घरों में अदा की गई ईद-उल-अजहा की नमाज, प्रशासन की चप्पे चप्पे पर रही निगहबानी
ईद-उल-अजहा यानि बकरीद का त्योहार शनिवार को अकीदत के साथ मनाया गया।
वाराणसी, जेएनएन। ईद-उल-अजहा यानि बकरीद का त्योहार शनिवार को अकीदत के साथ मनाया गया। शासन - प्रशासन की गाइडलाइन का पालन करते हुए घरों में ही नमाज अदा की गई। त्योहार से पहले मुस्लिम धर्मगुरुओं की ओर से अपील की गई थी कि सरकार की गाइडलाइन का पालन करें। साथ ही गले मिलने के बजाय दूर से ही या फोन- मैसेज कर बधाई दें। अमूमन पूूूूूूूर्वांचल में सभी जगह जिला प्रशासन की सक्रियता से कहीं भी भीड़ नहींं उमड़ी और सुनिश्चित किया कि लाेग अनावश्यक घरों से बाहर न निकलें। कई जगहों पर कुर्बानी की रस्म अदायगी की गई और घरों में पकवान बनाए गए।
जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अमित पाठक के साथ शनिवार को ईद-उल-जुहा पर्व के दृष्टिगत शहर के नदेसर, लहुराबीर, कोतवाली, नई सड़क, गोदौलिया, मदनपुरा, सोनारपुरा, रेवड़ी तालाब, लाट भैरव, भेलूपुर, सिगरा, फातमान रोड, तेलियाबाग, चौकाघाट, मकबूल आलम रोड सहित विभिन्न क्षेत्रों में चक्रमण कर स्थिति का जायजा भी लिया।
ईद-उल-अजहा पर भी ईद-उल-फितर की तरह ईदगाह व मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है। लेकिन कोरोना के प्रकोप के चलते ईद-उल-फितर की नमाज भी घरों में अदा हुई थी और शनिवार को ईद-उल-अजहा की नमाज भी घरों में ही लोग अदा किए। शासन-प्रशासन की गाइडलाइन का पूरी तरह पालन करते हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने त्योहार मनाया। घरों में नमाज अदा करने के बाद पर्दे में ही लोगों ने कुर्बानी दी। कोरोना से बचाव के लिए लोगों ने पूरी तरह सावधानी बरतते हुए एक दूसरे से गले भी नहीं मिलेे।
अल्लाह ने ली थी हजरत इब्राहिम की परीक्षा
इस्लामिक साल के अंतिम महीने जिल हिज्जा की दसवीं तारीख को ईद-उल-अजहा त्योहार मनाया जाता है। इसकी शुरुआत एक प्रेरणादायक प्रसंग से जुड़ी है। गाजीपुर में मौलाना सालिम अबु नस्र ने बताया कि हजरत इब्राहिम ने एक सपना देखा था, जिसमें अल्लाह ने उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने को कही। उन्होंने कई प्रिय पशुओं की कुर्बानी दी, लेकिन अल्लाह सपने में फिर भी प्यारी चीज कुर्बान करने को कहते रहे। इब्रहिम समझ गए कि अल्लाह को उनके इकलौते बेटे इस्माइल की कुर्बानी चाहिए। 90 वर्ष की उम्र में बेटा पैदा हुआ था। बेटे को कुर्बान करने के लिए वह मक्का के नजदीक मिना नामक पहाड़ी पर पहुंचे। हजरत इब्राहिम ने बेटे की गर्दन पर छुरियां दी और आंख से पट्टी उतारी तो देखा कि देवदूत हजरत जिब्राइल ने इस्माइल को वहां से हटाकर एक दुंबा रख दिया, जिसकी इब्राहिम ने कुर्बानी दी। दरअसल, अल्लाह को इस्माइल की कुर्बानी नहीं चाहिए थी, वो तो सिर्फ इब्राहिम की परीक्षा ले रहे थे। तभी से ईद-उल-अजहा मनाया जाता है। कुर्बानी को सुन्नते इब्राहिम कहा जाता है। कुर्बानी यानी त्याग जो हर धर्म में अल्लाह और भगवान को पाने का साधन है।