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छठ पर्व 2021 : मनोवांछित फल को प्रदान करता है लोक आस्‍था का पर्व 'डाला छठ'

Dala Chhath 2021 प्राणिमात्र को जीवनदायिनी शक्ति का अक्षय स्त्रोत सम्पूर्ण वस्तुजात के परम प्रकाशक भगवान सूर्य हैं। अखिल काल गणना इन्ही से होती है। दिन एवं रात्रि के प्रवर्तक ये ही है। प्राणिमात्र के जीवनदाता होने के कारण इन्हे विश्व की आत्मा कहा गया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 08 Nov 2021 10:34 AM (IST)Updated: Mon, 08 Nov 2021 10:34 AM (IST)
छठ पर्व 2021 : मनोवांछित फल को प्रदान करता है लोक आस्‍था का पर्व 'डाला छठ'
प्राणिमात्र को जीवनदायिनी शक्ति का अक्षय स्त्रोत सम्पूर्ण वस्तुजात के परम प्रकाशक भगवान सूर्य हैं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। इस पृथवीतल पर सम्पूर्ण विश्व में प्राणिमात्र को जीवनदायिनी शक्ति का अक्षय स्त्रोत सम्पूर्ण वस्तुजात के परम प्रकाशक भगवान सूर्य हैं। अखिल काल गणना इन्ही से होती है। दिन एवं रात्रि के प्रवर्तक ये ही है। प्राणिमात्र के जीवनदाता होने के कारण इन्हे विश्व की आत्मा कहा गया है। सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च। चाहे नास्तिक हो या आस्तिक, भारतीय हो या अन्य देशीय, स्थावर जंगम सभी इनकी सत्ता स्वीकार करते हैं तथा इनकी ऊर्जा से ऊर्जावान हो अपने दैनन्दिन कृत्य में प्रवृत्त होते हैं। भगवान सूर्य की महिमा का वर्णन वेद( संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्) आर्ष ग्रन्थ (रामायण, महाभारत,पुराण आदि) सभी करते हैं।

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उन भगवन् प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना प्राणिमात्र को करनी चाहिये, क्योंकि आराधना के आराध्यस्थ दिव्य गुणों का संकमण आराधक में भी अवश्य होता है। इसलिये आस्तिकों मे लोक कल्याण की भावना रूप दैवी गुण सर्वाधिक होता है। नास्तिक में निम्न स्वार्थ बुद्धि ही होती है। प्रतिहार षष्ठी जिसे पूर्व प्रान्त(वाराणसी से लेकर देवरिया, गोरखपुर, बलिया, गाजीपुर, आदि एवं अधिकांश बिहार प्रदेश एवं समस्त भारत में एतत क्षेत्र निवासी) में निवास करने वाले लोग सूर्य षष्ठी या छठ सा डाला छठ के नाम से जानते हैं। विशेषरूप से मनाते हैं।

कार्तिक शुक्ल षष्ठीव्रत(छठ) का परिपालन शास्त्र की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्‍ट‍ि की अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को ‘देवसेना’ कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्‍ठी है। पुराण के अनुसार, ये देवी सभी ‘बालकों की रक्षा’ करती हैं और उन्‍हें लंबी आयु देती हैं-

''षष्‍ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्‍ठी प्रकीर्तिता |

बालकाधिष्‍ठातृदेवी विष्‍णुमाया च बालदा

आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी

सततं शिशुपार्श्‍वस्‍था योगेन सिद्ध‍ियोगिनी

-(ब्रह्मवैवर्तपुराण,प्रकृतिखंड43/4/6)

षष्‍ठी देवी को ही स्‍थानीय भाषा में छठमैया कहा गया है। षष्‍ठी देवी को ‘ब्रह्मा की मानसपुत्री’ भी कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं। पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्‍यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्र में षष्‍ठी तिथि‍ को होती है। यही कारण है कि आज भी ग्रामीण समाज में बच्‍चों के जन्‍म के छठे दिन षष्‍ठी पूजा या छठी पूजा का प्रचलन है। नियम पूर्वक व्रत करने पर वह व्रत सम्पूर्ण फल देता है अन्यथा उसका कुफल भी प्राप्त होता है। ऐसा पुराणों मे उल्लेख है कि राजा सगर ने सूर्य षष्ठी व्रत का परिपालन सही समय से नही किया परिणामस्वरूप उसके साठ हजार पुत्र हमारे गये। यह व्रत सैकड़ों यज्ञों का फल प्रदान करता है। पंचमी के दिन भर निराहार रहकर सायं या लोकप्रचलित एकाहार (फलाहार या हविष्य अन्नाहार प्रथानुसार आधार ग्रहण कर) व्रत करके दूसरे दिन षष्ठी को निराहार व्रत रहे। सायं काल सूर्यास्त के दो घंटा लगभग पूर्व पवित्र नदी उसके अभाव में तालाब या झरना में जिसमें प्रवेश करके स्नान किया जा सके, जाकर 'मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सकलदु:खदारिद्रयसकलपातकक्षया-पस्मारकुष्ठादिमहाव्याधि-सकलरोगक्षयपूर्वकचिरञ्जीविपुत्रादिलाभगोधनधान्यादिसमृद्धिसकलसुखसौभाग्यSवैधव्यसकलकामावाप्तिकामा अद्यसायंकाले सूर्यास्त समये, श्व: प्रात:काले सूर्योदयसमये च पूजनपूर्वकं सूर्यार्घ्यमहं दास्ये।

ऐसा संकल्प करके भगवान सूर्य का पूजन कर ठीक सूर्यास्त के समय विशेष अर्घ्य प्रदान करे। स्कन्द पुराण मे कहा गया है कि यह व्रत सर्वत्र इस रूप में विख्यात एवं प्रशंसनीय है कि यह सभी प्राणधारियों के मनोवाञ्छित फल को प्रदान करता है तथा सभी सुखों को प्रदान करता है। इस वर्ष छठ पर दोष के समूहों को नष्ट करने वाले रवियोग का दुर्लभ संयोग प्राप्त हो रहा है। इसके अलावा शश महापुरुष योग, गजकेसरी योग, अमला योग, शंख योग, का भी संयोग प्राप्त हो रहा है। जिससे व्रतियों पर महालक्ष्मी की कृपा बरसेगी।


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