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सड़क पर इंसान : यहां पानी की तरह बहाया गया पैसा और 15 वर्षों से क्षेत्र में सत्ता पक्ष के ही रहे हैं विधायक

सड़क पर इंसान कैसे आता है यह देखना हो तो बलिया जिले की यह तस्‍वीर ही काफी है जिले की बैरिया विधानसभा का गंगा नदी से सटा क्षेत्र हमेशा से बाढ़ व कटान से प्रभावित रहा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 06:33 PM (IST)Updated: Fri, 04 Oct 2019 08:00 AM (IST)
सड़क पर इंसान : यहां पानी की तरह बहाया गया पैसा और 15 वर्षों से क्षेत्र में सत्ता पक्ष के ही रहे हैं विधायक
सड़क पर इंसान : यहां पानी की तरह बहाया गया पैसा और 15 वर्षों से क्षेत्र में सत्ता पक्ष के ही रहे हैं विधायक

बलिया [सुधीर तिवारी]। सड़क पर इंसान कैसे आता है यह देखना हो तो बलिया जिले की यह तस्‍वीर ही काफी है। जिले की बैरिया विधानसभा का गंगा नदी से सटा क्षेत्र हमेशा से बाढ़ व कटान से प्रभावित रहा है। पिछले 15 वर्षों की बात करें तो या विधानसभा हमेशा सौभाग्यशाली रही है। यहां से जिस पार्टी के विधायक जीते, उसी पार्टी की सरकार प्रदेश में बनी। इसके बाद भी यहां के लोगों की सबसे बड़ी समस्या बाढ़ और कटान नहीं हो सकी। इतना कह कर जनप्रतिनिधि और अधिकारी अपना पल्ला जरूर झाड़ते रहे कि यह आपदा है, इस पर किसी का बस नहीं चलता। जनता से वह यह नहीं बताते कि कुशल प्रबंधन से आपदा से होने वाले नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है। आखिर बताएं भी क्यों! इसी आपदा के भरोसे मलाई भी तो काटनी है। हालांकि यह बात थोड़ी कड़वी है, लेकिन यही सच्चाई भी हैं। 

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अगर हम बात 2007 की करें तो बैरिया विधानसभा से बहुजन समाज पार्टी के सुभाष यादव विधायक बने। प्रदेश में भी बसपा की सरकार बनी। इसके बाद 2012 में जब सपा की सरकार बने तो यहां से उसी पार्टी के विधायक जयप्रकाश अंचल हुए। अब 2017 में भी भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीते और भाजपा की सरकार प्रदेश में है। समीक्षा अगर पिछले 15 वर्षों की तीनों पार्टी की सरकार की करें तो बैरिया विधानसभा की गंगा किनारे की आबादी को हमेशा छल मिला। वह छल बाढ़ कटानरोधी कार्यों के नाम पर किया गया। पानी की तरह पैसे बहाए गए, लेकिन उसका किसी एक जगह भी फायदा नहीं दिख सका। कटानरोधी कार्य होता गया और नदी उन कार्यों के साथ सैकड़ो बीघा जमीन, बड़े-बड़े महल जैसे घरों को अपनी आगोश में लेती गई। चाहे जनप्रतिनिधि हों या जिले के आला अफसर, सांत्वना देने के शिवाय उन पीडि़तों का कोई खास सहयोग नहीं कर पाए। ऐसे में बाढ़ विभाग के इंजीनियरों पर यह सवाल उठना लाजमी है कि अरबों रुपये क्यों बहा दिए जब उसका कोई फायदा मिलना ही नहीं था।

एक वो इंजीनियर थे और एक आज के हैं...

देश में तकनीक भले ही बढ़ती गई लेकिन उस तकनीक का कोई फायदा नहीं, जब इंसान अपनी ईमानदारी का ही गला घोट बैठा हो। एक वो इंजीनियर थे, जो महज कम खर्च में नदियों की धारा तक मोड़ देते थे और एक आज के इंजीनियर हैं जो पैसे तो पानी की तरह बहाते है लेकिन उसका एक छोटा सा भी असर देखने का नहीं मिल पाता है। हम बात कर रहे हैं बाढ़ विभाग के इंजीनियरों का। अगर हम इसी विभाग के पहले के इंजीनियरों की तुलना आज के नई पीढ़ी के तकनीकी ज्ञान रखने वाले इंजीनियरों से करें तो बात कुछ और ही निकल कर सामने आती है।

उदाहरण के तौर पर जिले में 90 के दशक से पहले जो भी कटानरोधी कार्य हुए, कारगर रहे। उसका असर दिखाई दिया। जहां काम हुआ वहां कटान पूरी तरह रुक गई लेकिन आधुनिक तकनीकी ज्ञान से लैस आज के इंजीनियरों के नेतृत्व में आखिर कैसा काम हो रहा है कि कटान रुकने का नाम नहीं ले रही। सच्चाई कहें तो निश्चित रूप से आज के कटानरोधी कार्यों में भ्रष्टाचार की बू आती है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि आज के इंजीनियरों में आधुनिक तकनीक का ज्ञान जरूर है, लेकिन अंदर की ईमानदारी के अभाव में उसका लाभ आमजन को नहीं मिल पा रहा है। कटान रोकने को करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट बन रहे हैं, काम हो रहा है, और नदी उस काम के साथ लोगों के आशियाने तक को अपने साथ लेती जा रही है।


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