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विश्वघश्र पक्ष अत्यंत विध्वंसक और अशुभ फल देने वाला, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष की गणना

सामान्य लक्षण के अनुसार यदि 13 सावन दिनों के अंतर्गत 15 तिथियों का भोग हो जाए तो उसे विश्वघस्र पक्ष या 13 दिनों का पक्ष कहते हैं। सामान्यतया किसी तिथि का क्षय गणित के द्वारा नहीं होता है।यह विश्वघश्र पक्ष अत्यंत विध्वंसक एवं अशुभ फल देने वाला माना जाता है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 10 May 2021 04:40 PM (IST)Updated: Mon, 10 May 2021 04:40 PM (IST)
विश्वघश्र पक्ष अत्यंत विध्वंसक और अशुभ फल देने वाला, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष की गणना
विश्वघश्र पक्ष अत्यंत विध्वंसक एवं अशुभ फल देने वाला माना जाता है।

वाराणसी, जेएनएन। भारतीय कालगणना में  सौर, चांद्र, सावन तथा नक्षत्र आदि अनेक कालों का मान किया जाता है। इसके अंतर्गत हम मास का व्यवहार चान्द्र दिन अर्थात तिथि से तथा दिन का व्यवहार सावन दिन से करते हैं। सामान्य लक्षण के अनुसार यदि 13 सावन दिनों के अंतर्गत 15 तिथियों का भोग हो जाए तो उसे विश्वघस्र पक्ष या 13 दिनों का पक्ष कहते हैं। सामान्यतया किसी भी तिथि का क्षय गणित के द्वारा नहीं होता है। सूर्योदय से संबंधित तिथियों के ही गणना क्रम में ग्राह्य होने से जिस तिथि का किसी सूर्योदय के साथ संबंध नहीं होता है उसकी क्षय संज्ञा हो जाती है। उसे क्षय तिथि कहते हैं। इस नियम के अनुसार दो तिथियों का एक पक्ष के अंतर्गत सूर्योदय से संबंध नहीं बने तो उसे विश्वघस्र पक्ष के नाम से जानते हैं। यह विश्वघश्र पक्ष अत्यंत विध्वंसक एवं अशुभ फल देने वाला माना जाता है। जैसा कि ज्योतिर्निबन्धकार ने कहा है।

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पक्षस्य मध्ये द्वितिथी पतेतां तदा भवेत रौरवकालयोगः।

यह स्थिति सहस्रो वर्ष में उपस्थित होती है और अत्यन्त विध्वंशक होती है। आचार्यों ने कहा है कि-

त्रयोदशदिने पक्षे तदा संहरते जगत्।

अपि वर्षसहस्रेण कालयोगः प्रवर्तते।।

13 दिन का पक्ष उत्पन्न होने की स्थिति में प्रजा के लिए महाविनाश की स्थिति उत्पन्न होती है। यह कालयोग हजारों वर्ष में एक बार आता है। महाभारत काल में भी इस तरह की स्थिति उत्पन्न हुई थी। 13 दिन के इसी पक्ष में चन्द्र और सूर्य के 2 ग्रहण भी हुए थे। इस स्थिति को ऋषियों ने महा उत्पात की श्रेणी में रखा है। इस वर्ष संवत 2078 के भाद्रपद शुक्ल पक्ष में भी सामान्यतया प्रतिपदा और त्रयोदशी का क्षय होकर 13 दिन का पक्ष उपस्थित हो रहा है। जो कि कुछ अशुभ सूचक होकर उत्पात की श्रेणी में आता है। यह महाभारत में वर्णित 13 दिन के पक्ष के तुल्य नहीं है। इस वर्ष के भाद्रपद कृष्ण पक्ष में ही उदय व्यापिनी अमावस्या में प्रतिपदा का क्षय हो जा रहा है। शुक्ल पक्ष द्वितीया से आरंभ हो रहा है। शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी का पुनः क्षय हो रहा है।  द्वितीया से आरंभ होकर पूर्णिमा तक पूर्ण होने वाले इस भाद्रपद शुक्ल पक्ष में केवल त्रयोदशी का ही क्षय हो रहा है। प्रतिपदा तिथि का क्षय पिछले कृष्ण पक्ष में हुआ माना जायेगा। यह महाउत्पात की श्रेणी में नहीं आकर सामान्य विकृति की श्रेणी में आएगा। जो कि गणना में अनेक बार दिखता रहता है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय के अनुसार वर्तमान में कोरोना रूपी जो महामारी समग्र विश्व में ताण्डव कर रही है। उसकी स्थिति को यह भाद्रपद शुक्ल पक्ष में पड़ने वाला 13 दिन का पक्ष बढ़ाएगा नहीं क्योंकि शास्त्रोक्त लक्षण के अनुसार यह 13 दिन का पक्ष है ही नहीं। कोरोना रूपी इस उपस्थित महामारी की सूचक अन्यान्य आकाशीय लक्षण एवं प्रतिकूल ग्रह स्थितियां हैं। जो पहले ही विश्व के अनेक क्षेत्रों में दृश्य हो चुकी है। हमें हतास नही होना चाहिए। इस विषम परिस्थिति में भी शास्त्रों में बताए गए उपाय धैर्य, संयम, विवेक एवं भगवत भजन का आश्रय लेते हुए उत्साह के साथ अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को बनाएं रखना चाहिए। ईश्वर निश्चित ही इससे निवृत्ति का मार्ग भी प्रस्फुटित करेगा।


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