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गणेश महोत्सव : कल से होगी विघ्नहर्ता की आराधना, तिथि विशेष पर ऐसे प्राप्त करें विघ्न विनाशक की कृपा...

चतुर्थी तिथि दो सितंबर को सुबह 9.02 बजे लग रही है जो तीन सितंबर को सुबह 6.50 बजे तक रहेगी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 01 Sep 2019 11:20 AM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 09:54 PM (IST)
गणेश महोत्सव : कल से होगी विघ्नहर्ता की आराधना, तिथि विशेष पर ऐसे प्राप्त करें विघ्न विनाशक की कृपा...
गणेश महोत्सव : कल से होगी विघ्नहर्ता की आराधना, तिथि विशेष पर ऐसे प्राप्त करें विघ्न विनाशक की कृपा...

वाराणसी, जेएनएन। दो सितंबर को ही मध्याह्न में चतुर्थी मिलने से इसी दिन वैनायकी वरद श्रीगणेश चतुर्थी का पर्व भी मनाया जाएगा। इसी दिन से पूरे देश में गणेशोत्सव शुरू हो जाएगा। चतुर्थी तिथि दो सितंबर को सुबह 9.02 बजे लग रही है जो तीन सितंबर को सुबह 6.50 बजे तक रहेगी।

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सनातन धर्म के पंच देवताओं में प्रमुख व विघ्नहर्ता भगवान गणेश का जन्म भाद्र शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न में हुआ था। इस तिथि को वैनायिकी वरद श्रीगणेश चतुर्थी भी कहा जाता है। शास्त्र के अनुसार भाद्र शुक्ल चतुर्थी में चंद्रास्त भी दो सितंबर को ही मिल रहा है और चंद्रास्त रात 8.41 पर होगा। विघ्न विनाशक प्रभु श्रीगणेश के इस जन्मोत्सव व्रत पर्व को महाराष्ट्र में सिद्धि विनायक व तमिलनाडु में विनायक चतुर्थी तो बंगाल में सौभाग्य चतुर्थी के रूप में मनाते हैं। तिथि विशेष पर विघ्न विनाशक की कृपा प्राप्ति के लिए सविधि भगवान गणेश के निमित्त स्नान-दान-व्रत और पूजन, अर्चन-वंदन जो भी किया जाता है, वह गणपति कृपा से सहस्रगुणा हो जाता है। इससे मानव जीवन के सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं।

श्रीकृष्ण ने बताई थी महत्ता
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत काल में युधिष्ठिर को विघ्नहर्ता की पूजा का महत्व बताया था। इसके प्रभाव से पांडवों ने कौरवों पर विजय प्राप्त की। इस दिन से सात, नौ या दस दिनी जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसकी खूब धूम होती है। काशी में भी इसका रंग साल-दर-साल निखरता जा रहा है।

व्रत संकल्प, मोदक-दुर्वा का भोग
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार तिथि विशेष पर सुबह स्नानादि कर 'जन्म जन्मांतर तक पुत्र-पौत्र व धन, जय, यश, ऐश्वर्य, प्रभुत्व सभी की अभिवृद्धि के लिए व्रत रहूंगी या रहूंगा।' के साथ व्रत संकल्प लेना चाहिए। गणेश प्रतिमा की स्थापना कर मंत्रोच्चार, ध्यान, आसन, पाद्य, अघ्र्य, आचमन, पंचामृत स्नान, वस्त्र भूषण, यज्ञोपवीत, सिंदूर आदि से पूजा करनी चाहिए। लड्डू, ऋतु फल, दुर्वा आदि नैवेद्य मंत्र संग अर्पित करना चाहिए।

चतुर्थी को कहते ढेलहिया चौथ
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ढेलहिया चौथ भी कहा जाता है। ढेलहिया चौथ पर चांद के दर्शन से कलंक लगता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा को देखने से चंद्र दोष होता है। अत: रात 8.41 बजे यानी चंद्रास्त के समय तक चंद्रमा की ओर नहीं देखना चाहिए।


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