मंत्री से लेकर विधायक तक सभी तो रहते हैं वाराणसी शहर में, सिर्फ कार्यकर्ताओं के दम पर नहीं पार हो सकी भाजपा की नैया
जिलाध्यक्ष से लगायत मंत्री तक शहर में रहते हैं। विधायक से लेकर सरकार के मंत्री भी गांव में निवास नहीं करते हैं। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंचायत चुनाव में आखिर कैसे राजनीतिक फसल लहलहाएगी।
वाराणसी, जेएनएन। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के जिला पंचायत सदस्य सीट पर भाजपा की करारी हार की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। जिला इकाई के गठन के साथ ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी। रही कसर प्रत्याशियों के चयन व जातिगत समीकरण की अनदेखी ने पूरी कर ली है। बात भाजपा जिला इकाई के गठन की करें तो करीब 70 फीसद पदाधिकारी शहरी बताए जाते हैं। जिलाध्यक्ष से लगायत मंत्री तक शहर में रहते हैं। विधायक से लेकर सरकार के मंत्री भी गांव में निवास नहीं करते हैं। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंचायत चुनाव में आखिर कैसे राजनीतिक फसल लहलहाएगी।
यह वही भाजपा है जब एक वक्त नजीर पेश करती थी। बात दूर की नहीं बल्कि दाे वर्ष पूर्व की है। क्षेत्रीय संगठन महामंत्री के तौर पर रत्नाकर जिम्मेदारी संभाल रहे थे। रामनगर मंडल शहरी इकाई में शामिल हो गया था। यहां से दो भाजपा नेता नंदलाल चौहान व सत्येंद्र सिंह जिला इकाई में मंत्री पद पर नियुक्त थे। जिलाध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा ही थे। क्षेत्रीय संगठन महामंत्री ने द्वय नेताओं को जिला संगठन के मंत्री पद की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया। स्पष्ट संदेश दिया कि जिला इकाई में वही रहेगा जो गांव में निवास करता है।
वर्तमान परिद़श्य देखें तो जिलाध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा का आवास भी शहर में है। नगर निगम की सीमा के विस्तार में कंचनपुर शहर हो गया। ऐसे ही महामंत्री संजय सोनकर निवासी गिलट बाजार शिवपुर, महामंत्री सुरेंद्र सिंह पटेल निवासी लंका, उपाध्यक्ष प्रभात सिंह निवासी मंडुआडीह, उपाध्यक्ष विनोद सिंह पटेल निवासी समीप बरेका, उपाध्यक्ष सुरेश सिंह निवासी टिकरी शहरी क्षेत्र के रहनवार हैं। दिलचस्प यह है कि जिला मंत्री शिवानंद राय तो वाराणसी जिले के ही नहीं हैं। उनका मूल निवास मऊ जिला में है। यहां पहड़िया इलाके में किराये के मकान में रहते हैं। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र के विधायक अवधेश सिंह सिगरा क्षेत्र में निवास करते हैं। कैबिनेट मंत्री व शिवपुर विधायक अनिल राजभर मूल निवासी चंदौली के सकलडीहा क्षेत्र के हैं। यहां पर सर्किट हाउस का कमरा ही उनका स्थानीय निवास की तरह वर्ष भर बुक रहता है।
परिणाम, नेतृत्वविहीन हुए गांव के कार्यकर्ता
त्रिस्तरीय पंचायत के दौरान गांव के कार्यकर्ताओं का पूरा फोकस ग्राम प्रधान की सीट को लेकर था। इस वजह से वे जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशी के लिए दूसरे गांव में भ्रमण को लेकर रुझान नहीं दिखाए। ऐसे हालात में पदाधिकारियों का दल गांव के कार्यकर्ताओं को नेतृत्व देता है। जिस गांव में जाते हैं उन्हीं कार्यकर्ताओं के साथ जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशी के लिए प्रचार करते हैं। इसके अलावा गांव में प्रवास से वहां के राजनीतिक माहौल को भांपना आसान हो जाता है जिसे शहरी पदाधिकारी भांप न सके।
बिगड़ी परिस्थिति तो मीडिया से बनाई दूरी
जिला पंचायत सदस्य की सीटों पर मतगणना का ज्यों-ज्यों परिणाम आता गया, भाजपा की जिला इकाई के साथ ही क्षेत्रीय संगठन के पदाधिकारी भी मीडिया के सवालों से दूरी बनाते गए। शुरुआत में री-काउंटिंग का हवाला देते हुए सीटों की संख्या स्पष्ट करने से कतरा रहे थे तो जब संदेह के बादल पूरी तरह छंट गए तो मोबाइल फोन तक उठाना बंद कर दिया। मंगलवार की देर रात जिला अध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा की ओर से 16 प्लस सीटों पर भाजपा की दावेदारी पेश की गई। हालांकि, इस दौरान भी अधिकृत प्रत्याशियों की सूची साझा नहीं की गई। एक बारगी भी पुष्ट नहीं किया कि जीते अधिकृत प्रत्याशियों की संख्या सात है।