गंगाजल परखने के लिए आई जर्मन टीम, बनारस व गाजीपुर में एकत्र किए पानी के नमूने
बनारस में गंगाजल की स्थिति क्या है इसको परखने और जांचने जर्मनी से एक टीम सोमवार को आई है। टीम उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रयोगशाला के उपकरणों की जांच की।
वाराणसी, जेएनएन। गंगा में स्नान और गंगाजल का आचमन करना हिंदुओं की आस्था से जुड़ा मामला है। पिछले कुछ सालों से कई कारणों से गंगा का पानी दूषित हो रहा है। इसमें प्रमुख कारण नालों का सीधे गंगा में गिरना है। इसके अलावा गंगा के किनारे चमड़ा शोधन कारखाने, कपड़ों के रंगने के कारखाने, कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने और अधे जले शव को बहा देने से भी गंगा प्रदूषित हुई हैं। गंगाजल की शुद्धता बनी रहे इसके लिए जर्मनी के वैज्ञानिकों ने भी कवायद शुरू कर दी है।
नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) ने बनारस में गंगा जल साफ हो इसके लिए जर्मनी के पीटीबी नामक संस्था को सलाहकार नियुक्त किया है। इसी संस्था के डा. पीटर और डा. लुकस व दिल्ली से आईं डा. स्वाति ने सोमवार को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के साथ वाराणसी और गाजीपुर में गंगा जल का नमूना एकत्र किया।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह ने बताया कि गंगा जल की गुणवत्ता शुद्ध बनी रहे इसके लिए हम लोग कई स्तर पर उसका परीक्षण कर रहे हैं। इसका प्रस्तुतिकरण हमने जर्मन टीम के सामने किया। मंगलवार को हम लोग जर्मन वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गंगा जल का परीक्षण करेंगे। एनएमसीजी ने हमें चार लाख रुपये प्रयोगशाला के उपकरण के लिए दिए हैं। बनारस में पानी की गुणवत्ता उसी स्थान पर सबसे अधिक खराब है जहां पर नालों का पानी सीधे गंगा में गिर रहा है। इसके कारण भी पानी में घुलनशील आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है।
अप स्ट्रीम (विश्वसुंदरी पुल के पास) और डाउन स्ट्रीम (सराय मोहाना के निकट) तो प्रतिदिन गंगा के पानी का नमूना एकत्र किया जा रहा है। साथ ही दोनों के बीच कई स्थानों पर रैंडम नमूने भी एकत्र किए जाते हैं ताकि हमें पता चल सके कि हमें कहां क्या काम पहले करना है। एक दिसंबर को आंकड़ों के अनुसार पानी का रंग 10 पीसी (प्लेटेनियम कोबाल्ट) है जो सीमा के अंदर है। 12 पीसी के बाद खराब स्थिति होने लगती है। पानी के रंग को प्लेटेनियम कोबाल्ट में मापा जाता है। पीएच 8.5 है जो सामान्य है। बीओडी के परिणाम तीन दिन बाद आते हैं।
इस साल अक्टूबर माह के अंत में भी आई थी टीम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में गंगा का जल इतना निर्मल और अविरल हो कि उसका आचमन किया जा सके इसके लिए इस साल अक्टूबर माह के अंतिम में नमामि गंगे और नेशनल कमीशन फॉर क्लीन गंगा ने कमर कस ली है। गंगा जल की जांच के लिए जर्मनी के वैज्ञानिकों को बनारस भेजा गया है जो 101 बिंदुओं पर जांच कर रिपोर्ट तैयार किए।