कम पानी में अधिक पैदावार वाली धान की प्रजाति विकसित करने पर जोर, अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान की पहल
जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को भी भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। कृषि विज्ञानियों की चुनौती बढ़ गई है कि कम पानी में बेहतर उत्पादन वाली धान की किस्म की खोज करें। इसी परिकल्पना के साथ काशी में आइआरआरआइ-सार्क का केंद्र वाराणसी में खोला गया है।
वाराणसी, जेएनएन। जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को भी भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। कृषि विज्ञानियों की चुनौती बढ़ गई है कि कम पानी में बेहतर उत्पादन वाली धान की किस्म की खोज करें। इसी परिकल्पना के साथ काशी में ईरी यानी अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइआरआरआइ-सार्क) का केंद्र वाराणसी में खोला गया है। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2018 में किया था। यहां दर्जन भर से अधिक प्रजातियों पर शोध एवं प्रदेश के विभिन्न जिलों में ट्रायल चल रहा है। ईरी का केंद्र खुलने से पूर्वांचल में कृषि, शिक्षा एवं रोजगार के अवसरों एवं आगामी कार्ययोजना के संबंध में संस्थान के निदेशक डा. सुधांशु सिंह से बात की दैनिक जागरण के संवाददाता मुकेश चंद्र श्रीवास्तव ने। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश।
डा. सुधांशु सिंह मूलत: जिला आजमगढ़ के समेंदा गांव के निवासी हैं। वह ईरी के पूर्व छात्र रहे हैं। उन्होंने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या और सस्य विज्ञान (एग्रोनामी-भूमि का उचित प्रबंध कर वैज्ञानिक विधि से फसलों का उत्पादन) में ईरी मुख्यालय, फिलीपींस से पीएचडी की है। डा. सुधांशु एक प्रशंसित कृषि विशेषज्ञ हैं और कृषि विज्ञान विशेषकर अनुसंधान और विकास एवं रणनीतिक भागीदारी, संस्थागत प्रबंधन, अलग-अलग परिवेशों के अनुरूप प्रौद्योगिकियों के विकास और उनके प्रचार-प्रसार में 26 वर्षों का व्यापक अनुभव रखते हैं। बीते एक दशक में उन्होंने दक्षिण एशिया में कृषि के उत्थान के लिये उत्कृष्ट कार्य किया है। 2011 में ईरी में शामिल होने से पूर्व राजस्थान राज्य सरकार में प्रांतीय सिविल सेवा अधिकारी के रूप में कार्य किया, जिसके कारण उन्हेंं नौकरशाही की प्रक्रियाओं और नवाचार की समझ है। इसी साल जनवरी से ईरी-सार्क में निदेशक हैैं।
सवाल : चावल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए क्या किया जा रहा हे?
-चावल की गुणवत्ता में सुधार और प्रसंस्कृत चावल उत्पादों को विकसित करने के लिए जिंक व आयरन के मोर्चे पर शोध चल रहा है, जिसमें कुछ हद तक सफलता मिली है।
सवाल : अन्य कौन सी प्रजाति, जो खास है?
- प्रारंभिक आंकड़ों में धान की कुछ प्रजातियों की पहचान की गई है, जो कम समय में पकने में सहायक होंगी।
सवाल : काला चावल को लेकर क्या चल रहा है?
-संभावित पोषण गुणवत्ता संवर्धन के साथ कई चावल आधारित उत्पाद जैसे कि पॉप्ड ब्लैक चावल के लड्डू, भुने हुए फ्लैक्ड (छोटे-छोटे टुकड़े) राइस बार, एनर्जी से भरपूर फ्लैक्ड पफ्ड राइस लड्डू भी विकसित किए गई है।
सवाल : उन्नत खेती के लिए क्या किया जा रहा है?
-उन्नत ब्रीडिंग तकनीकी से क्षेत्र की अच्छी गुणवत्ता के लिए मशहूर धान की प्रजातियों की लंबाई कम करके एवं रोग प्रतिरोधक बनाकर उत्पादन बढ़ाया जा रहा है। इसमें यहां का मशहूर जीरा 32 एवं चंदौली का ब्लैक राइस (काला चावल) भी शामिल है। इसके अलावा धान की पैदावार में पानी का अत्यधिक इस्तेमाल एक बड़ी समस्या का रूप ले चुका है। धान की ऐसी प्रजाति पर शोध जारी है जो कम पानी में भी अधिक पैदावार दे।
सवाल : चावल को अधिक पौष्टिक बनाने को लेकर क्या शोध चल रहा है?
-चावल में मिरक्रोनुट्रिएंट जैसे आयरन और जिंक की मात्रा बढ़ाने के साथ ही उसे शुगर फ्री (लो ग्लिसेमिक इंडेक्स) प्रजाति का बनाने का काम भी शुरू किया गया है। यही नहीं, हर सीजन में धान की नर्सरी तैयार करने के लिए अनुसंधान चल रहा है। स्पीड ब्रीडिंग फेसिलिटी को स्थापित करने का काम कर रहा है, जिसके द्वारा कम समय में ही धान की नई प्रजातियां तैयार की जाएंगी।
सवाल : स्पीड ब्रीडिंग से क्या लाभ होगा?
- स्पीड ब्रीडिंग फेसिलिटी से धान की तीन से चार पीढिय़ों की पैदावार एक वर्ष में ली जा सकेगी।
सवाल : पुआल के निस्तारण की समस्या बढ़ रही हैं?
-धान के पुआल को जलाने की समस्या पर भी काम करने की योजना है। कुछ ऐसी तकनीकों का प्रचार-प्रसार करेंगे, जिससे कम समय में अतिरिक्त पुआल का खेत अथवा खेत से बाहर लाकर फायदेमंद रूप में प्रबंधन किया जा सके।