जौनपुर में कोरोना संक्रमण के कारण इस बार दुर्गापूजा में दिखेंगी सिर्फ तीन से चार फीट की मूर्तियां
इस बार कोरोना संक्रमण के कारण दुर्गापूजा पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है। जौनपुर में तीन से चार फीट की मूर्तियां बनाई जा रही हैं। शासन से गाइड लाइन का इंतजार किया जा रहा है।
जौनपुर, जेएनएन। हिंदू धर्म में दुर्गापूजा का विशेष महत्व होता है। यह समाज में जन-जन की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। इस बार कोरोना संक्रमण के कारण इस पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है। इसके भय से गैर राज्यों से कम मूर्तिकार जिले में इस बार आए हैं। ऐसे में इस बार केवल पांच से छह खटाल ही लग पाए हैं। जहां सिर्फ तीन से चार फीट की मूर्तियां बनाई जा रही हैं। वजह कि सभी डरे हुए हैं कि इस बार शासन से गाइड लाइन न मिलने पर पंडालों में मूर्तियां रखी जाएगी या नहीं। वहीं पूजा समितियों को शासन के गाइड लाइन का इंतजार किया जा रहा है। श्री दुर्गापूजा महासमिति के पदाधिकारियों की मानें तो अगर पंडाल में मूर्ति रखने की अनुमति नहीं मिलेगी तो उस स्थान पर छोटे से टेंट में कलश रखकर पूजा पाठ किया जाएगा।
जिले में प्रत्येक वर्ष बंगाल व बिहार से दुर्गा प्रतिमा बनाने वालों की संख्या जिले में करीब 35 हुआ करती थी, इस बार संक्रमण को देखते हुए महज पांच से छह लोग आए हैं। पहले जहां पालीटेक्निक से वन विहार रोड तक पांच खटाल लगते थे अब केवल दो लगे हैं। सिपाह में दो चल रहे हैं। बनरहिया बाग के पास तीन-चार खटाल लगते थे इस बार एक भी नहीं लगे है। मछलीशहर में तीन से चार मूर्तिकार आते थे इस बार महज एक है। बदलापुर तहसील में एक भी नहीं आए हैं। मडिय़ाहूं व शाहगंज में पुलिस द्वारा बंद करा दिया गया है। चौकिया देवचंदपुर के पास लोकल मूर्तिकार हैं, जो इन लोगों के साथ सीखकर अपनी मूर्ति तैयार कर रहे हैं। जिन जगहों पर मूर्तिकार आकर निर्माण कर भी रहे हैं वहां भी केवल तीन-चार फीट की मूर्ति बन रही है।
दो हजार जगहों पर रखी जाती रही हैं मूर्तियां
श्री दुर्गापूजा महासमिति जौनपुर के पूर्व अध्यक्ष व केंद्रीय दुर्गापूजा महासमिति वाराणसी के विशिष्ट सदस्य शशांक सिंह ने बताया कि जिले में संस्था से पंजीकृत समितियों की संख्या 650 से 700 हैं, बिना पंजीकरण के जिले भर में कुुल दो हजार समितियां हैं जो पंडाल में मूर्ति रखकर पूजा-पाठ करती हैं।
इस बाबत श्री दुर्गापूजा महासमिति जौनपुर के अध्यक्ष विजय सिंह ने बताया कि जनमानस को ध्यान में रखते हुए शासन से जो फैसला होगा उस पर अमल किया जाएगा। अगर पंडाल बनाकर मूर्तियों को नहीं रखने दिया जाएगा, तो समितियां छोटे से टेंट में कलश रखकर हवन-पूजन करेंगी।