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शोध-अनुसंधान : उत्तर भारत के गौड़ सारस्वत ब्राह्मण थे पश्चिमी घाट के रोमन कैथोलिक

gaud Saraswat Brahmins in india गोवा और काेंकण के रोमन कैथोलिक कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं बल्कि उत्तर भारत के गौड़ सारस्वत ब्राह्मण ही हैं जो लौह युग यानी आज से 2500-3000 वर्ष पूर्व पश्चिमी घाट पर जा बसे थे।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 08 Sep 2021 05:30 AM (IST)Updated: Wed, 08 Sep 2021 05:30 AM (IST)
शोध-अनुसंधान : उत्तर भारत के गौड़ सारस्वत ब्राह्मण थे पश्चिमी घाट के रोमन कैथोलिक
डीएनए वैज्ञानिकों का यह शोध ह्यूमन जेनेटिक्स पत्रिका में बीते 24 अगस्त को प्रकाशित हो चुका है।

वाराणसी [शैलेश अस्थाना]। गोवा और काेंकण के रोमन कैथोलिक कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं, बल्कि उत्तर भारत के गौड़ सारस्वत ब्राह्मण ही हैं, जो लौह युग यानी आज से 2500-3000 वर्ष पूर्व पश्चिमी घाट पर जा बसे थे। कालांतर में 15वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के गोवा पर कब्जे के बाद उनका जबरन मतांतरण कराया गया था। इन क्षेत्रों में विशिष्ट मानी जाने वाली तथा शेष आबादी से अलग दिखने वाले इस समूह को लेकर मानव विज्ञानियों व इतिहासकारों में कई मत थे। डीएनए गुण सूत्रों पर आधारित वैज्ञानिक अध्ययन ने उनके मूल की उत्पत्ति को लेकर प्रचलित इस विवाद को सुलझा लिया है।

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शोध कार्य में शामिल बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान लखनऊ के वरिष्ठ डीएनए वैज्ञानिक मऊ निवासी युवा डा. नीरज राय ने बताया कि समुदाय से सबंधित इस पहले हाईथ्रूपुट आनुवंशिक शोध में सीएसआइआर के कोशिकीय एवं आण्विक जीव विज्ञान केंद्र हैदराबाद के प्रमुख वैज्ञानिक व सेंटर फार डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक हैदाराबाद के निदेशक डा. कुमारासामी थंगराज शामिल थे। वैज्ञानिकों ने गोवा, मंगलौर और कुमटा में रहने वाले राेमन कैथोलिक समूह के 110 लोगों का डीएनए लिया और देश भर में निवास करने वाले विभिन्न समुदायों व जनजातियों से मिलान किया। तब पता चला कि इस समुदाय के डीएनए उत्तर भारत में निवास करने वाले सारस्वत गौड़ ब्राह्मण समुदाय से मिला। इससे यह साबित होता है कि यह समुदाय इसी वंश के पूर्वजों का अवशेष है। इनमें कुछ डीएनए यहूदी समुदाय से भी मेल खाते हैं। माना जा रहा है कि लंबे कालखंड में विभिन्न आबादियों के सम्मिश्रण से काफी सांस्कृतिक परिवर्तन आए हैं।

लगभग 2500 से 3000 वर्ष पूर्व हुआ था विस्थापन : आनुवंशिक आंकड़ों के अध्ययन के साथ ही इनकी तुलना पुरातात्विक, ऐतिहासिक व भाषाई अभिलेखों के संदर्भ में रखकर करने पर पता चला कि यह आबादी सिंधु-सरस्वती सभ्यता का हिस्सा थी, जो लौह युग यानी 2500-3000 वर्ष पूर्व जो किन्हीं कारणों से गोवा और पश्चिमी घाट के काेंकण क्षेत्र में जा बसे। कालांतर में 15वीं शताब्दी में जब पुर्तगालियों ने इनका जबर्दस्ती मतांतरण कराया और ये रोमन कैथोलिक हो गए।

कुमटा और मंगलौर में भी हैं इसी शाखा के वंशज : बताते हैं कि गोवा में पुर्तगालियों द्वारा कराए जा रहे जबरन मतांतरण से बचने के लिए इना कुछ हिस्सा दक्षिण के मंगलौर औ कुमटा में जा बसा और अपने ब्राह्मणत्व को बचाए रखा। वह भी बाद में अधिसंख्य आबादी के ईसाई हो जाने के बाद शादी-विवाह आदि की समस्या को देखते हुए ईसाई हो गए। आज से छह-सात सदी पहले जब यहूदी गोवा पहुंचे तो इस आबादी में मिश्रित होने के कारण कुछ जीन यहूदियों के भी पाए गए।

पुर्तगालियों से बिलकुल भी नहीं मिलता जीन : डा. कुमारासामी थंगराज के हवाले से डा. नीरज राय बताते हैं कि इस समुदाय में पुर्तगालियों का जीन बिल्कुल भी नहीं मिलता। इससे यह साबित होता है कि पुर्तगाली आए तो जरूर लेकिन वे स्थानीय आबादी से मिश्रित नहीं हुए, उन्होंने केवल मत-परिवर्तन कराया। इस आबादी के पैतृक वाइ गुणसूत्रों में 40 फीसद से अधिक आरएलए हैप्लो ग्रुप से संबंधित हैं जो उत्तर भारत, मध्य-पूर्व भारत व यूरोप की आबादी में काफी पाया जाता है।

ह्यूमन जेनेटिक्स पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है शोध : डीएनए वैज्ञानिकों का यह शोध ह्यूमन जेनेटिक्स पत्रिका में बीते 24 अगस्त को प्रकाशित हो चुका है।


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