खस की खेती कर किसान हो रहे आत्म निर्भर, एक बीघे में डेढ़ लाख रुपए का तैयार होता तेल
नकटी गांव निवासी किसान खेती के क्षेत्र में हमेशा नया प्रयोग करते हैं। इसके लिए देश के विभिन्न भागों में जाकर खेती किसानी से संबंधित नई नई जानकारियां लेते रहते हैं।
चंदौली, जेएनएन। दृढ इच्छाशक्ति सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। इसे किसान विंध्यवासिनी सिंह ने खस की खेती कर सिद्ध कर दिया है। नकटी गांव निवासी किसान खेती के क्षेत्र में हमेशा नया प्रयोग करते हैं। इसके लिए देश के विभिन्न भागों में जाकर खेती किसानी से संबंधित नई नई जानकारियां लेते रहते हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चार बीघे खेत में खस की खेती की थी। इस समय उसके जड़ को निकाल कर तेल बनाने का कार्य चल रहा है। उन्होंने अपने खेत में ऑटोमेटिक प्लांट लगा रखा है। खस की जड़ को टैंक में भर दिया जाता है। उसे नीचे से भी आग दिया जाता है। जिससे उसके जड़ में पाया जाने वाला तेल टेंट में धीरे-धीरे जाकर जमा हो जाता है।
अपने खेत में उन्होंने दो पाइप लाइनें लगाई हैं। टैंक में हमेशा एक पाइप से ठंडा पानी जाता है। दूसरे पाइप से गर्म पानी निकलता है। भाप के माध्यम से तेल टैंक में तेल इकटठा हो जाता है। बताया कि एक बीघा में 4 से 6 िक्वंटल जड़ें निकलती हैं। इसमें डेढ़ से दो प्रतिशत तेल निकलता है। इत्र बनाने का सबसे बड़ा हब कन्नौज में है मगर इस तेल का दिल्ली व लखनऊ मंडी में भी काफी अच्छा भाव मिल रहा है। एक लीटर तेल की कीमत 25 से 30 हजार है। एक बीघे में करीब डेढ़ लाख रुपए का तेल तैयार होता है। फसल की रखवाली नहीं करनी पड़ती है। इसमें कोई रोग नहीं लगता है। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वनस्पति औषधि विज्ञान ने नर्सरी भी यहां लगवा रखा है जो किसानों को खेती के लिए दिया जाएगा।
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