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व्‍यापक स्‍तर पर ट्रायल के बाद ही प्राकृतिक खेती या जीरो बजट खेती को बढ़ावा दे भारत सरकार : प्रो. पंजाब सिंह

प्राकृतिक खेती या जीरो बजट खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई प्लेटफार्म पर प्रतिबद्धता जाहिर की है।

By Edited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 01:42 AM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 08:28 AM (IST)
व्‍यापक स्‍तर पर ट्रायल के बाद ही प्राकृतिक खेती या जीरो बजट खेती को बढ़ावा दे भारत सरकार : प्रो. पंजाब सिंह
व्‍यापक स्‍तर पर ट्रायल के बाद ही प्राकृतिक खेती या जीरो बजट खेती को बढ़ावा दे भारत सरकार : प्रो. पंजाब सिंह

वाराणसी, जेएनएन। प्राकृतिक खेती या जीरो बजट खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई प्लेटफार्म पर प्रतिबद्धता जाहिर की है। इसके लिए भारी-भरकम बजट की भी व्यवस्था शुरू कर दी गई। मगर वैज्ञानिक इसे किसानों के साथ छलावा मानते हैं। इसकी वजह प्राकृतिक खेती का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार का न होना है। कृषि क्षेत्र की मौजूदा स्थिति और भविष्य पर बीएचयू के पूर्व कुलपति व राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (नास) के अध्यक्ष प्रो. पंजाब सिंह से दैनिक जागरण संवाददाता मुहम्मद रईस ने विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है मुख्य अंश..।

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प्राकृतिक खेती का विरोध क्यों।

- अब तक जहां भी इस विधि का उपयोग किया गया, वहां कृषि उत्पादन 30-50 फीसद तक घट गया। हम प्राकृतिक व जैविक से रासायनिक खेती पर आए। उत्पादन भी कई गुना बढ़ा। अब वापस प्राकृतिक खेती से हमारी खाद्यान्न जरूरतें पूरी नहीं हो पाएंगी। फिर भी यदि सरकार इसे लागू करना ही चाहती है तो पहले इसका 4-5 साल ट्रायल हो। उसके बाद निष्कर्षो के आधार पर नीति निर्धारित किया जाए। इन्हीं तमाम मुद्दों पर वार्ता के लिए मैंने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से समय भी मांगा है।

फाइव ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी में कृषि क्षेत्र को कहां देखते हैं।

- पीएम मोदी के फाइव ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लक्ष्य को हासिल करने में कृषि क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण है। 1.3 अरब लोगों की खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती है। इसके लिए संसाधनों का कुशल और प्रभावी प्रयोग जरूरी है जो आवश्यक सुविधाओं और तकनीकों की उपलब्धता से समय की मांग है।

रासायनिक खाद के प्रयोग को लेकर विरोध के स्वर क्यों सुनाई देते हैं।

प्राकृतिक खेती व जैविक खेती के माध्यम से 1960 तक प्रतिवर्ष 60 मिलियन टन उत्पादन हो पाता था जो तत्कालीन जनसंख्या के लिए पर्याप्त नहीं था। मजबूरन हमें बाहर से खाद्यान्न मंगाना पड़ता था। इसके बाद विदेशों से उन्नत बीज आयात किए गए। सरकार के प्रयासों से सिंचित क्षेत्र बढ़ा और रासायनिक खाद का प्रयोग शुरू हुआ। वर्तमान में हम 285 मिलियन टन खाद्यान्न उपजा रहे हैं जो केवल विज्ञान से ही संभव हो सका है।

कृषि क्षेत्र में होने वाले पानी के दोहन को कैसे कम किया जा सकता है।

- स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई व जरूरत के मुताबिक खेतों में पानी देने से यदि हम कृषि क्षेत्र से 10 फीसद पानी भी बचाने में कामयाब होते हैं तो 40 फीसद औद्योगिक एवं पेयजल जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। इसके अलावा बारिश व नदियों के जल का बेहतर प्रबंधन भी बहुत जरूरी है। सरकार को इस दिशा में ठोस प्रयास करने की जरूरत है।

किसानों की आय कैसे बढ़ेगी।

- उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद अधिक प्रयोग करना होगा। भारत में प्रति हेक्टेयर खाद की औसत खपत 290 ग्राम है जबकि चीन में 10-12 किलोग्राम, जापान में 13-14, यूरोप में 5-6, पाकिस्तान में 1.5-2 किलोग्राम तक खपत होती है। गांवों में किसानों के बीच अनाज या कृषि उत्पाद संग्रह के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना होगा। इसके अलावा किसानों को आधुनिक विधि से खेती के साथ मार्केटिंग व फूड प्रोसेसिंग में प्रशिक्षित किया जाए। साथ ही खाद्यान्न का देश भर में एकीकृत दाम सुनिश्चित हो। किसान समृद्ध होगा, तभी देश भी समृद्ध होगा।


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