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'गिरमिटिया' के दाग से सत्ता के ठाट तक महकी 'पूरब की माटी', Mauritius PM के पूर्वज बलिया के मूल निवासी

मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के पूर्वज उत्तर प्रदेश में बलिया जिले के मूल निवासी थे। उनके पिता अनिरुद्ध जगन्नाथ भी मॉरीशस के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पद पर रह चुके हैं। बलिया जिले के रसड़ा थाना क्षेत्र का अठिलपुरा गांव उनके पुरखों का निवास स्थान रहा है।

By Abhishek sharmaEdited By: Published: Thu, 07 Jan 2021 05:40 AM (IST)Updated: Thu, 07 Jan 2021 01:27 PM (IST)
'गिरमिटिया' के दाग से सत्ता के ठाट तक महकी 'पूरब की माटी', Mauritius PM के पूर्वज बलिया के मूल निवासी
बलिया जिले के रसड़ा थाना क्षेत्र का अठिलपुरा गांव उनके पुरखों का निवास स्थान रहा है।

वाराणसी, जेएनएन। 'भाइयों-बहनों, मित्रों सबको नमस्ते, इस पवित्र नगरी में दुनिया के कोने-कोने से आए प्रवासी भारतीयों व काशी वासियों को मेरा प्रणाम...' मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के हिंंदी में यह उद्गार वाराणसी में जनवरी 2019 को प्रवासी भारतीय समारोह में गूंजे तो लोगों की तालियों से सभास्थल काफी देर तक गुंंजायमान रहा। इसके बाद भोजपुरी बोली और हिंदी भाषा में उनके भाषण ने दो दूर देशों के बीच पीढियों के नेह की डोर को ऐसा मजबूत किया कि बोली-भाषा और रोटी - बेटी से लेकर गाय- गोरू तक के संबंधों की यादें पूरब के लोगों के स्मृति में लंबे समय तक के लिए अंकित हो गईं।

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दरअसल मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के पूर्वज उत्तर प्रदेश में बलिया जिले के मूल निवासी थे। उनके पिता अनिरुद्ध जगन्नाथ भी मॉरीशस के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पद पर रह चुके हैं। बलिया जिले के रसड़ा थाना क्षेत्र का अठिलपुरा गांव उनके पुरखों का निवास स्थान रहा है। गांव वालों के अनुसार प्रविंद जगन्नाथ के दादा विदेशी यादव और भाई झुलई यादव को अंग्रेजों ने वर्ष 1873 में गिरमिटिया मजदूर के रुप में जहाज से गन्ने की खेती के लिए मारीशस भेजा था। गिरमिटिया मजदूर से लेकर सत्ता के शीर्ष तक का सफर तय करने वाला परिवार आज मॉरीशस का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार भी माना जाता है। प्रधानमंत्री प्रविंद अपने पुरखों की भूमि बलिया तो नहीं जा सके लेकिन आयोजन के बाद भी वह काशी में ठहरे और विभिन्न मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना इस भाव से किया कि कभी इन्हीं मंदिरों में उनके पुरखों ने आने वाली पीढियों के लिए तमाम मन्नतें मांगी होंगी। 

अभिलेखों में दर्ज दस्तावेजों के अनुसार 2 नवंबर, 1834 को भारतीय मजदूरों का पहला जत्था गन्ने की खेती के लिए कलकत्ता से एमवी एटलस जहाज पर सवार होकर मारीशस पहुंंचा था। आज भी वहां हर साल दो नवंबर को 'आप्रवासी दिवस' के रूप में मनाया जाता है। जिस स्थान पर भारतीयों का यह जत्था उतरा था वहां आज भी आप्रवासी घाट की वह सीढियां स्मृति स्थल के तौर पर मौजूद हैं।

बलिया में परिजनों की तलाश

मॉरीशस के उच्चायोग ने प्रविंद जगन्नाथ के अनुरोध पर पुरखों का गांव तलाशने की कोशिश की थी। नवंबर 2018 से जनवरी 2019 तक कई बार भारत में मॉरीशस के उच्चायुक्त जगदीश गोबर्धन ने दौरा कर परिजनों की तलाश की। काफी प्रयास के बाद बलिया जिले के रसड़ा में अठिलपुरा गांव और आसपास उनके पुरखों के निवास स्थान की जानकारी हुई। 

तलाश बिछड़े परिवारों की  

पूर्वांचल और बिहार से सदी भर पहले काफी गिरमिटिया मजदूर मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद टोबैगो और अफ्रीकी देशों में भेजे गए थे। काफी लोगों के द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारियों के आधार पर उनके पुरखों के गांव की तलाश का क्रम जारी है, जबकि आठ दस परिवार अब तक संस्था के जरिए पूर्वजों की भूमि तलाश कर चुके हैं। -दिलीप गिरि, अध्यक्ष, गिरमिटिया फाउंडेशन।


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