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गंवई सियासत शुरू : पंचायत चुनाव से पूर्व विभागीय कार्यों में शुरू हुआ ब्रांडिंग का दौर

निर्वाचन आयोग की ओर से त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराने को लेकर अभी घोषणा नहीं हुई है। हालांकि तैयारी को हरी झंडी दे दी गई है। मतदाता सूची का वृहद पुनरीक्षण उसी का हिस्सा है। बीएलओ घर-घर जाकर मतदाता सूची ठीक कर रहे हैं।

By Edited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 07:50 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 01:55 PM (IST)
गंवई सियासत शुरू : पंचायत चुनाव से पूर्व विभागीय कार्यों में शुरू हुआ ब्रांडिंग का दौर
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराने को लेकर अभी घोषणा नहीं हुई है, हालांकि तैयारी को हरी झंडी दे दी गई है।

वाराणसी, जेएनएन। निर्वाचन आयोग की ओर से अब तक त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराने को लेकर अभी घोषणा नहीं हुई है। हालांकि, पंचायत चुनावाें की तैयारी को हरी झंडी दे दी गई है। मतदाता सूची का वृहद पुनरीक्षण उसी का हिस्सा है। बीएलओ घर-घर जाकर मतदाता सूची ठीक कर रहे हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि मार्च-अप्रैल में चुनाव होंगे। इधर, पंचायतों का कार्यकाल 25 दिसंबर को समाप्त हो रहा है। तत्पश्चात, वित्तीय व प्रशासनिक अधिकारी नहीं रहेंगे। हालांकि प्रधान औपचारिक तौर पर नए पंचायत के गठन तक कुर्सी पर विराजमान रहेंगे। प्रशासन हरहाल में ग्राम प्रधान के कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व शासन की प्राथमिकता वाले सभी कार्यक्रमों को पूरा कराने की जुगत में है।

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सचिवों पर सख्ती का डंडा चल रहा है तो वहीं प्रधान जी को पुचकारने में जुटा हुआ है ताकि तय अवधि में कार्य पूरा हो सके। बड़ी पंचायतों के पास 15वें वित्त आयोग व राज्य वित्त आयोग से ठीक ठाक पैसा मिला है, किंतु शासन की प्राथमिकता वाले कार्यक्रम से ज्यादा यह जनता से जुड़ी समस्याओं को हल करने की कोशिश में लगे हैं। मसलन, जनता को लुभाने की राह निकल पड़े हैं। किसी को आवास तो किसी को पट्टा तो कुछ वंचितों को किसान सम्मान राशि दिलाने को लेकर सरकारी दफ्तरों की दौड़ लगा रहे हैं।

उधर, सचिव नौकरी की दुहाई देकर प्रधान से कार्य पूरा कराने की सिफारिश में लगे हुए हैं। ग्राम प्रधानों का कहना है कि हम अपना चुनाव देखें या आपकी नौकरी। छोटी पंचायतों की अलग कहानी है। वित्त आयोग से आबादी कम होने के कारण पर्याप्त बजट इनके हाथ नहीं लगा है। कुछ पंचायतों को तो राज्य वित्त आयोग से मिली धनराशि मानदेय देने को भी पर्याप्त नहीं है। 15वें वित्त आयोग से मुश्किल से पांच-छह लाख रुपये मिले हैं जबकि हाथ में काम बड़े-बड़े हैं।

15 लाख पंचायत भवन के निर्माण पर तो वहीं न्यूनतम तीन लाख की राशि सामुदायिक शौचालय पर खर्च करने हैं। हालांकि मनरेगा से धनराशि मिल रही है लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं हो रही है। जिले के 699 ग्राम पंचायतों में इस तरह की पंचायतें लगभग तीस फीसद हैं। प्रशासन सब कुछ जानकार अंजान बना हुआ है। वह अपना राग अलाप रहा है वहीं पंचायतें अपनी डफली बजाकर जनता को लुभाने में जुट गई हैं। प्रधान अब तक की उपलब्धियां गिनाने के संग गांव को संवारने के नए-नए सपने दिखा रहे हैं। विरोधी कमियां गिना रहे हैं।


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