संस्कृति संसद : तूलिकाओं में दिखा गणिकाओंका योगदान, कलाकारों ने ऐतिहासिक चित्रों का सृर्जन कर वाराणसी के गौरव को किया रेखांकित
स्वतंत्रता आंदोलन की काशी के योगदान आपको किताबों के पन्ने पलटने की जरूरत नहीं है। तूलिकाओं के माध्यम कलाकारों से इसे कैनवास में बाखूबी उतारा है। प्रसिद्ध चित्रकार प्रो. एस. प्रणाम सिंह ने चित्र के माध्यम से स्वतंत्रता के लिए दालमंडी की गणिकाओं द्वारा श्रृंगार बहिष्कार के दृश्य दर्शाया है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। स्वतंत्रता आंदोलन की काशी के योगदान आपको किताबों के पन्ने पलटने की जरूरत नहीं है। तूलिकाओं के माध्यम कलाकारों से इसे कैनवास में बाखूबी उतारा है। इस क्रम में प्रसिद्ध चित्रकार प्रो. एस. प्रणाम सिंह ने चित्र के माध्यम से स्वतंत्रता के लिए दालमंडी की गणिकाओंद्वारा श्रृंगार बहिष्कार के दृश्य दर्शाया है।
स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में अमृत महोत्सव के तहत महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के ललित कला विभाग में आयोजित दो दिवसीय कला शिविर में ऐसे चित्र एक दो नहीं 20 कलाकारों तैयार किए हैं। इन चित्रों की प्रदर्शनी रूद्राक्ष अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं सम्मेलन केंद्र में 11 नवंबर से आयोजित होने वाले तीन दिवसीय संस्कृति संसद में लगाई जाएंगी। शिविर में कलाकारों ने ऐतिहासिक चित्रों का सृर्जन कर काशी के गौरव को रेखांकित करने का प्रयास किया है। इस क्रम में ललित कला विभाग के प्रभारी डा. सुनील कुमार विश्वकर्मा ने रंगों के माध्यम से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले काशी के गुंडा ननकू सिंह को कुछ इसी तरह के भाव में रंगने का प्रयास किया है। उन्होंने चित्रों के माध्यम से विरोचित भाव में अंग्रेजों का संहार करते हुए दर्शाया है। वही विद्यापीठ के गंगापुर परिसर ेके प्राध्यापक डा. शशि कांत नाग ने बनारस विद्रोह 15 अगस्त 1781 की घटना पर आधारित चित्रण किया, जिसके विषय में मशहूर कहावत है कि घोड़े पर हौदा हाथी पर जीन, चुपके से भागा वारेन हेस्टिंग। इस चित्र में डोली पर बैठकर वारेन हेस्टिंग्स को भागते हुए तथा बनारस के रणबांकुरे के द्वारा अंग्रेजों को भगाते हुए दिखाया गया है।
डा. शत्रुघ्न प्रसाद ने अपने चित्र में वाराणसी की सोनिया पोखरा स्थित स्थल पर आग से भरी कढ़ाई में स्थानीय लोगों को जला देने की घटना को चित्रात्मक रूप में व्यक्त किया है । आशा प्रकाश ने अपने चित्र में लाल बहादुर शास्त्री की नारे जय जवान जय किसान को व्यक्त किया। चित्रकार आशीष राय ने तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस संदर्भ को स्वतंत्र रामराज्य की कल्पना को साकार किया है। संजय कुमार ने अपने चित्रों के माध्यम से बनारस में थियोसोफिकल प्रवर्तक एनी बेसेंट तथा उनके योगदान को चिन्हित करते हुए थियोसोफिकल सोसायटी के वास्तुशिल्प का प्रतीकात्मक चित्रण अपने चित्र में प्रस्तुत किया।
वरिष्ठ चित्रकार कांजीलाल के शिष्य केएम मेहरा ने अपने चित्र के माध्यम से काशी में स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से मानव सेवा को साकार रूप देने वाली तीन महापुरुषों को मानव की सेवा करते हुए दिखाया है, जिन्होंने आगे चलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना में काशी में सहयोग किया। इस क्रम में युवा चित्रकार हरिदर्शन ने अपने चित्र में प्रसिद्ध अध्यात्मा पुरुष श्यामाचरण लाहिड़ी के व्यक्तित्व चित्रण को प्रस्तुत किया। शालिनी कश्यप ने शिव प्रसाद गुप्त के योगदान को दिखाते हुए पृष्ठभूमि में काशी विद्यापीठ व दैनिक अखबार के संदर्भ को अपने चित्र में दर्शाया है।
डा. सुनील कुमार सिंह कुशवाहा ने अपने चित्र में मदन मोहन मालवीय एवं महात्मा गांधी की परस्पर चर्चा करते हुए अपने चित्र में स्थान दिया। चित्रकार राजकुमार ने मुंशी प्रेमचंद तो आजाद ने अपनी चित्र में चंद्रशेखर आजाद को जेल में अंग्रेज सिपाही द्वारा यातना दिए जाने की घटना को रूप दिया है। इसके अलावा प्रो. सरोज रानी, आकाश गुप्ता, निखिलेश प्रजापति, बलदाऊ वर्मा, रजनीकांत मिश्र, पद्मिनी मेहता आदि ने भी स्वतंत्रता के 75वें में वर्ष को उत्सव रूप देते हुए काशी के योगदान से संदर्भित विभिन्न प्रकार के रूप सृजित कर इस कला शिविर में योगदान किया। गुरुवार को दो दिवसीय शिविर के समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन प्रभारी विभागाध्यक्ष डा. सुनील कुमार विश्वकर्मा ने किया।