विश्व दुग्ध दिवस : कोरोना ने छीना कारोबार तो डेयरी दे रहा अब हर रोज पांच हजार
कोरोना महामारी ने बहुतेरों का रोजगार छीन लिया है। लेकिन कुछ हौसला बुलंद लोग आपदा में भी अवसर ढूढ़कर अपने को स्थापित कर लिए है। ऐसी ही आत्मनिर्भरता की कहानी है मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही के महालक्ष्मीपुरम कॉलोनी निवासी मनीष सिंह की।
वाराणसी [सौरभ चंद्र पांडेय]। कोरोना महामारी ने बहुतेरों का रोजगार छीन लिया है। लेकिन कुछ हौसला बुलंद लोग आपदा में भी अवसर ढूढ़कर अपने को स्थापित कर लिए है। ऐसी ही आत्मनिर्भरता की कहानी है मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही के महालक्ष्मीपुरम कॉलोनी निवासी मनीष सिंह की। जो बेरोजगारों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। कोरोना महामारी के पहले मनीष जौनपुर के चंदवक बाजार में श्रीराम ऑटोमोबाइल के नाम से थ्री व्हीलर ऑटो की एजेंसी चलाते थे। कारोबार का पहिया अभी धीरे-धीरे चलना शुरू ही किया था कि कोरोना ने सब नस्तनाबूत कर दिया। जिससे मनीष के भावी सपने धूमिल होने लगे। बैंकों के लोन की किस्त, एजेंसी का किराया, बिजली बिल, स्टाफ की तनख्वाह और अपने परिवार के खर्चों की लंबी लिस्ट देखकर मनीष तनावग्रस्त हो गए। फिर भी वह हिम्मत नहीं हारे। उन्होंने कुछ बचाए हुए पैसे से डेयरी उद्योग शुरू किया। वर्तमान में लगभग 150 लीटर दूध वह प्रतिदिन उत्पादन कर रहे हैं। जिससे वह प्रतिदिन पांच हजार रूपये की कमाई कर रहे हैं।
पिता का मिला सहारा तो ठहरी जिंदगी का फिर से हुआ उबारा
कोरोना महामारी के कारण जब मनीष की एजेंसी लॉक हो गई तो उनके चेहरे पर मुश्किलों के इबारत साफ दिखाई दे रहे थे। फिर भी पत्नी-बच्चों के सामने वह झूठी मुस्कान से अपने तनाव को कम कर रहे थे। पिता कैलाश सिंह अपने बेटे मनीष (मोनू) के आंतरिक कष्ट को भांप चुके थे। उन्होंने भरोसा दिया, कहा कि हिम्मत मत हारो। यह जीवन की गाड़ी है, कभी चलती है तो कभी ठहरती। घर में पहले से एक गाय की सेवा होती रही है। कोशिश करो कि हमें 10 गौ माता की सेवा का अवसर मिले। बस मनीष यही से आत्मनिर्भर बन गए। अगले दिन से गाय और भैंस खोजने निकल पड़े। सप्ताह भर में 5 पशु उन्होंने खरीदा। फिर शुरू किया डेयरी का कारोबार।
स्वच्छता और शुद्धता से बनाए दो माह में 40 ग्राहक
मनीष बताते हैं कि डेयरी शुरू किया तो पहले 20 दिन तक मंडी के दूधियों को दूध बेंचता था। उसके बाद धीरे-धीरे जब यह बात कॉलोनीवासियों को पता चली तो उन लोगों ने मनीष से संपर्क किया। मनीष के गोशाला की स्वच्छता देखकर लोगों ने उनको खूब सराहा। उनके दूध की शुद्धता के कारण ग्राहकों की संख्या बढ़ती चली गयी। वर्तमान में लगभग पूरी कॉलोनी में वह दूध की आपूर्ति कर रहे हैं। मनीष ने अभी तक शुद्धता से कोई समझौता नहीं किया यही कारण है कि उनके ग्राहकों का विश्वास गाढ़ा होता गया।
प्रतिदिन है ढाई हजार का खर्च
मनीष बताते हैं कि शहर में रहने के कारण हरा चारा तो नहीं उपलब्ध हो पाता है। इस कारण भूसा और सूखे चारे से हम पशुओं की सेवा कर रहे हैं। औसतन 10 मवेशियों को खिलाने में लगभग ढाई हजार रूपये प्रतिदिन खर्च हो जाते हैं। फिर भी बिना तनाव के पांच हजार की कमाई प्रतिदिन कर लेते हैं। दिनभर पशुओं की देखभाल के लिए उन्होंने एक मजदूर भी रखा है।
कॉलोनीवासियों को भी दिया गौ सेवा का मौका
महालक्ष्मीपुरम कॉलोनी के प्रशांत मिश्रा, कमलेश वर्मा, रामनिवास सिंह, उमाकांत पांडेय, शशिभूषण सिंह कहते हैं कि देखा जाए तो मनीष ने हम लोगों को गौ सेवा का भी मौका दिया है। कॉलोनी के लगभग 90 घरों से प्रतिदिन रसोई की पहली रोटी इन मवेशियों के लिए आती है।