वाराणसी : इलाज के लिए खत्म होगी लखनऊ-दिल्ली की दौड़
बनारस में चिकित्सा सेवा और सुविधाओं का दायरा तो बढ़ा तो पूरे पूर्वांचल को इसका लाभ होगा ।
पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी बिहार तक की गरीब-गुरबा आबादी की चिकित्सा के हब बनारस में रेफर से मिलने वाला दर्द साल के आखिर तक बीते दिनों की बात हो जाएगा। केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से निर्माणाधीन और प्रस्तावित आधा दर्जन मेडिकल प्रोजेक्ट इससे निजात दिलाएंगे। इससे इलाज के लिए लखनऊ-दिल्ली समेत मेट्रोसिटीज तक की दौड़ खत्म होगी और गंभीर रोगों का भी इलाज लोग यहां ही पाएंगे।
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बदलाव की यह बयार अब तक धर्म-अध्यात्म, कला-संस्कृति, शिक्षा-साहित्य के लिए पहचानी जाने वाली दुनिया की इस प्राचीनतम नगरी को मल्टी स्पेशलिटी चिकित्सा के शहर का रुतबा दिलाएगी। उम्मीदों की इस किरण को दो साल पहले मिली प्रोजेक्टों की सौगात तो चटख कर ही रही थी अब काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान को मिलने जा रहे एम्स के दर्जे ने और भी रंगत भर दी है।
इस पर मुहर लग जाने के बाद इसे मूर्त रूप दिए जाने की दिशा में कार्य भी शुरू कर दिया गया है। दो साल पहले मल्टी स्पेशिएलिटी और सुपर स्पेशिएलिटी चिकित्सा सेवा वाले आधा दर्जन प्रोजेक्टों का पीएम ने शुभारंभ किया था। इन्हें वर्षांत तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
माना जा रहा है इससे बनारस में चिकित्सा सेवा व सुविधाओं का दायरा तो बढ़ेगा ही पूरी तस्वीर भी बदल जाएगी। इसकी शुरूआत रेलवे के कैंसर हॉस्पिटल का कायाकल्प कर टाटा हॉस्पिटल की मदद से संचालन कर शुरुआत की जा चुकी है। डायलिसिस व पैथालॉजी जांच की सुविधा पहले ही पब्लिक प्राइवेट पाटर्नरशिप की व्यवस्था से फ्री मिल रही है।
दरअसल, बनारस में इलाज के लिए सोनौली से लेकर सोनभद्र और पश्चिमी बिहार तक के लोग आते हैं। शहर के बड़े अस्पतालों के बाद उनकी उम्मीदों का केंद्र सिर्फ और सिर्फ बीएचयू ही रहा है। इसमें भी लंबी कतार, सीमित बेड और संसाधनों की कमी के कारण अंतत: रेफर उनका दर्द बढ़ाता रहा है। ऐसे में यहां लंबे समय से एम्स जैसे बड़े संस्थान की जरूरत महसूस की जाती रही। इसके पीछे बड़ा कारण यह यह कि शहर के बड़े अस्पताल भी गंभीर रोगों की चिकित्सा सुविधा के स्तर पर बदहाल हैं।
देश में ई-हॉस्पिटल की बातें पुरानी होने की ओर हैं लेकिन इस सुविधा से लैस किए जा रहे मंडलीय अस्पताल के साथ ही दो अन्य बड़े अस्पतालों तक में आइसीयू की सुविधा अब तक नहीं है। पं. दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय व लालबहादुर शास्त्री अस्पताल रामनगर में भी करोड़ों रुपये खर्च के बाद अब तक यह व्यवस्था नहीं की जा सकी है। पं. दीन दयाल उपाध्याय राजकीय अस्पताल ट्रामा सेंटर तक डॉक्टरो की कमी से जूझ रहा।
शहर के अस्पताल बेहाल
-बीएचयू को छोड़ दें तो शहर के अस्पतालों में कार्डियोलॉजी, यूरोलॉजी, न्यूरोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, प्लास्टिक सर्जन आदि के डॉक्टर नहीं हैं।
-40 लाख की आबादी के लिए सरकारी तौर पर सिर्फ दो रेडियोलॉजिस्ट और छह पैथालॉजिस्ट हैं।
-जनपद के सभी सरकारी छोटे-बड़े अस्पतालों में महज 350 डाक्टर हैं, इनमें एलोपैथ के साथ आयुष चिकित्सक भी हैं।
-लंबे समय से पद सृजन न होने के चलते आबादी के लिहाज से डाक्टरों की संख्या बेहद कम है।
-सामन्यतया एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए, लिहाजा बनारस को 4000 डॉक्टरों रों दरकार है।
-बीएचयू अस्पताल में मरीजों की अधिक संख्या के चलते संसाधन बौने साबित होते हैं और जांच, परामर्श व इलाज के लिए लंबा इंतजार करना होता है।
-शहर के सरकारी अस्परतालों में मरीजों संग डाक्टार व पैरामेडिकल स्टाफ के व्ययवहार में और सुधार की जरूरत है।
इमरजेंसी पर ज्यादा जोर रेफर पर
बनारस में गंभीर मरीजों व ट्रामा केस को रेफर करने की दिक्कत है । यदि कोई मरीज पीएचसी या सीएचसी पहुंचता है तो उसे तत्कााल जिला या मंडलीय अस्पपताल और इन जगहों से बीएचयू ट्रामा सेंटर या अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। बीएचयू में आइसीयू व इमरजेंसी में बेड की अनुपलब्धता रहती है। ऐसे में गंभीर मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है।
सरकारी दवाओं का रहता है टोटा
सरकार भले ही अस्पतालों में भरपूर दवा और उन्हें खरीदने के भरपूर बजट का दावा करे लेकिन हकीकत जुदा है। मरीजों और तीमारदारों को मजबूरन दवा बाहर से खरीदनी पड़ती है। सरकरी अस्पताल में दवा नदारद है। बीएचयू में सस्ती दरों पर दवाओं के लिए जन औषधि केंद्र खोले गए थे लेकिन वे भी करीब एक वर्ष बंद हो गए।
कायाकल्प ने बदली तस्वीर
केंद्र स्तर पर सरकारी अस्पतालों में शुरू की गई प्रतिस्पर्धात्मोक योजना कायाकल्प ने अस्पतालों की तस्वीर बदल दी है। इसके लिए बड़े सरकारी अस्पतालों में यूपीएचएस सिस्टम के तहत सफाई के लिए एजेंसी लगाई गई है। इससे बड़े अस्पतालों में तो सफाई व्यवस्थाए तो ठीक है लेकिन सीएचसी व पीएचसी व्यासपक प्रयास की जरूरत है।
गंदगी व बदहाली से बढ़ी मुश्किलें
लोग बीमार ही न पड़ें या बीमारों की संख्याई कमतर हों इसके लिए बनारस में व्यापक प्रयास किए जाने की जरूरत है। शहर के नौ मोहल्ले संक्रामक रोगों के मामले संवेदनशील और दस अति संवेदनशील घोषित हैं। लोहता क्षेत्र तीन वर्ष पूर्व डेंगू संक्रामक हो गया थ। शहर में खुले स्थासनों और समुचित संख्या में पार्कों के अभाव है। हालांकि अब सरकार वेलनेस सेंटर के माध्यरम से बीमारियों के जड़ पर ही चोट करने का जतन कर रही है।
निर्माणाधीन प्रोजेक्ट : लक्ष्य वर्षांत
- बीएचयू में पं. मदन मोहन मालवीय टाटा कैंसर हॉस्पिटल : टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई के सहयोग से होगा संचालन।
- शताब्दी सुपर स्पेशिएलिटी काम्प्लेक्स : बीएचयू अस्पताल करेगा संचालन।
- सौ बेड की दो एमसीएच विंग : इनमें एक का बीएचयू में चल रहा निर्माण तो दूसरा महिला अस्पताल में बन रहा। इनका संचालन ट्रिपल पी से किया जाएगा।
- मनोचिकित्सा एक्सीलेंस सेंटर - बीएचयू अस्पताल करेगा संचालन।
- ईएसआइ सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल : राज्य कर्मचारी बीमा निगम की ओर से बनारस स्थित अस्पताल को माडल रूप दिया जा रहा तो सुपर स्पेशिएलिटी विंग भी बनाई जा रही।
- महिला अस्पताल : पं. दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में 23 करोड़ की लागत से 50 बेड का महिला अस्पताल बन रहा।
- वेलनेस सेंटर : काशी विद्यापीठ ब्लाक के मातृशिशु कल्याण केंद्रों को वेलनेस सेंटर में तब्दील करने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए बजट जारी हो चुका है।
- सारनाथ मल्टी स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल : पर्यटकों की सुविधा के लिए सारनाथ में महाबोधि सोसायटी की जमीन पर निर्माण के लिए 7.53 करोड़ स्वीकृत।
- विवेकानंद अस्पताल को उपजिला अस्पताल का दर्जा।
- शिवपुर राजकीय अस्पताल का उच्चीकरण।
मौजूदा अस्पताल
-बीएचयू सरसुंदरलाल अस्पताल - 1900 बेड
-बीएचयू ट्रामा सेंटर : 334 बेड
-मंडलीय अस्पताल : 300 बेड
-राजकीय महिला अस्पताल : 200 बेड
-पं. दीनदयाल अस्पताल : 250 बेड
-एलबीएस हॉस्पिटल रामनगर : 200 बेड
-मानसिक अस्पताल : 300 बेड
-सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र : आठ
-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र : आठ
-मातृशिशु कल्याण केंद्र : 306
-शहरी पीएचसी : 24
-शहरी सीएचसी : तीन