गाजीपुर के करइल में दिवाकर उगा रहे स्वास्थवर्धक केला, एंटी फंगस है एक वर्ष पुराना गोमूत्र
केले की खेती यह सुनकर कुछ अटपटा लगता है लेकिन यह बिलकुल सही है। करइल में केले की खेती हो रही है वो भी रेजिड्यू फ्री (अवशेष रहित) जो पूर्ण आर्गेनिक तो नहीं है लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से पूर्ण रूप से सुरक्षित।
जागरण संवाददाता, गाजीपुर। करइल और केले की खेती यह सुनकर कुछ अटपटा लगता है, लेकिन यह बिलकुल सही है। करइल में केले की खेती हो रही है वो भी रेजिड्यू फ्री (अवशेष रहित) जो पूर्ण आर्गेनिक तो नहीं है, लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से पूर्ण रूप से सुरक्षित। यह कार्य कर रहे हैं अवथही के किसान दिवाकर राय। आठ बीघे केले की खेती में दिवाकर ने केवल ग्रीन लेवल के पेस्टीसाइट्स का प्रयोग किया है। अतिरिक्त रासायनिक उर्वरकों का भी नाममात्र का प्रयोग किया है।
उन्होंने बताया कि आर्गेनिक तरीके से केले की खेती करने पर उसका उत्पादन कम होगा और उसकी कीमत भी वही मिलती है, जो रासायनिक उर्वरकों से तैयार फसल का। इससे किसानों को काफी नुकसान होता है। इसलिए रेजिड्यू फ्री खेती से उत्पादन भी अधिक होगा और आर्गेनिक उत्पाद की तरह शुद्ध और सुरक्षित होगा। इसके लिए उन्होंने बताया कि केले की खेती शुरू करने के लिए प्रति एकड़ तीन से पांच ट्राली गोबर की खाद या 10 टन प्रेस मड डाल दें। उनके यहां प्रेस मड प्राप्त नहीं हो पा रहा है। इसलिए गोबर की खाद उपयुक्त है। करइल में केले की रोपाई मेड़ बनाकर की जाती है।
उन्होंने बताया कि गोमूत्र को अगर एक वर्ष के लिए रख दिया जाए तो वह सबसे बड़ा एंटी फंगस और पेस्टीसाइट्स होता है। इसके अतिरिक्त 10 हजार पीपीएम का नीम का तेल व ट्रेसर पेस्टिसाइड्स का प्रयोग करते हैं। ट्रेसर एक ऐसा पेस्टिसाइड्स है, जो पौधे के एक्सट्रेक्ट से तैयार किया जाता है, जो नुकसानदेह नहीं रहता है। रेजेडयू फ्री केले के उत्पादन का क्या लाभ है। इस पर उन्होंने कहा कि आम लोगों का अवशेष रहित केले के उपयोग से स्वास्थ्य अच्छा रहेगा व उत्पादन भी प्रभावित नहीं रहेगा। इसके अतिरिक्त विदेश में केले का निर्यात के लिए अवशेष रहित केले का उत्पादन आवश्यक होता है।
विदेश में निर्यात की संभावनाओं पर उन्होंने कहा कि क्षेत्र में कई एफपीओ सक्रिय हैं, जो एपीडा के माध्यम से आम, मिर्च और हरे मटर का विदेशो में निर्यात करते हैं। वे केले में भी रुचि दिखा रहे हैं, अगर अन्य किसान भी केले में रासायनिक उर्वरकों और पेस्टिसाइड्स का उचित मात्रा में प्रयोग करे, तो इसके अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। उन्होंने सरकारी मदद के बारे में बताया कि उद्यान विभाग द्वारा किसानों को कोई मदद नहीं की जाती और न ही कोई अनुदान दिया जाता है। योजनाओ का लाभ भले न मिले, लेकिन किसानों को प्रशिक्षित किया जाए, तो खेती में लागत कम आएगी और मुनाफा अधिक होगा