पूर्व प्रधानमंत्री की जयंती : indira gandhi के विरोध के बावजूद Chandrasekhar ने जीता था संगठन चुनाव
युवा तुर्क के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर अपनी वैचारिक अडिगता और साहस के लिए जाने जाते थे। कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने आपातकाल का मुखर विरोध किया था।
बलिया [डॉ. रवींद्र मिश्र]। देश की राजनीति में युवा तुर्क के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर अपनी वैचारिक अडिगता और साहस के लिए जाने जाते थे। कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने आपातकाल का मुखर विरोध किया था। 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विरोध किया, लेकिन पार्टी कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और विजय हासिल की। उनकी समाजवादी विचारधारा की मजबूती का श्रेय प्रयागराज को भी जाता है, जहां पढ़ाई के दौरान उनको आचार्य नरेंद्र देव का सान्निध्य मिला।
दस नवंबर, 1990 से 21 जून, 1991 तक प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर समाजवादी आंदोलन से निकली इकलौती ऐसी शख्सियत थे, जिन्हें प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को किसान परिवार में जन्मे चंद्रशेखर के पास प्रधानमंत्री बनने से पहले मुख्यमंत्री तो क्या किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद का भी कोई अनुभव नहीं था। जेपी नारायण स्मारक प्रतिष्ठान के व्यवस्थापक अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि प्रधानमंत्री बनने से कहीं ज्यादा महत्व उनकी उस लंबी राजनीतिक यात्रा का है, जिसमें तमाम ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बावजूद वह समाजवादी विचारधारा से पल भर को भी अलग नहीं हुए।
मिसाल बनी भारत यात्रा
चंद्रशेखर के मन में जब देशवासियों से मिलने की इच्छा हुई तो वह छह जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक भारत यात्रा पर निकल पड़े। इस दौरान दक्षिण में कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट तक लगभग 4,260 किलोमीटर की मैराथन पदयात्रा उन्होंने पूरी की।
...दाढ़ी के नाम से थी पहचान
बलिया में दाढ़ी और संजीदा भाषा में अध्यक्ष जी के नाम से विख्यात चंद्रशेखर केवल एक बार चुनाव हारे थे, जबकि इसके बाद अंतिम क्षणों तक बलिया से सांसद रहे। दाढ़ी उनकी पहचान थी। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर के खिलाफ भाजपा ने रामकृष्ण मिश्रा उर्फ गोपालजी को चुनावी मैदान मेंं उतारा। उनकी भी लंबी-लंबी दाढ़ी थी। इस पर भाजपाइयों ने नारा दिया था कि 'दाढ़ी पर दाढ़ी भारी है, अबकी रामकृष्ण की बारी है।
खास तथ्य
-1962 में राज्यसभा के लिए चुने जाने से आरंभ हुआ संसदीय जीवन
-1975 में कांग्रेस में रहते हुए इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई
-1984 से 1989 तक की अवधि छोड़कर आखिरी सांस तक बलिया से सांसद रहे