मानसूनी बारिश से कर्मनाशा नदी को मिला असली रूप, किनारे की भूमि होती है उपजाऊ
मानसून का आगमन होते ही कर्मनाशा अपने असली रूप में आना शुरू हो गई है। कर्मनाशा नदी के किनारे स्थित गांवों की भूमि बड़ी ही उपजाऊ होती है।
गाजीपुर, जेएनएन। मानसून का आगमन होते ही कर्मनाशा अपने असली रूप में आना शुरू हो गई है। मान्यता है कि कर्मनाशा भारत की अपवित्र नदी है। इसके पानी छूने से भी लोग डरते हैं। कहा जाता है कि कर्मनाशा के पानी छूने से ही मनुष्य के सारे पुण्य धुल जाते हैं, जबकि हकीकत में देखा जाए तो ऐसा कुछ नहीं है। कैमूर की पहाडिय़ों से निकलने वाली यह नदी यूपी-बिहार के लिए हर नदियों की तरह ही जीवनदायिनी है। इस नदी में हर रोज हजारों लोग डुबकियां लगाते नजर आते हैं। वहीं बिहार का प्रसिद्ध पर्व छठ भी इस नदी में श्रद्धा के साथ किया जाता है। इस बार समय से पूर्व मानसून के दस्तक देने से कर्मनाशा में जलस्तर बढ़ रहा है। कर्मनाशा नदी जिन गांवों के लिए वरदान है, तो बाढ़ के समय उन गांवों में कहर भी बरपाती है।
भर गई है नदी की पेटी
गर्मी के मौसम में जगह-जगह दम तोड़ती कर्मनाशा मानसून के दस्तक देते ही अपने वास्तविक रूप में नजर आ रही है। नदी का पेटी भर जाने से काफी आकर्षक हो गई है। इस समय जितना साफ पानी है। उतना ही साफ नदी के दोनों किनारे हो गए हैं। कर्मनाशा के दोनों किनारों पर हरियाली ही हरियाली नजर आ रही है। देखने में ऐसा लगता है कि नदी के दोनों किनारों पर हरी घासों का कारपेट बिछाया गया हो।
बिहार के कैमूर जिले से निकलती है कर्मनाशा
बिहार के कैमूर जिले से निकलने वाली कर्मनाशा नदी यूपी - बिहार की सीमा को विभाजित करती है। कर्मनाशा सोनभद्र, चंदौली से होते हुए जिले में बहती है और बारा गांव के पास गंगा में मिल जाती है। कर्मनाशा नदी की लंबाई करीब 192 किलोमीटर है। इस नदी का 116 किलोमीटर का हिस्सा यूपी में आता है, जबकि बचे हुए 76 किलोमीटर यूपी-बिहार की सीमा को विभाजित करता है।
किनारे की भूमि होती है उपजाऊ
कर्मनाशा नदी के किनारे स्थित गांवों की भूमि बड़ी ही उपजाऊ होती है। बिना खाद व दवा के भी फसल बेहतर होती है। कारण यह है कि बरसात के दिनों में नदी में उपजाऊ मिट्टी आने से खेती ठीक से होती है। यह नदी फसल की सिंचाई के लिए पानी की जरूरत को भी पूरी करती है। नदी के तट पर बसे गांवों के लोग नदी किनारे सब्जी की खेती कर गाढ़ी कमाई करते हैं। मछुआरों के लिए भी यह नदी रोजी-रोटी के लिए प्रमुख जरिया है। समय से पहले लगातार बारिश होने से जलस्तर में वृद्धि देख किसान थोड़ा मायूस जरूर हुए थे। लेकिन अभी परेशानी की कोई बात नहीं है।