उत्तर प्रदेश के 46 फीसदी लोगों में मिला कोरोनारोधी तत्व, जानें बाकी राज्यों का भी हाल
बीएचयू के जीन विज्ञानियों द्वारा राज्य आधारित कोरोना रोधी तत्वों की मैपिंग की गई है। यह जेनेटिक मैपिंग विभिन्न राज्यों के कुल 5641 सैंपल पर शोध करके तैयार की गई है जिससे पता चलता है कि भारत के विभिन्न राज्यों में 33 से लेकर सौ फीसदी तक क्षमता मौजूद है।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। भारत में पहली बार बीएचयू के जीन विज्ञानियों द्वारा राज्य आधारित कोरोना रोधी तत्वों की मैपिंग की गई है। यह जेनेटिक मैपिंग विभिन्न राज्यों के कुल 5641 सैंपल पर शोध करके तैयार की गई है, जिससे पता चलता है कि भारत के विभिन्न राज्यों में 33 से लेकर सौ फीसदी तक कोरोना रोधक क्षमता पहले से मौजूद है। अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मिजोरम, केरल और झारखंड जैसे राज्यों के लोगों की क्षमता सबसे बेहतर स्थिति में है, जिससे इन राज्यों की मृत्युदर बेहद निम्न है। वहीं महामारी का भीषण मार झेलने वाला महाराष्ट्र इस मैपिंग में सबसे निचले पायदान पर है। बीएचयू के जंतु विज्ञान विभाग में जीन विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और आंशिक श्रीवास्तव द्वारा किया गया यह शोध 25 सितंबर को दुनिया के पांचवें सबसे लोकप्रिय जर्नल फ्रंटियर्स (स्विट्जरलैंड) में प्रकाशित हुआ है।
प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के अनुसार कोशिका के एक्स क्रोमोसोम के एसीई-2 जीन में हुए जेनेटिक परिवर्तन ( आर एस 2285666 म्यूटेशन) से कोरोना रोधी तत्व का पता लगा है जो कि वायरस के अटैक से पहले कोशिका के लिए रख रक्षा कवच तैयार करती है। शोध के अनुसार मराठी लोगों के जीन सैंपल में आर एस 2285666 म्यूटेशन का अभाव पाया गया है, जिससे वहां बड़ी संख्या में मृत्यु हुई है। वहीं अरुणाचल प्रदेश व त्रिपुरा में 100 फीसद, केरल में 87.5 फीसद और मेघालय के 75.6 फीसद लोगों में इस तरह जेनेटिक बदलाव मिले हैं।
प्रो. चौबे ने बताया कि झारखंड के संथाल और मुंडा जनजाति में यह 70 फीसद, मेघालय की गारो खासी में 75, उत्तर प्रदेश में 46 फीसद, जबकि महाराष्ट्र के मराठी, पारसी और यहूदियों में यह आंकड़ा 33 फीसद पहुंचा है। प्रो. चौबे ने बताया कि पूर्वोतर, केरल व झारखंड के लोगों की भौगोलिक दशा और सांस्कृतिक जीवनशैली मैदानी व मध्य भारत से बिल्कुल अलग है, उन्हें उनकी परिस्थितियों ने शारीरिक तौर पर ज्यादा जुझारू और रोगमुक्त बनाया है। इस कारण से यह अंतर संभावित था। शोधकर्ता अंशिका श्रीवास्तव ने बताया कि इससे पहले टीम ने क्रोमोसोम में एम हेप्लोग्रुप का पता कर बताया था कि दक्षिण एशिया के साठ फीसद लोगों में यह तत्व पहले से ही मौजूद है। अब इन राज्यों के आधार कोरोना से प्रभावित लोगों का सटीक आकलन किया गया है।
ये वैज्ञानिक भी रहे शामिल इस शोध में
बीएचयू के शोध छात्रों में औदित्या, देबश्रुति, रुद्र, नरगिस, निखिल और प्रज्ज्वल व आइएमएस से डॉ. पवन कुमार और डॉ. अभिषेक पाठक व बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट से डॉ. नीरज राय व यूनिवर्सिटी ऑफ बांग्लादेश से नहर सुल्ताना शामिल हैं।