Move to Jagran APP

पुराने मसालों की आवक में आई कमी, हल्दी से लेकर जीरा और काली मिर्च के दामों में उछाल

फसलों के पकने और बाजार तक आने में फरवरी और मार्च के महीने तक इंतजार करना होता है। यही कारण है कि इन दिनों बाजार में हल्दी से लेकर जीरा और काली मिर्च तक के दामों में उछाल देखा जा रहा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 11:49 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 11:49 AM (IST)
पुराने मसालों की आवक में आई कमी, हल्दी से लेकर जीरा और काली मिर्च के दामों में उछाल
बाजार में हल्दी से लेकर जीरा और काली मिर्च तक के दामों में उछाल देखा जा रहा है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। जनवरी माह प्राय: फसलाें के लिए मध्यावधि का होता है। फसलें पूर्ण विकसित होकर फूल लेने या दाना पकड़ने की अवस्था में रहती हैं। इसके पकने और बाजार तक आने में फरवरी और मार्च के महीने तक इंतजार करना होता है। यही कारण है कि इन दिनों बाजार में हल्दी से लेकर जीरा और काली मिर्च तक के दामों में उछाल देखा जा रहा है। हालांकि लालमिर्च और सोंठ के दामों में नरमी का रुख है। बाजार के जानकारों के अनुसार हर साल नई फसलों के आने से पूर्व आपूर्ति चक्र प्रभावित होती है। ऐसे में उपलब्धता और मांग के चलते दामों में परिवर्तन दिखाई देता है।

loksabha election banner

वास्तव में, एक माह पूर्व मसालों के दामों में काफी गिरावट देखी गई। थोक मूल्य में हल्दी 95 से 100 रुपये प्रति किलोग्राम में बिकी। वहीं गुरुवार को मंडी में 104 रुपये प्रति किलोग्राम में बिकी। विश्वेश्वरगंज मंडी में थोक्र विक्रेता गणेश सेठ बताते हैं कि आमद कम होने और मार्च तक नई फसल आने के कारण काली मिर्च 10 बढ़कर 570 (छोटा दाना) 660 (बड़ा दाना) रुपये प्रतिकिलोग्राम रहा। जबकि एक महीने पूर्व इसका प्रति किलोग्राम दाम 450-60 रुपये रहा। धनिया 16 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़कर 106 रुपये में बिकी। जानकारों के अनुसार इस बार धनिया की फसल कमजोर है और नई फसल अगले माह तक बाजार में उतरेगी। सोंठ में देखा जाए तो नेपाल की 30 रुपये गिरकर 250 रुपये प्रति किलोग्राम में बिकी। जबकि देसी सोंठ 180 की जगह 160 रुपये प्रति किलोग्राम में बिकी। लालमिर्च 210 रुपये की जगह 165 रुपये प्रतिकिलोग्राम में बिकी।

बोले जानकार : बाजार मांग व आपूर्ति पर निर्भर है। महंगाई दो तरह से बढ़ती है। वर्तमान दौर में कोविड काल में क्योंकि मसाले व्यवसायिक फसलें हैं। इसकी हर समय मांग रहती है। नई फसलों के आने से पहले आपूर्ति में कमी होती है। दक्षिण से ही अधिकतर मसाले आते हैं ऐसे में आपूर्ति चक्र भी प्रभावित होती है। उपलब्धता कम और मांग ज्यादा होने से भी वस्तुओं के दाम परिवर्तित हो जाते हैं। - डा. अनूप कुमार मिश्र, अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष, बीएचयू।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.