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रिमझिम बरसे ला पनिया आवा चलीं धान रोपे धनिया..., मालिनी अवस्थी के लोक गीतों में झलका लोक प्रतिबिंब

बीएचयू स्थित भारत अध्ययन केंद्र में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी चौमासा में लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी के लोकगीतों की प्रस्तुतियों ने इसका पूर्ण आभास करा दिया। उनके स्वरों की मिठास के संग लोकगीतों में व्याप्त लोक प्रतिबिंब घुलकर सजीव-सा हो उठा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 28 Jul 2021 08:59 PM (IST)Updated: Wed, 28 Jul 2021 08:59 PM (IST)
रिमझिम बरसे ला पनिया आवा चलीं धान रोपे धनिया..., मालिनी अवस्थी के लोक गीतों में झलका लोक प्रतिबिंब
चौमासा में लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी के लोकगीतों की प्रस्तुतियों ने इसका पूर्ण आभास करा दिया।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। लोक गीतों में भारतीय परंपरा का प्रतिबिंब तो प्रदर्शित होता ही है लेकिन साहित्य का रसराज श्रृंगार उसमें घुलकर उसकी मिठास को द्विगुणित कर देता है। वर्षा के मौसम का चौमासा आषाढ़- सावन- भादो और क्वार में रिमझिम फुहार में पानी से लबालब खेतों में अनायास ही रसराज श्रृंगार के स्थायी भाव रति ( प्रेम ) को उत्पन्न करने के उद्दीपन ( विभाव ) का कार्य सहज ही कर दे देते हैं जो महिलाओं के स्वरों में कभी कजरी तो कभी झूला तो कभी चैती जैसे लोकगीतों में अवतरित हो जाते हैं। भले ही वे उसका आलंबन भगवान श्रीकृष्ण हो या उसका पति।

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बीएचयू स्थित भारत अध्ययन केंद्र में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी चौमासा में लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी के लोकगीतों की प्रस्तुतियों ने इसका पूर्ण आभास करा दिया। उनके स्वरों की मिठास के संग लोकगीतों में व्याप्त लोक प्रतिबिंब घुलकर सजीव-सा हो उठा। उन्होंने धोबिया लोक गीत हमके अंचरा के छैंया झूला ल बलमा...में इसी भावना को प्रतिबिंबित किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुतियों में इस बात का हर बार अहसास कराया कि कजरी, चैती टप्पा आदि में चौमासे से लेकर बारह मासा और उनकी ऋतुओं का वर्णन है। गायक पूरे बारहमासा या चौमासा को समयाभाव के कारण मंच से गा नहीं पाता।

मालिनी अवस्थी ने अपने प्रस्तुतियों में इनकी झलकें ही गाकर लोकगीतों में हर माह और उसकी ऋतुओं का असर दिखाया। उन्होंने हरे राम हीरा जड़ी..., सोने की थाली में जेवना परोसूं, , सिया संग झूलें बगिया में राम ललना, रिमझिम बरसे ला पनिया आव चलीं धान रोपे धनिया, जैसे लोक गीतों के माध्यम से ग्रामीण अंचल का पूरा लोक जीवन जीवंत कर दिया। उन्होने अपनी गुरु पद्म विभूषण गिरिजा देवी की कजरी को कुछ इस प्रकार गाया घेरि आई कारी बदरिया रे, राधा बिन लागे न मोरा जिया। उन्होंने अरे राम पवन संग पुरइन पात डोली , अम्मा मेरी बाबा को भेजो री जैसी अवधी कजरी से भी श्रोताओं को रूबरू किया। इसके साथ ही चौमासे के महीने में पड़ने वाले स्वतन्त्रा दिवस पर भी एक झूला कितने वीर झूले भारत में झुलनवा सुनाकर लोकगीतों में देश भक्ति का असर दिखलाया।


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