सहजता ही बड़ी पहचान हैं मऊ काझाखुर्द के बड़े हाकिम की, सेवानिवृत्त आइएएस अरविंद कुमार शर्मा की कहानी
गुजरात कैडर के सेवानिवृत्त आइएएस अरविंद कुमार शर्मा सभी के साथ बराबरी का व्यवहार करते हैैं। गांव से सैकड़ों मील दूर का सफर कर कोई गुजरात पहुंचा तो उसे ऐसा सम्मान व अपनापन मिला कि वह न सिर्फ गदगद हो गया वरन पूरी जिंदगी भूल पाना मुश्किल है।
मऊ [सूर्यकांत त्रिपाठी]। गुजरात कैडर के सेवानिवृत्त आइएएस अरविंद कुमार शर्मा सभी के साथ बराबरी का व्यवहार करते हैैं। गांव से सैकड़ों मील दूर का सफर कर कोई गुजरात पहुंचा तो उसे ऐसा सम्मान व अपनापन मिला कि वह न सिर्फ गदगद हो गया वरन पूरी जिंदगी भूल पाना मुश्किल है। ऐसे ही संस्मरणों को काझाखुर्द गांव के कुछ लोगों ने दैनिक जागरण से गुरुवार को साझा किया।
अपने बगल में कुर्सी पर बैठाया
रामसमुझ चौहान ने पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया कि अरविंद बाबू मेहसाणा के कमिश्नर थे और वे उनसे मिलने गए थे। अपनी कुर्सी के बगल में उन्होंने दूसरी कुर्सी रखवाई और बातचीत करते हुए प्रशासनिक कार्य भी किए। गांव वालों को उन्होंने कभी अहसास नहीं होने दिया कि वे कोई बड़े अधिकारी हैं।
ग्रामीणों के साथ जमीन पर बैठकर भोजन करने में कोई संकोच नहीं :
एके शर्मा के पड़ोसी अनिल कुमार राय के मुताबिक उन्होंने गांव वालों को कभी भान नहीं होने दिया कि वे इतने बड़े ओहदे पर हैं। गांव में किसी आयोजन में सब जमीन पर बैठ कर खाते तो अरविंद शर्मा भी कतई संकोच नहीं करते हैैं। उनको अधिकतर बच्चों के नाम याद हैं और नाम से ही बुलाते हैं।
कूट-कूट कर भरी है सहजता
गांव के ही नरेंद्र तिवारी कहते हैैं कि सहजता तो उनके अंदर कूट-कूट कर भरी है। अपने आवास के सामने जैसे ही वे किसी को मिलने के लिए आते देखते तो वह स्वयं सीढिय़ां उतरकर अभिवादन करते हैं। आगंतुक को प्रेम से बैठाकर भोजपूरी या ङ्क्षहदी में बात करने लगते हैैं।
घर रहने पर गांव के आयोजनों में होते हैं शामिल
अरविंद शर्मा के चचेरे भाई राजेंद्र राय ने कई संस्मरण सुनाए। बताया कि जब कभी वे गांव पर होते हैं तो सबसे मुलाकात करना नहीं भूलते। पूरे गांव में घूमकर सबका हाल-चाल जानते हैं। पिछली बार मार्च में जब वे आए थे तो मेरी तबीयत के बारे में जानकारी लिए थे।