इस देवालय में स्वामी विवेकानंद, माता आनंदमयी, पं. गोपीनाथ कविराज समेत विभूतियां शीश नवा चुकी हैं।

कालांतर में स्वार्थपरता की आंच में यह मंदिर तपा। इसने मंदिर के स्वरूप को भी बहुत क्षति पहुंचाई। वर्ष 1987 में प्रदेश शासन की इस पर नजर पड़ी। इसके पुरातात्विक व आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए संरक्षित घोषित करते हुए 2007 में उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग की क्षेत्रीय इकाई के कब्जे में दे दिया गया। लगभग पांच साल बाद इसकी साज संवार शुरू की गई और लगभग तीन करोड़ रुपये खर्च कर इसकी रंगत बदल दी गई। यह कार्य वर्ष 2016 में पूरा हुआ और इसे आमजन के लिए खोला गया।

गुरु के धाम में समाहित सप्तपुरियां : गुरुधाम मंदिर में अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, काची, अवंतिका व पुरी यानी सप्तपुरियां भी समाहित हैं। तीन मंजिल के इस भवन में भूतल पर गुरु वशिष्ठ- अरुंधती और दूसरे तल पर कभी श्रीकृष्ण राधा रानी के साथ विराजमान हुआ करते थे। तीसरा तल निरंकार का बोध कराता शून्य को समर्पित है। यही नहीं पश्चिमी द्वार से बाहर निकलने पर गन के दोनों किनारे सात-सात छोटे देवालय हैं जो चौदह भुवन की परिकल्पना को साकार करते हैं। आसमान से मंदिर की छवि अष्टकोणीय रथ जैसी दिखती है।


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