बनारस में बेतरतीब हाईवे से मुश्किल में सफर, देश की तरक्की में अटका रहा रोड़े भी
हाईवे की रफ्तार थमने का असर देश की तरक्की पर पड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग दो (मोहनसराय- मुगलसराय) की दुश्वारियां दोहरा नुकसान पहुंचा रही हैं।
वाराणसी, जेएनएन। हाईवे की रफ्तार थमने का असर देश की तरक्की पर पड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग दो (मोहनसराय- मुगलसराय) की दुश्वारियां दोहरा नुकसान पहुंचा रही हैं। दरअसल, अस्थाई टोल प्लाजा पर जाम लगने से लाखों का डीजल जल रहा है। वहीं जाम देश की तरक्की में रोड़े भी अटका रहा है। निर्माण में लापरवाही की हदें इस कदर कि आठ साल में टोल प्लाजा का काम इंच भर नहीं हो सका। ऐसे में करीब 16 हजार वाहनों को पार कराने में अस्थाई टोल नाका के हांफ जाने के दुष्परिणाम दिखने लगे हैं। समाचारीय अभियान में हमने पहले दिन हाईवे के जर्जर हालात के दुष्परिणाम को बताया था, आज जानिए किस तरह 160 करोड़ कमाने वाला टोल प्लाजा देश व जनता की नजर में विलेन बना हुआ है ..।
पांच गुना बढ़ा राजस्व फिर भी स्थाई टोल प्लाजा सपना : सोमा आइसोलेक्स कंपनी ने 2011 में डाफी में अस्थायी आठ लेन का टोल प्लाजा बनाया था। उस समय वसूली 10 से 15 लाख प्रतिदिन थी, जो अब 45 से 50 लाख तक जा पहुंची है। वार्षिक आंकड़ा देखें तो राजस्व 160 करोड़ के पार बैठेगा। लेकिन उसके बाद भी आठ साल बाद भी स्थायी टोल प्लाजा की नींव नहीं रखी जा सकी।
यूं हो रहा देश को दोहरा नुकसान : एक आंकड़े मुताबिक टोल प्लाजा से रोजाना करीब 16 हजार वाहन रफ्तार भरते हैं। इनमें 80 फीसद से ज्यादा संख्या ट्रक एवं बसों की होती है। टोल प्लाजा छह लेन का होने से कई किमी. तक जाम लग रहा है। एक-एक ट्रक व बस पास होने में औसतन 30 मिनट लग रहा है। ऐसे में डीजल जलने एवं जाम से देश को दोहरा नुकसान हो रहा है।
तीन मिनट का आदर्श मानक, लग रहे 30 मिनट : टोल नाका पर वाहनों के रुकने एवं पर्ची कटाने का आदर्श मानक तीन मिनट है। जबकि डॉफी टोल पर औसतन 30 मिनट का समय लग रहा है। हाईवे पर जाम के कारण ऐसा होता है। वाहनों का दबाव न बने, इसलिए टोल प्लाजा को 16 लेन का बनाने की बात हुई थी।
आठ साल में सिर्फ मिट्टी भराई : वर्ष 2011 में फोर लेन के हाईवे को सिक्स लेने बनाने का काम शुरू हुआ था। उसी समय 16 लेन का टोल प्लाजा बनाने की बात थी, जो आठ साल बाद भी अस्तित्व में नहीं आ सका। कार्यदायी संस्था के जिम्मेदार जवाब देते हैं कि मिट्टी भराई का काम चल रहा, जबकि टोल वसूली बदस्तूर है।
कार्यदायी संस्था नहीं कर सकी काम, नए को जिम्मा : 2011 से काम कर रही सोमा आइसोलेक्स कंपनी 2014 में काम पूरा नहीं कर सकी। एक साल का एक्सटेंशन मिला लेकिन फिर भी काम पूरा नहीं हुआ। 2016 में कार्यदायी संस्था की जिम्मेदारी रोडीज के पास पहुंच गई।
शहरी भी जाम से जूझ रहे कायदों मुताबिक शहर सीमा से टोल प्लाज़ा दूर रहना चाहिए। ऐसा शहरियों को जाम व टोल वसूली से बचाने को नियम बना था। हाईवे से लिंक सर्विस लेन बनाने का भी प्रावधान है, जिससे इलाकाई लोग टोल दिए बगैर शहर में आ जा सकें।
प्रशासन के नोटिस से भी नहीं बनी बात : जाम से उपजी दुश्वारियों के दृष्टिगत प्रशासन ने कार्यदायी संस्था को नोटिस दिया था। लापरवाही में केस भी दर्ज कराया गया था। डीएम रहे योगेश्वर मिश्र की गाड़ी जाम में फंसने पर सख्ती भी बरती गई थी। एसएसपी के आदेश पर टोल मैनेजर सहित तीन पर केस भी हुआ था लेकिन उसके बाद भी बदलाव नहीं हो सका।
बोले अधिकारी : 'स्थायी टोल प्लाजा नहीं बनने की जड़ में भूमि का उपलब्ध न होना था। अब जो जमीन मिली है उसमें गहराई होने से मिट्टी भराई का काम चल रहा है। फंडिंग की समस्या के कारण सड़क के कार्य में परेशानी थी, जिसे जल्द ही समस्या हल हो जाएगी।' -संजय कुमार, जीएम सोमा रोडीज।
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