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वाराणसी में AnnaPoorna Temple द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में निश्शुल्क की जा रही बुजुर्गों की सेवा

अंगुली पकड़ कर चलना सिखाते और अक्षर ज्ञान कराते आंखों में उगे सपनों का रंग इतना स्याह होगा वृद्धाश्रमों में दिन काट रहे बुजुर्गों को इसका कभी अहसास भी न रहा होगा। यह तो बाबा की नगरी का सेवा भाव है जो उन्हें कभी बेगानेपन का अहसास न होने दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 15 Jun 2021 09:14 AM (IST)Updated: Tue, 15 Jun 2021 01:15 PM (IST)
वाराणसी में AnnaPoorna Temple द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में निश्शुल्क की जा रही बुजुर्गों की सेवा
बाबा की नगरी का सेवा भाव है जो उन्हें कभी बेगानेपन का अहसास न होने दिया।

वाराणसी [काशी मिश्रा]। बच्चों को अंगुली पकड़ कर चलना सिखाते और अक्षर ज्ञान कराते आंखों में उगे सपनों का रंग इतना स्याह होगा वृद्धाश्रमों में दिन काट रहे बुजुर्गों को इसका कभी अहसास भी न रहा होगा। यह तो बाबा की नगरी का सेवा भाव है जो उन्हें कभी बेगानेपन का अहसास न होने दिया। कुछ ऐसा ही दृश्य नजर आता है काशी अन्नपूर्णा मंदिर न्यास की ओर से मिसिर पोखरा क्षेत्र में संचालित अन्नपूर्णा वृद्धाश्रम में। अपनों की तरह सेवाभाव, सेवा सुश्रुषा और खानपान का इंतजाम सारे घाव भर देता है। वर्तमान दौर में बुजुर्गों की दीन दशा को देखते हुए मुख्य न्यासी अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वरपुरी ने 28 सितंबर 2009 को इसकी इसकी स्थापना की थी। उप महंत न्यासी शंकर पुरी बताते हैं कि वृद्धाश्रम उन वरिष्ठ नागरिकों के लिए है जो समय के मारे हैं, लेकिन बेचारे नहीं हैं। कुछ ऐसी माताएं हैं जो अपनों से प्रताड़ित होकर खुद अन्नपूर्णेश्वरी की चरण-शरण में चली आई या कुछ को उनके अपने यहां छोड़ गए।

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यहां इस समय सात वृद्धजन हैं जिनमें पांच महिलाएं और दो पुरुष अपनों के बीच होने के अहसास के साथ जीवन यापन कर रहे हैं। इसमें उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत अलग-अलग राज्य से हैं, लेकिन परिवार की तरह रहते हैं। उन्हें मां अन्नपूर्णा का प्रसाद स्वरूप समय से नाश्ता-भोजन का पुख्ता इंतजाम किया गया है। आश्रम के नौ कमरों में दो-दो बेड व आलमारी लगाई गई है। मनोरंजन के लिए एलईडी टीवी तो प्रतिदिन सायंकाल कथा वाचक प्रवचन सुनाने जाते हैं। वृद्धजन की सेवा के लिए 24 घंटे के लिए सेवादार तो नियमित गंगा स्नान कराने के लिए गार्ड की ड्यूटी लगाई गई है।

यहां रहने वाले बुजुर्गों की कहानी एक दूसरे से मेल खाती है। सभी की परेशानी पारिवारिक कलह ही रही। लिहाजा उन्हें वृद्धाश्रम में जीवन बिताना पड़ रहा है। आश्रम का सेवाभाव उनकी आंखे नम कर जाता है। कहते हैं, जो सम्मान-प्यार और घर मिला वो अपनों से लाख गुना अच्छा है। अब तक 26 वृद्धाओं का अंतिम संस्कार संस्था हिंदू रीति रिवाज से करा चुका है।


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