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काशी में संगीत के सम्राट नहीं, वरन याचक की तरह रहते थे प्रख्यात शास्त्रीय गायक पंडित जसराज

पंडित जसराज काशी में संगीत के सम्राट नहीं बल्कि याचक की तरह से रहते थे। संकट मोचन में वार्षिक संगीत के आयोजन में वह हर वर्ष हाजिरी लगाते थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 18 Aug 2020 10:10 AM (IST)Updated: Tue, 18 Aug 2020 05:25 PM (IST)
काशी में संगीत के सम्राट नहीं, वरन याचक की तरह रहते थे प्रख्यात शास्त्रीय गायक पंडित जसराज
काशी में संगीत के सम्राट नहीं, वरन याचक की तरह रहते थे प्रख्यात शास्त्रीय गायक पंडित जसराज

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। संकट मोचन संगीत समारोह के सबसे पारंपरिक भक्त शास्त्रीय गायक पं. जसराज जी ने अमेरिका में अपनी अंतिम सांसे लीं, लेकिन बनारस का संगीत समाज और बजरंगबली के भक्तों का चेहरा अश्रु से भींग गया। बनारस के संकट मोचन में वार्षिक संगीत के आयोजन में वह हर वर्ष हाजिरी लगाते थे और एक आध्यात्मिक सुख का रसास्वादन करते थे। कहते हैं कि वह काशी में संगीत के सम्राट नहीं, बल्कि याचक की तरह से रहते थे।

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इस साल भी अप्रैल में वह जब वह कोरोना और लॉकडाउन के कारण काशी नहीं आ सके तो ऑनलाइन भजन हनुमान लला मेरे प्यारे लला प्रस्तुत करते हुए उनके आंसू निकल गए, क्योंकि वह कोरोना के कारण संकट मोचन नहीं आ सके थे। यह दृश्य देख काशी ही नहीं बल्कि देश-दुनिया के लोग भावुक हो उठे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वह समारोह के एक संयोजक के तौर पर 1972 से यहां हर वर्ष प्रस्तुति देने आते हैं। उस दौरान वह मंदिर परिसर में बने कमरे में ही रहते हैं।  इस घटना से सबसे ज्यादा स्तब्ध दिखे पंडित छन्नू लाल मिश्रा ने अपनी भावनाओं और संबंधों पर बताया कि हनुमान जी के बहुत ही बड़े भक्त और वर्तमान में संगीत के सबसे महान व्यक्तित्व को दुनिया से विदा होते देख ह्रदय में बहुत पीड़ा हो रही है। सहन नहीं हो रहा कि वह अब नहीं रहे। वह हमको बहुत मानते थे। क्योंकि हर साल संकट मोचन आते थे भजन प्रस्तुत करने, जहां उनके साथ गाने का कई बार अवसर मिला। संकट मोचन में हम गा रहे थे तो वह बैठे थे तो कहा कि  छन्नू लाल जी आशीर्वाद दीजिए, तो मैंने कहा कि नहीं भाई साब आप हमसे बड़े हैं, हम आपको शुभकामना दे सकते हैं। हमसे उनका बहुत लगाव था, यह उनकी महानता है। जब मुझे पद्म विभूषण मिला तो उन्होंने मुझे शुभकामना देते हुए कहा था कि अब हम लोग बराबर हो गए कोई बड़ा या छोटा नहीं। फिर भी हमने उनसे कहा था कि नहीं आप सर्वदा श्रेष्ठ ही रहेंगे। उनके सम्मान में ये शब्द कहना चाहूंगा कि.....

नहीं रहा है कोई यहां पर ना कोई रहने आया है

चार दिनों की चटक चांदनी फिर अंधेरा छाया है

पांच तत्व का बना पुतला, इसी में ज्योति समाया है

झूठा संसार सच्चा देख पाए

यह सब भगवत की माया है

व्यर्थ ही ईश्वर करता झूठा गुमान रे सावरिया।

उनकी पवित्र आत्मा को शांति मिले यही ईश्वर से प्रार्थना करता हूं।

पंडित जसराज थे हमारे छत्रछाया

प्रख्यात शास्त्रीय गायक पद्मभूषण पंडित साजन मिश्र ने कहा कि पंडित जसराज जी का जाना संगीत के एक युग का अंत है। वे हम लोगों के छत्रछाया थे जिनके न रहने से वह रिक्त स्थान कभी नहीं भर सकता। वह हमारे संगीत जगत के सबसे वरिष्ठ और महानतम कलाकारों में से एक थे। हर धार्मिक स्थलों पर जाते थे, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च हर जगह शीष नवाते थे। सर्वधर्म सम्भाव को मानने वाले थे। अमेरिका में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए, दुख है  कि हम लोग अंतिम दर्शन में शामिल भी नहीं हो पा रहे हैं। ईश्वर उनकी पावन आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे और शोकाकुल परिवार और उनके शिष्यों को इस दुख को सहने की अपार शक्ति दे।

बीएचयू में हुआ था पंडित जी का सम्मान

बीएचयू में सामाजिक विज्ञान संकाय के प्रमुख प्रो. कौशल किशोर मिश्रा के अनुसार साल 1991-92 में पंडित जसराज जब काशी आए थे तो उन्हें बीएचयू के कला संकाय के प्रेक्षागृह में छात्रों  और अध्यापकों की ओर से सम्मानित भी किया गया था। उस समय वह अध्यापक संघ के अध्यक्ष बने थे। प्रो. मिश्रा बताते हैं कि जब उन्हें वीरभद्र मिश्रा काशी लेकर आए थे संकट मोचन संगीत कार्यक्रम में तब कई बड़े संगीतकारों ने उनका मजाक उड़ायाथा लेकिन जब भजन प्रस्तुत किए तो सभी उनके मुरीद हो गए। उन्होंने बताया कि जसराज जी काशी में ही डूबे एक महान संगीतकार थे।

भाई के मनीराम ने तबला वादन में गलती पर लगाई थी फटकार

वरिष्ठ पत्रकार कुमार अजय बताते हैं कि पंडित जसराज जब अपने भाई के मनीराम के साथ कलकत्ता में एक प्रस्तुति दे रहे थे तो तबला वादन कर कर रहे थे। कुछ गलती होने पर उन्हें उनके बड़े भाई ने उनकी जमकर फटकार लगाई थी, जिसके बाद से वह तबला छोड़ गायकी में आ गए और यहीं से उनकी संगीत श्रद्धा उन्हें संगीत सम्राट के सिंहासन तक ले गई। इस घटना की चर्चा उस समय वहां मौजूद बनारस के कई संगीत घरानों के लोग करते हैं।

तड़के चार बजे मंच ले लेता था आकाश सा विस्तार

संकट मोचन संगीत समारोह में जब तड़के चार बजे पं. जसराज के आते ही मंच का आकार मानो अनंत आकाश सा विस्तार पा जाता था। गंभीर मुद्रा लेकिन होठों पर तैरती मुस्कान। दोनों हाथ उठाए, इंतजार में नजरें गड़ाए श्रोताओं का अभिवादन करते थे और परिसर हर हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठाता था। वह गणेश राग वैरागी भैरव से गायन का श्रीगणेश करते थे। जब तक वह काशी में रहते थे उनका ठिकाना कोई पांच सितारा होटल नहीं वरन संकट मोचन में ही हनुमत दरबार में रूकते थे और बेहद सामान्य तरह से धोती-गमछा- गंजी पर।

इस साल ऑनलाइन दी थी प्रस्तुति

संकट मोचन संगीत समारोह इस साल 12 अप्रैल से शुरू हुआ था, जिसमें पं. जसराज ने हनुमान जयंती पर ही प्रभु चरणों में ऑनलाइन हाजिरी लगाई। अमेरिका से फेसबुक पर लाइव प्रस्तुति में उन्होंने हनुमत प्रभु की महिमा का बखान करते हुए गाया राम को राम बनाया तुमने, पर्वत हाथ उठाया तुमने....।


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