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संस्कृत व संस्कृति के बदौलत ही देश एकता के सूत्र में, वाराणसी में बोलीं यूपी की राज्‍यपाल आनंदीबेन पटेल

राज्यपाल व कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने कहा संस्कृत मात्र एक भाषा भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। भारतीय सभ्यता की जड़ है। हमारी परंपरा को गतिमान करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके साथ-साथ समस्त भारतीय भाषाओं की पोषिका है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 02 Mar 2021 02:58 PM (IST)Updated: Tue, 02 Mar 2021 02:58 PM (IST)
संस्कृत व संस्कृति के बदौलत ही देश एकता के सूत्र में, वाराणसी में बोलीं यूपी की राज्‍यपाल आनंदीबेन पटेल
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित 38वें दीक्षा समारोह को संबोधित करतीं राज्‍यपाल।

वाराणसी, जेएनएन। राज्यपाल व कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने कहा संस्कृत मात्र एक भाषा भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। भारतीय सभ्यता की जड़ है। हमारी परंपरा को गतिमान करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके साथ-साथ समस्त भारतीय भाषाओं की पोषिका है। संस्कृत ज्ञान के बिना किसी भी भारतीय भाषा में पूर्णता प्राप्ति नहीं हो सकती है। इस विद्या में मात्र कर्मकांड नहीं है अपितु आर्य भट्ट, वास्तु शास्त्र 64 कलाएं, राजनीतिक शास्त्र, नीति शास्त्र, समाज शास्त्र, नाट्य शास्त्र, आदि अनेक लोक उपयोगी विषय निहित है जो आज भी प्रसांगिक है। इसके साथ अध्यात्म विद्या की पराकाष्ठा यहां देखने को मिलती है। इसी से संपूर्ण विश्व में आध्यात्म का विस्तार हुआ है।  संस्कृत भाषा व सनातन संस्कृति के कारण ही देश एकता के सूत्र में बंधा हुआ है।

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वह मंगलवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर स्थित ऐतिहासिक मुख्य भवन में आयोजित 38वें दीक्षा समारोह की अध्यक्षता कर रहीं थीं। उन्होंने कहा कि संस्कृत शास्त्र कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा कामरूप से कच्छ तक के भू-भाग को एक मान कर चिंतन किया गया है। सतपुण्यपुरी, चार धाम, द्वावस ज्योतिलिंग चारों पीठ देश को एकता के सूत्र में बांधे हुए हैं। प्रत्येक भारतीय प्रात:काल स्नान के समय गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी जैसे पवित्र नदियों का स्मरण करते थे लेकिन  खेद है कि भारतीय की आत्मा संस्कृत भाषा बहुत वर्षों से उपेक्षित रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी इसके विकास का सार्थक प्रत्यन्न नहीं किया गया। यह एक सुखद विषय है। वर्तमान भारत सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षानीति में संस्कृत भाषा में निहित ज्ञान विज्ञान को भारतीय शिक्षा का मूल आधार बनाने पर जोर दिया गया है। इससे चरण श्रुतुत आर्यभट्ट शंकराचार्य चाणक्य आदि का इस शिक्षा नीति में स्मरण किया गया है।

सरकार संस्कृत शिक्षा को विस्तारित करने हेतु दृढ़ संकल्पित

नई शिक्षा नीति के अतिरिक्त संस्कृत की प्रासंगिकता को नई दिशा मिल सकती है। संस्कृत अध्ययन से असीमित रोजगार की संभावनाएं हैं। अब इस शिक्षा नीति में विषय को चरितार्थ करने के लिए अध्यापकों को कठिन परिश्रम करना होगा। संस्कृत शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को जन सामान्य तक पहुंचाने के लिए उसे सरल भाषा में प्रस्तुत करना होगा। संस्कृत विद्या के अध्ययन का लक्ष्य मात्र सेवा प्राप्त नहीं है अपितु संपूर्ण राष्ट्र की गरिमा की रक्षा करने का महान दायित्व भी संस्कृत विद्वानों के ऊपर है। हमारी केंद्र सरकार संस्कृत शिक्षा को विस्तारित करने हेतु दृढ़ संकल्पित है। सरकार की दृढ़ संकल्प इच्छा से ही तीन विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा दिया जा चुका है। उत्तर प्रदेश सरकार भी संस्कृत भाषा के संबर्दद्धन व प्रचार-प्रसार के लिए दृढ़ संकल्पित है।  संस्कृत विद्या के प्रभाव से भारत वर्ष के विद्वान पूरे विश्व को अध्यात्म व नैतिकता की शिक्षा देते है। इसका स्पष्ट उल्लेख प्राचीन ग्रंथ मनोस्मृति में किया गया है कि भारत वर्ष के विद्वानों से समस्त संसार के लोग अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ग्रहण करें। वेद आदि सभी संस्कृत शास्त्रों में मात्र एक दिवसीय सीमित चिंतन नहीं है अपितु यह विद्या समस्त जीवों के रक्षा की शिक्षा देती है।

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश सहित समस्त ब्रह्मंड पर्यावरण रक्षा के सूत्र वेदों में उपलब्ध है। हम सभी संस्कृत रूपी मूल्य रत्न के उत्तराधिकारी है। अत: हमें सावधानी पूर्वक इसका स्मरण करना चाहिए। विश्वविद्यालयों को शिक्षा के साथ सामाजिक दायित्व का भी निवर्हन करना चाहिए ताकि सामाजिक समस्याओं का जल्द समाधान हो सके। प्रधानमंत्री ने 2025 तक टीवी मुक्त भारत की कल्पना की है। हम सभी को इसे साकार करना है। ऐसे में विश्वविद्यालय भी दस बच्चों को गोद लें और आंगनबाड़ी केंद्रों को पुष्टाहार उपलब्ध कराने की दिशा में कार्य करें। इसी प्रकार संबद्ध कालेजों को भी वन कालेज वन विलेज अर्थात एक महाविद्यालय को कम से कम एक गांव गोद लेना चाहिए। कहा कि दारासिकोह जैसे कई मुस्लिम छात्राें ने यहां अध्ययन किया है। आज भी कई मुस्लिम छात्र यहां अध्ययन कर रहे हैं। विदेशी छात्र अध्ययन व अनुसंधान के लिए यहां आ रहे हैं।

 

आपके पास अब स्वतंत्र रूप में दायित्व निर्वाह की योग्यता आ गई

समारोह के मुख्य अतिथि  विदेश मंत्रालय के अपर सचिव अखिलेश मिश्र ने कहा कि दीक्षा का अंत नहीं है। दीक्षा का अर्थ है कि आपके पास अब स्वतंत्र रूप में दायित्व निर्वाह की योग्यता आ गई है। अब श्रद्धा व संकल्प से आप नव अध्याय शुरू होता है। पश्चिम विज्ञान जहां यह कहता है कि आपनी आंखों से देखो और उसे ही सत्य माने। वहीं देववाणी संस्कृत हमें आंखे बंद कर ध्यान से देखने को कहती है। वह परमसत्य का अनुभव कराती है जो इंद्रियों की सीमा के परे। संस्कृत व संस्कृति के कारण ही देश विविधता का देश है। विश्वबंधुत्व की भावना रही है। भारतीय संतों, ऋषियों ने जटिल से जटिल समस्याओं को अपने तर्क व मनन से सुलझाने का काम किया है और विरोधाभाव गुणों में भी सामंजस्य बैठाना सिखाया। समरता स्थापित करने की शक्ति संस्कृत में ही है। इस दौरान कुलाधिपति ने 29 मेधावियों को 57 स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक प्रदान किया। वहीं संस्कृत के प्रकांड विद्वान व काशी विद्या विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो राम यत्न शुक्ल को महामहोपाध्याय की की मानद उपाधि प्रदान की। इसके अलावा कुलाधिपति ने संस्कृत विद्यालयों के बच्चों को भी पुरस्कृत किया। समारोह में 17244 को शास्त्री, आचार्य, पीएचडी सहित अन्य पाठ्यक्रमों की उपाधि व सर्टिफिकेट प्रदान करने की घोषणा की गई। स्वागत कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल, संचालन डा. हरिप्रसाद अधिकारी व धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव राज बहादुर ने किया।


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