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खेती की बातें : पूर्वांचल और बिहार में एक हेक्टेयर में 55-60 क्विंटल अनाज, इन उपायों का करें पालन

खेती की बातें पूसा सांबा 1850 धान की नई किस्म जो पूर्वांचल के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इस धान की खास बात यह भी कि इसमें पइया नहीं निकलता। इसके बालियों की रिकवरी 68.8 फीसद है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 03 Jun 2021 05:20 PM (IST)Updated: Thu, 03 Jun 2021 05:20 PM (IST)
खेती की बातें : पूर्वांचल और बिहार में एक हेक्टेयर में 55-60 क्विंटल अनाज, इन उपायों का करें पालन
पूसा सांबा 1850 धान की नई किस्म, जो पूर्वांचल के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।

वाराणसी [शैलेश अस्थाना]। पूसा सांबा 1850 धान की नई किस्म, जो पूर्वांचल के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। महज 125- से 30 दिन में तैयार होने वाली यह किस्म भरपूर उपज तो देती ही है, रोगों व कीड़ों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता इसके जीन में ही वैज्ञानिकों ने विकसित कर दी है। झोंका (ब्लास्ट) रोग और कीड़े तो इसके निकट आने से रहे। कम समय में ही तैयार होने के नाते इसमें तीन-चार सिंचाई की बचत हो जाती है तो रोग और कीट प्रतिरोधक क्षमता की वजह से कीटनाशक दवाओं का खर्च भी बच जाता है।

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) नई दिल्ली के निदेशक डॉ. एके सिंह के निर्देशन में डॉ. एस गोपालकृष्णन, एके सिंह, राजीव राठौर, एम नागराजन, पीके भौमिक, रंजीत कुमार एल्लुर, केके गोविंद, हरिथा बी, यूडी सिंह , जी प्रकाश, राकेश सेठ और टीआर शर्मा जैसे वैज्ञानिकों की टीम ने इस किस्म को वर्ष 2020 में ही तैयार किया था, सबसे पहले इसे प्रयोग के तौर पर छत्तीसगढ़ में रोपा गया। वहां यह अपने मानकों पर खरा रहा और इसकी उपज 6.90 टन 69 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रही। कई परीक्षणों के बाद वैज्ञानिकों ने अब इसे पूर्वांचल, बिहार और बंगाल में भी रोपाई की संस्तुति प्रदान कर दी है। पूर्वांचल में इसकी औसत उपज 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। डॉ. सिंह बताते हैं कि इस किस्म को तैयार करने में पर्यावरण मित्र रसायनों का ही प्रयोग किया गया है। यह उपभोक्ताओं के लिए पूर्णतया सुरक्षित हैं।

नहीं निकलता पइया

पूसा के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह बताते हैं कि इस धान की खास बात यह भी कि इसमें पइया नहीं निकलता। इसके बालियों की रिकवरी 68.8 फीसद है। चावल की मोटाई करीब 5.6 मिमी और चावल का मुख्य पोषक तत्व इंटरमीडिएट एमाइलेज 21.5 फीसद है। अपने सभी गुणों के आधार पर यह धान पूर्वांचल के इलाकों में आमतौर पर रोपी जाने वाली किस्मों में सबसे बेहतर है। वह बताते हैं कि इस इलाके में सबसे ज्यादा रोपाई सांबा मंसूरी की होती है, पूसा सांबा उससे ज्यादा उपज देने वाली किस्म है तो समय, पानी और कीटनाशकों का खर्च बचाने वाली भी है। इसमें ब्लास्ट डिजीज झोंका रोग और कीड़ों से लड़़ने के लिए तीन जीन डाले गए हैं। एक दो वर्षों में पूसा सांबा 1850 सांबा मंसूरी को रिप्लेस कर देगी।

कैसे करें तैयारी

नर्सरी : इसकी नर्सरी 18-20 दिन में तैयार हो जाती है। 21 मई से 24 जून तक इसकी बाेआई की जा सकती है।

रोपाई : पूसा सांबा 1850 की रोपाई का उपयुक्त समय जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक है।

बीज दर : 8-10 किग्रा एक एकड़ रोपाई के लिए पर्याप्त है।

रोपण दूरी : कतार से कतार की दूरी 20 सेंमी और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंमी रखें।

बीज उपचार : बोआई से पहले भिगोए गए बीज को 10 ग्राम बाविस्टिन और एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइगिसन को आठ लीटर पानी के घोल में 24 घंटे भिगोते हैं। यह घोल पांच किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है।

उर्वरक की मात्रा : हरी खाद के लिए 15 किग्रा प्रति एकड़ ऊंचा उगाकर 35 से 40 दिन बाद भूमि में मिला दिया जाता है। 48 : 24 : 24 किलोग्राम नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश प्रति एकड़ डालें। नत्रजन को तीन भागों में बांटकर डालें। यानी 24 किलो नत्रजन पहले फास्फोरस एवं पोटाश की सम मात्रा के साथ रोपाई के समय, शेष 24 किलो नत्रजन कल्ले फूटते समय और 24 किलाे नत्रजन बालियां निकलने की अवस्था पर प्रयोग करें। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें। यदि मिट्टी में जिंक की कमी हो तो 20-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग कर सकते हैं।

खर-पतवार नियंत्रण :

नर्सरी : निचली भूमि वाली नर्सरी में खर-पतवार नियंत्रण के लिए किसी भी खर-पतवार नाशी जैसे प्रिटीलक्नोर और सेफनर का 600 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से बोआई के तीन से चार दिन बाद उपयोग करें।

कीट एवं बीमारियों का नियंत्रण :

- दीमक : क्लाइरोपाइरीफॉस 20 फीसद ईसी डेढ़ लीटर पानी में प्रति एकड़ और क्लोरोपाइरीफॉस 50 फीसद ईसी 500 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

- पत्ता छेदक और पत्ती लपेट : करताप हाइड्रोक्लोराइड 4-जी साढ़े सात किलोग्राम प्रति एकड़ या क्लोर इंट्रा निनीप्रोल 0.4 जीआर (फरटेरा) चार किलोग्राम प्रति एकड़ या क्लोरइंट्रा निनीप्रोल 18.5 फीसद एससी (कोरोजन) 60 मिली प्रति एकड़ बदल-बदल कर उपयोग करते हैं।

-धान का फुदका : इमिडाक्लोप्रिड (कोन्फिडोर, ग्लेमोर) 17.8 फीसद ईसी 50 मिली प्रति एकड़ या व्यूपरोपेझीन 25 फीसद एमनी 350 मिली प्रति एकड़ या डाइक्लोरबास 76 फीसद ईसी 140 मिली प्रति एकड़ बदल-बदल कर उपयोग करते हैं।

रोग प्रबंधन :

-जीवाणु पर्ण झुलसा : स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 30 ग्राम प्रति एकड़

-पत्ती का झोंका, गुतान झुलसा एवं गर्दन तोड़ (ब्लास्ट) : कार्बेन्डाजिम 50 फीसद डब्ल्यूपी 200 ग्राम प्रति एकड़ या ट्राइसाइन्लाजोन 120 ग्राम प्रति एकड़ या प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी 200 मिली प्रति एकड़ उपयोग करते हैं।

सिंचाई : आवश्यकतानुसार समय-समय पर।

कहां उपलब्ध हैं बीज :

पूसा सांबा 1850 के बीज अभी पूर्वांचल में इस वर्ष कुछ ही स्थानों पर उपलब्ध हैं। किसान बंधु इसे कृषि विज्ञान केंद्र भदोही (मो.नं. 9235857060), नेफोर्ड मऊ, महायोगी कृषि विज्ञान केंद्र गोरखपुर (मो.नं. 9453721026), पीआरडीएफ गोरखपुर (डॉ.आरसी चौधरी- मो.नं. 945173984), सेंटर फार रिसर्च एंड डेवलपमेंट (डॉ.बीएन सिंह, मो.नं. 8953655476) के यहां से प्राप्त कर सकते हैं।


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