Move to Jagran APP

बीएचयू नेत्र संस्थान के डा. राजेंद्र प्रकाश मौर्या बोले - 'आंखों पर विशेष ध्यान दें मधुमेह रोगी'

अग्नाशय (पेनक्रियाज) अन्त स्त्रावी ग्रन्थि से निकलने वाला इन्सुलिन नामक हार्मोन की मात्रा या गुणवत्ता में कमी हो जाती है। इससे शरीर में ग्लूकोज का भडारण एवं शरीर की कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है। इसके फलस्वरूप रक्त में शक्कर (ग्लूकोज) की मात्रा बढ़ जाती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 23 Nov 2021 05:05 PM (IST)Updated: Tue, 23 Nov 2021 05:05 PM (IST)
बीएचयू नेत्र संस्थान के डा. राजेंद्र प्रकाश मौर्या बोले - 'आंखों पर विशेष ध्यान दें मधुमेह रोगी'
ग्लूकोज का भडारण एवं शरीर की कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। मधुमेह एक मेटाबोलिक रोग है, जिसमें पेट के उपरी हिस्से में पाए जाने वाले अग्नाशय (पेनक्रियाज) नामक अन्त: स्त्रावी ग्रन्थि से निकलने वाला इन्सुलिन नामक हार्मोन की मात्रा या गुणवत्ता में कमी हो जाती है। इससे शरीर में ग्लूकोज का भडारण एवं शरीर की कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है। इसके फलस्वरूप रक्त में शक्कर (ग्लूकोज) की मात्रा बढ़ जाती है।

loksabha election banner

दो प्रकार के मधुमेह : चिकित्सा विज्ञान संस्थान स्थित क्षेत्रीय नेत्र संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर डा. राजेंद्र प्रकाश मौर्य बताते हैं कि डायविटिज मुख्यत: दो प्रकार का होता है। पहला टाइप-1 जिसे ‘‘इन्सुलिन निर्भर मधुमेह’’ भी कहते है। यह किशोरावस्था में होता है या रोगी की उम्र अक्सर 35 वर्ष से कम होती है। रोगी का वजन सामान्य या कम होता है। रोग तेजी से बढ़ता है। इलाज के लिए इन्सुलिन अत्यन्त आवश्यक होता है। दूसरा टाइप-2 होता है। डायविटीज (परिपक्व उम्र का मधुमेह) यानी ‘‘इन्सुलिन अनिर्भर मधुमेह।’’ रोगी 50-60 वर्ष के होते है। वजन सामान्य में अधिक होता है। इलाज के लिए इन्सुलिन आवश्यक नहीं होता है। हमारे देश में 95 प्रतिशत रोगी टाइप-2 मधुमेह के है।

मधुमेह बहुकारक बिमारी है, जिसके लिए कई फैक्टर्स जिम्मेदार है जैसे-व्यक्ति की शारीरीक बनावट, ‘आनुवंशिक संवेदनशीलता’ (जिनेटिक ससेप्टीवीलिटी), आसीन जीवन शैली, व्यायाम की कमी, मोटापा, तनाव, जकफुड, अत्यधिक शराब, ध्रुमपान, हार्मोन व स्टेरायड थेरेपी आदि। हाल में देखा गया है कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण भी लोगों में मधुमेह का खतरा बढ़ गया है।

कितना खतरनाक है मधुमेह : मधुमेह एक जटिल बिमारी है। लम्बे समय तक अनियन्त्रित मधुमेह हमारे शरीर के गुर्दे, हृदय, मस्तिक, आँखों व तन्त्रिका तन्तु (नसो) को क्षतिग्रस्त कर देता है। आकड़े देखा जाय तो आज पूरे विश्व में लगभग 44 करोड़ 20 लाख मधुमेह के रोगी है जिसमे प्रतिवर्ष 6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो रही है। विश्व के कुल मधुमेह रोगियों में लगभग 50 प्रतिशत हमारे भारतवर्ष में है। जिसमे से 73 प्रतिशत शहरी इलाके के रहने वाले लोग है। ऐसा अनुमान है कि विश्व में मधुमेह से पिडित होने वाला हर पाँचवा व्यक्ति भारतीय होगा। जानकारी के आभाव में डायविटीज की समस्या गम्भीर होती जा रही है।

मधुमेह का आंखों पर प्रभाव : मधुमेह के रोगियों में सबसे अधिक प्रभाव आंख के परदे (रेटिना) पर पड़ता है जिसे ‘‘डायबेटिक रेटिनोपैथी’’ कहते है। मधुमेह के रोगी की ‘दृष्टितीक्ष्णता’ (रोशनी) कम हो जाती है तथा दूर व नजदीक के चश्मे का पावर जल्दी-जल्दी बदलने लगता है। ऐसा रक्त में शक्कर बढ़ने से आँख की काली रोम पिड (सिलियराबाडी) में ग्लाइकोजन के जमा होने तथा आंख के लेन्स में सोरबिटाल नामक रसायन के जमा होने से होता है। रक्त मे शक्कर बढ़ने से लेन्स का रिफ्रक्टिव इन्डेक्स (पावर) बढ़ जाता है और शक्कर की मात्रा कम होने पर चश्मे का पावर पुन: घट जाता है। मधुमेह के रोगियों में वृद्धावस्था में होने वाला मोतिया बिन्द (सेनाइल कटरैक्ट) 10-15 वर्ष पूर्व हो जाता है। अनियन्त्रित मधुमेह के रोगियों में कभी-कभी ‘‘नेत्रवाह्य पेशीघात’’ हो जाता है। इसमे तीसरी व छठी क्रेनियल तंन्त्रिका तन्तु (नश) का लकवा मारने के कारण आँखों में भेगापन हो जाता है। व्यक्ति को वस्तु दो-दो दिखने लगती है।

कैसे होती है डायबिटिक रेटिनोपैथी : डायबेटिक रेटिनोपैथी (मधुमेह जनित दृष्टिपटल विकृति) सबसे अधिक पाया जाने वाला नेत्र विकार है। यह रक्त में शक्कर की मात्रा पर निर्भर नहीं करता है बल्कि मधुमेह कितने वर्षो से रोगी को है इस बात पर निर्भर करता है। देखा गया है कि 10 से 15 वर्ष पुराना मधुमेह होने पर 75 से 95 प्रतिशत रोगियों के परदे में रेटिनोपैथी के लक्षण मिलते है। कम उम्र से मधुमेह होने वालो में डायबेटिक रेटिनोपैथी की सम्भावना ज्यादा होती है। यदि रोगी में मधुमेह के साथ उच्च रक्तचाप भी हो तो विकृति और जटिल हो जाती है।

मधुमेह के रोगी में रक्त में शक्कर बढ़ने से रेटिना की रक्त वाहिनियों की ‘‘म्यूरल’ आन्तरिक कोशिकाओं में सोरबिटाल जमा होने से कोशिकाएँ कमजोर हो जाती है तथा रक्तवाहिनिया फूल जाती है जिसे ‘माइक्रो एन्यूरिजम’ कहते है। जिसके कारण रेटिना में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है जिसमे परदे में सूजन हो जाती है।

रेटिना को कम आक्सिजन मिलने से कुछ हानिकारक रासायनिक पदार्थ निकलते है जिसे हम ‘‘वैसोजिनिक फैक्टर’’ कहते है। इसके प्रभाव से परदे में नयी रक्त वाहिनिया बनने लगती है, जो काफी कमजोर होती है। इन नई रक्त वाहिनियों के फटने से आंख के अन्दर रेटिना में तथा विट्रियस द्रव में रक्त स्त्राव (हैमरेज) हो जाता है। इससे रोगी को अचानक दिखाई पड़ना बन्द हो जाता है। समय के साथ-साथ रक्त वाहिनियों के पास तथा विट्रियस में सफेद मेम्व्रेन (झिल्ली) बनने लगती है। जिसके सिकुडने से परदा अन्दर की तरफ खिच जाता है। इसके फलस्वरूप आँख के परदे का विच्छेद (रेटिनल डिटैचमेन्ट) हो जाता है। यह डायबेटिक रेटिनोपैथी की गम्भीर अवस्था होती है। जिसे ‘‘प्रोलिफरेटिव डायबेटिक रेटिनोपैथी’’ कहते है जो की दृष्टिहीनता का मुख्यकारण है। डायबेटिक मैकुलर इडीमा (सूजन) मधुमेह के रोगियों में दृष्टिहीनता का एक अन्य कारण है।

डायबिटिक रेटिनोपैथी की पहचान व निदान : मधुमेह के रोगियों में रेटिनोपैथी का पता लगाने के लिए आफ्थैल्मोस्कोप यन्त्र द्वारा परदे (फडस) की जांच नेत्र विशेषज्ञ द्वारा किया जाना चाहिए तथा फंडस कैमरा के माध्यम से फंडस कलर फोटोग्राफ लिया जाता है। रेटिना में रिसाव वाली रक्तवहिनकाओं का पता लगाने के लिए ‘‘फ्लोरेसिन एंजियोग्राफी’’ तकनीक से जांचते हैं। रेटिना के अन्दर रक्त वाहिनियों की विकृति तथा मैक्युला के सूजन की पुष्ठि हेतु ओसीटी जांच करते है।

डायबिटिक रेटिनोपैथी का उपचार : डायबेटिक रेटिनोपैथी का इलाज रेटिनोपैथी के स्टेज व विस्तार क्षेत्र पर निर्भर करता है। मधुमह जनित दृष्टिपटल क्षति को रोकने हेतु नई रिसाव वाली रक्त वाहिनियों को लेजर फोटो काग्यूलेशन द्वारा जला दिया जाता है। ‘‘विट्रियस हैमरेज एवं ट्रैक्सनल रेटिनल डिटैचमेन्ट के लिए ‘‘विट्रेक्टॉमी’’ सर्जरी करते है। जिसमे आँख के अन्दर से रक्त मिश्रीत विट्रियस को काटकर निकाल देते है तथा इसकी जगह कृत्रिम विट्रियस द्रव डाल दिया जाता है। मक्यूला में सूजने के लिए आँख के अन्दर ''इन्ट्राविट्रियल ऐवास्टिन (एण्टी रक्त वाहिकीय ग्रोथ फैक्टर) इन्जेक्शन'' एक माह के अन्तराल पर देते है।

मधुमेह जनित नेत्र विकार के रोगियों को क्या सन्देश देना चाहेगें : मधुमेह ऐसा रोग है जिसे नियन्त्रित तो कर सकते है मगर स्थायी रूप से ठीक नहीं किया जा सकता है। मधुमेह की चिकित्सा आहार, व्यायाम एवं दवाओं से किया जाता है। मधुमेह जनित नेत्र विकार से बचने के लिए-

मधुमेह के रोगी समय-समय पर अपने ब्लड की जाँच (ब्लड सूगर का लेवल तथा एच.वी.ए1.सी. ग्लोइको साइलेटेड हिमोग्लोबिन) कराते रहे। समय-समय पर आँख के पावर व परदे (फंडस) की जाँच करानी चाहिए। आवश्यकतानुसार रेटिना का ओ.सी.टी. जाँच भी कराऐं। रोगी को तनाव मुक्त वातावरण में रहना चाहिए तथा भोजन व व्यायाम के प्रति सजग रहना चाहिए। यदि आँखों के सामने काले धब्बे या अस्थायी अचानक प्रकाश/चमक या फुलझड़ीया दिखे या अचानक रोशनी कम हो जाय तो तुरन्त रेटिना विशेषज्ञ से सम्पर्क करें। उच्च रक्त चाप, मोटापा को नियन्त्रित रखे। मधुमेह के रोगी अपने पाकेट में हमेशा ‘‘डायबेटिक कार्ड’’ रखे जिसमे इलाज के बारे में लिखा हो। भोजन में हमेशा रेसेदार सब्जियों सलाद व एण्टी आक्सीडेन्ट युक्त फल का सेवन करें। ग्लूकोज व शक्कर वाली चीजें ना ले तथा घी, तेल वसायुक्त भोजन से दूर रहें।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.