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वाराणसी में लकड़ी के बने खिलौनों की यूरोप में बढ़ी मांग, 1500 परिवारों की आय का प्रमुख स्रोत

लकड़ी खिलौना निर्माण से जुड़े लोगों के लिए खुशखबरी है। खासकर महिलाओं के लिए। बनारस में ज्यादातर महिलाएं लकड़ी का खिलौना बनाने में रुचि दिखाने लगी हैं। यहां 2000 प्रकार के लकड़ी के खिलौने मूर्तियां व अन्य सामान बनाए जा रहे हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 23 Nov 2021 05:00 AM (IST)Updated: Tue, 23 Nov 2021 05:00 AM (IST)
वाराणसी में लकड़ी के बने खिलौनों की यूरोप में बढ़ी मांग, 1500 परिवारों की आय का प्रमुख स्रोत
लकड़ी खिलौना निर्माण से जुड़े लोगों के लिए खुशखबरी है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। काशी की प्राचीन संस्कृति और आध्यात्मिकता दुनिया में प्रसिद्ध हैं। अब यहां की लकड़ी के खिलौनों भी धूम मचाने लगे हैं। प्रदूषण रहित और जीआइ टैग लगे काशी के हस्तनिर्मित ऐसे उत्पादों की मांग अमेरिका, नार्वे, सिंगापुर और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में सबसे अधिक हो रही है। सिंगापुर में तो कोरोना महामारी में मांग की गई है। एक अनुमान के मुताबिक काशी से लकड़ी के खिलौनों की मांग में 20 फीसद की वृद्धि हुई है। कुल कारोबार लगभग 30 करोड़ तक पहुंच गया है। यह लकड़ी खिलौना निर्माण से जुड़े लोगों के लिए खुशखबरी है। खासकर महिलाओं के लिए। बनारस में ज्यादातर महिलाएं लकड़ी का खिलौना बनाने में रुचि दिखाने लगी हैं। यहां 2000 प्रकार के लकड़ी के खिलौने, मूर्तियां व अन्य सामान बनाए जा रहे हैं।

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अब 15 हजार तक हर माह हो रही आय : लोलारक कुंड निवासी शुभी अग्रवाल बताती हैं कि घर के काम के अतिरिक्त महिलाएं महीने में 10 से 15 हजार की कमाई कर रही हैं। इन्हीं के बनाए सैकड़ों गिल्ली-डंडे अमेरिका में कूरियर किए जाएंगे। देश के दक्षिणी राज्यों के लिए अभी 500 सेट कृष्ण की झांकियां तैयार की जा रही हैं। बनारस में 15 सौ परिवार इस कार्य से जुड़ा हुआ है।

बोली महिलाएं:

घर के काम के सिवाय कोई काम नहीं था। लकड़ी का खिलौना बनाने का गुर सीखने और काम मिलने से आय होने लगी है। - नेहा, कंदवा, काशी विद्यापीठ।

बिना कहीं गए घर बैठे ही काम मिल जाता है। हर दिन काम मिलने से रोजमर्रा की आर्थिक समस्याएं खत्म हो गई हैं। - रानी देवी, पांडेयपुर।

आर्थिक संकट में लकड़ी का खिलौना बनाने का गुर बहुत काम आया। अब हमें परिवार की जरूरतें पूरी करने में समस्याएं नहीं आती हैं। - गुंजादेवी, चितईपुर।

हम ट्रेनर भी हैं। हमें दिनभर में आठ सौ से एक हजार रुपये तक की कमाई हो जाती है। बच्चों की पढ़ाई व अन्य जरूरतें पूरी हो जाती हैं। - आशीष प्रजापति, चितईपुर।


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