भोजपुरी माटी के अग्रदूत रहे डॉ. केदारनाथ सिंह, 87वीं जन्मदिन पर याद कर गौरवान्वित हुई बागी धरती बलिया
हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवि साहित्यकार व भोजपुरी माटी के अग्रदूत डॉ. केदारनाथ सिंह की 87वीं जयंती पर मंगलवार को विविध कार्यक्रम आयोजित किए गए।
बलिया, जेएनएन। हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवि, साहित्यकार व भोजपुरी माटी के अग्रदूत डॉ. केदारनाथ सिंह की 87वीं जयंती पर मंगलवार को विविध कार्यक्रम आयोजित किए गए। गंगा व घाघरा के प्राकृतिक सौंदर्य का साक्षी भागडऩाला के किनारे बसे चकिया गांव हो या फिर जिला मुख्यालय का डॉ. नरेन्द्र देव सभागार, यहां की फिजां पूरी तरह केदार नाथ सिंह के इर्द-गिर्द घूमती नजर आई।
कोई उनकी कविताओं को याद कर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा था कोई भोजपुरी व गवंई माटी से उनके लगाव को स्मरण कर भाव- विभोर हुआ। सबने अपने ज्ञानपीठ सपूत की कुछ न कुछ यादें साझा की। नगर के आचार्य नरेंद्र देव सभागारमें मुख्य वक्ता प्रो. अवधेश प्रधान ने डॉ. केदार नाथ सिंह को याद करते हुए कहा कि ऐसे रचनाकार व कवि कभी कभार ही जन्म लेते हैं। डॉ. सिंह की कविताओं में गांव-ज्वार महती भूमिका में नजर आती है। उनका सहज व सरल व्यक्तित्व उन्हें बड़ा बनाता है। उन्हें अपने गांव से बहुत लगाव था।
इस दौरान सांस्कृतिक संस्था 'संकल्प' के कलाकारों ने केदार नाथ सिंह की कविताओं पर नाट्य प्रस्तुत किया। इसमें सोनी, आनन्द व अखिलेश का अभिनय सराहनीय रहा। वहीं गाजीपुर से आये सम्भावना कला मंच द्वारा लगायी गयी कविता पोस्टर प्रदर्शनी आकर्षण का केन्द्र रही। इस अवसर पर डॉ. केदारनाथ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित साखी पत्रिका का विमोचन भी किया गया। इस मौके पर सुनील सिंह, डा. जैनेंद्र पाण्डेय, डा. अमलदार निहार, प्रो. यशवंत सिह, डा. कादम्बिनी सिंह, अशोक, अखिलेश राय, रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी, राजेश मल्ल, प्रकाश उदय, सूर्य नारायण, चितरंजन सिंह, हेमंत आदि मौजूद थे। अध्यक्षता प्रो. बलराज पाण्डेय, संचालन अजय कुमार पाण्डेय व आभार प्रकाश रामजी तिवारी ने किया।
आजीवन शब्द व मनुष्य की साधना में लगे रहे डॉ. केदार
हिन्दी साहित्य के ख्यातिलब्ध साहित्यकारों की उपस्थिति में चकिया गांव का बच्चा-बच्चा मंगलवार को डॉ. केदार नाथ सिंह की कविताओं की भीनी खुशबू में सराबोर होता रहा। साखी पत्रिका के संपादक व बीएचयू के प्रो. सदानंद शाही ने अपने उद्बोधन में चकिया से केदारनाथ सिंह को जोड़ते हुए उनकी स्मृतियों को साझा किया। कहा कि केदार सिंह समग्रतावादी कवि थे। शब्द, सरस्वती व मनुष्य की साधना में लगे रहने वालों के लिए केदार एक वरदान थे। इस मिट्टी के स्पर्शमात्र से ही रोमांचित हो रहा हूं। केदारनाथ की कविताएं कुआं, तालाब व खेत-खलिहान से जुड़ी रहीं। जीवन के आखिरी समय में भोजपुरी में रचित'भागड़ नाला जागरण मंचनामक कविता अपने आप में अद्वितीय है। उनकी रचनाएं चिंतन की पराकाष्ठा को व्यक्त करती हैं। प्रकृति से जुड़ी समस्याओं को उजागर करती उनकी रचनाएं भविष्य के प्रति लोगों को सचेत करती हैं।
इस दौरान डॉ. केदारनाथ सिंह के पुत्र आइएएस सुनील सिंह ने जिलाधिकारी एचपी शाही से भागडऩाला की सफाई कराने की मांग की। इस मौके पर दुबहड़ डिग्री कालेज के प्राचार्य दिग्विजय सिंह, कवि उदय प्रकाश, बीएचयू के प्रो. अवधेश, मुक्तेश्वर, अरुण, संतोष सिंह, शैलेश सिंह, योगेश चौबे, मित्रेश तिवारी, निर्भय नारायण सिंह आदि मौजूद थे। अध्यक्षता प्रो. यशवंत सिंह ने की।
आजीवन गंवई ठेठ को रखे बरकरार: डीएम
डॉ. केदारनाथ के पैतृक गांव पहुंचे जिलाधिकारी एचपी शाही ने अतीत की स्मृतियों को याद करते हुए कहा कि मैं जहां भी रहा, कभी ना कभी उनसे मुलाकात होती रही। उनकी सजहता व सरलता में उनकी विद्वता झलकती थी। उनकी रचनाओं में गांव, गांव के लोग, गवई माहौल जैसी मूल बातें झलकती हैं।
कविता से दी श्रद्धांजलि
कार्यक्रम में मौजूद कवियों ने केदार नाथ सिंह की कविताओं के माध्यम से प्रकृति को संरक्षित करने का संदेश दिया। युवा कवि सुशांत ने केदारनाथ सिंह की'लोहे के टंगिया से बगिया में बाबा, कटिहा ना अमवा के सोरि कविता सुनाकर पेड़-पौधों की सुरक्षा को रेखांकित किया। इसके अलावा वर्तमान ज्वलंत पारिवारिक समस्याओं पर कटाक्ष करती अपनी कविताओं से सबको झकझोरा।'देहिया में दरार परे त परे, नेहिया में दरार ना फटाई रे को सबने सराहा।