बिसात पर गज व अश्व लड़ाएंगे बटुक, आदि शंकराचार्य के आश्रम में शतरंज प्रशिक्षण
देश-विदेश से वेदों के अध्ययन के लिए आए बटुक अब शतरंज की बिसात पर भी अपने बुद्धि कौशल को और तेज करेंगे।
वाराणसी, जेएनएन। देश-विदेश से वेदों के अध्ययन के लिए आए बटुक अब शतरंज की बिसात पर भी अपने बुद्धि कौशल को और तेज करेंगे। भारत में यह खेल काफी पहले चतुरंग के नाम से खेला जाता था। राजे-महाराजे युद्ध कौशल को सीखने के लिए इस खेल में बहुत दिलचस्पी लेते थे। बाद में यह खेल अरब होते हुए यूरोप चला गया।
डिजिटल होती दुनिया में कहीं बटुक पीछे न हो जाए इस के लिए केदार घाट पर आदि शंकराचार्य के आश्रम ने निर्णय लिया है कि उसके यहां के 50 बटुकों को शतरंज का प्रशिक्षण दिया जाएगा। बटुकों शतरंज के मोहरों के नाम भी संस्कृत में ही बोलेंगे जैसे गज(हाथी), अश्व(घोड़ा) और राजन(राजा)।
आश्रम के प्रबंधक प्रत्यक चैतन्य मुकुदानंद ब्रहमचारी ने बुधवार को बताया कि हम नहीं चाहते है कि हमारे बटुक बुद्धि कौशल में किसी से पीछे रहे। वेदों की ऋचाओं को स्मरण करने में यह खेल बहुत काम आएगा क्योंकि इस खेल में स्मरण शक्ति का बेहतरीन होना आवश्यक है तभी आप प्रतिद्वंद्वी को मात दे सकेंगे। शतरंज के खेल में हमें अपनी चाल के साथ विपक्षी खिलाड़ी की चाल के बारे में भी सोचना होता है। ऐसे में जिसकी स्मरण शक्ति बेहतर होगी वहीं जीतेगा।
जिला शतरंज संघ के सचिव विजय कुमार ने बताया कि आश्रम के प्रबंधक स्वामी अविमुक्तेश्वरा नंद की अनुमति मिलते ही हम यहां पर वर्ष भर बटुकों को शतरंज का प्रशिक्षण देंगे। पहले दिन अरुण शुक्ला, दीपक पांडेय, पुष्कर उपाध्याय, आनंद गौतम, देवेश स्वामी और मुदित शुक्ला ने 64 खाने और 32 मोहरों वाले खेल में अपने जीवन की पहली चाल चली।