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चौमासा, प्रकृति और मानव के संबंधों को बेहतर करने की एक सामाजिक कला, बीएचयू के अध्ययन केंद्र में हुआ आयोजन

सावन आते ही बीएचयू के अध्ययन केंद्र से चौमासा का शुभारंभ हुआ और कन्नड़ और भोजपुरी संगीत की प्रस्तुतियों ने गंगा-कावेरी संगम के दर्शन हुए। चौमासा के चार माह लोकमंगल की कामना लिए लोक संस्कृति के प्रसार के लिए होते हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 08:22 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 08:22 PM (IST)
चौमासा, प्रकृति और मानव के संबंधों को बेहतर करने की एक सामाजिक कला, बीएचयू के अध्ययन केंद्र में हुआ आयोजन
बीएचयू के अध्ययन केंद्र से चौमासा का शुभारंभ हुआ

वाराणसी, जागरण संवाददाता। सावन आते ही बीएचयू के अध्ययन केंद्र से चौमासा का शुभारंभ हुआ और कन्नड़ और भोजपुरी संगीत की प्रस्तुतियों ने गंगा-कावेरी संगम के दर्शन हुए। चौमासा के चार माह लोकमंगल की कामना लिए लोक संस्कृति के प्रसार के लिए होते हैं।

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बीएचयू में मंगलवार को चौमासा पर आधारित दो दिवसीय संगोष्ठी की शुरूआत मधुर लोकगीतों और आध्यात्मिक संबोधनों से हुई। कनार्टक और भोजपुरी के संगीतज्ञों ने गायन के माध्यम से यह बताया गया कि चौमासा के चार माह भारत में लोक संस्कृति के वाहक की तरह से काम करते हैं। वहीं लोक कवि हरिराम द्विवेदी ने चौमासा का गायन प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया। भारत की मूल परंपरा को समझना है तो हम इसे चातुर्मास (जोकि सावन से लेकर कार्तिक तक चलता है) द्वारा सरलता से समझ सकते हैं। इन पर बने गीतों के माध्यम से किसी भी क्षेत्र की विशेषता का पता लगा सकते हैं। वहीं भारतीय नारी को चातुर्मास का सर्वश्रेष्ठ संवाहक बताया गया।

शताब्दी पीठ की आचार्या प्रो. मालिनी अवस्थी द्वारा संगोष्ठी की विषय स्थापना के बाद कर्नाटक से आनलाइन जुड़े मुख्य अतिथि श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी फाॅर ह्यूमन एक्सीलेंस, कलबुर्गी के संस्थापक मधुसूदन साईं ने अपना संबोधन दिया। कहा कि जिस प्रकार से चीनी-पानी घुलकर मिठास उत्पन्न करते हैं ठीक उसी प्रकार से चैमासा की गतिविधियां हमें आध्यात्मिक बनाती हैं।

उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि भारतीय संस्कृति ब्रह्मांडीय संविधान से चलता है। इसमें प्रकृति के सारे तत्व नियमबद्ध हैं। चैमासा, प्रकृति और मानव के अंतर्संबंधों को बेहतर करने की एक सामाजिक कला है। भारत ही एक ऐसा देश है जहां चौमासा जनजीवन का अंग है।

लोक मंगल का उत्सव

भारत अध्ययन केंद्र के वरिष्ठ आचार्य प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी ने कहा कि आधुनिक दृष्टि प्रकृति के दोहन पर निर्भर है और धरती को चौमासा से ही संरक्षित कर सकते हैं। प्रो. फूलचंद जैन ने कहा कि जैनी अहिंसा के सिद्धांत का व्यावहारिक प्रतिफलन चौमासा द्वारा होता है। केंद्र के चेयर प्रोफेसर राकेश उपाध्याय ने पौराणिक सृष्टि नियति का हवाला देते हुए चौमासा के आध्यात्मिक पक्ष की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने इसे लोक मंगल का उत्सव कहा, जबकि प्रो. युगल किशोर मिश्र ने चातुर्मास के वैदिक सिद्धांतों और इस दौरान होने वाले विभिन्न यज्ञों की चर्चा की। प्रो. विजय शुक्ल ने वेदों में बताई विधियों का उल्लेख किया।

चौमासा में विश्राम करने की सलाह

प्रो. सदानंद शाही ने कहा कि चौमासा किसानों के लिए फुर्सत तथा सृजन का कार्य है। प्राचीन काल में चौमासा के दौरान वर्षा ऋतु में विश्राम करने की सलाह दी जाती थी। आज आधुनिक युग में हमें प्रकृति से तालमेल करने की जरूरत है। अतिथियों का स्वागत समन्वयक प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राकेश कुमार उपाध्याय ने किया। वहीं संचालन की जिम्मेदारी डा. अमित कुमार पांडेय ने किया। इस दौरान डा. प्रकाश उदय और राहुल चौधरी समेत दो दर्जन से अधिक लोग माैजूद थे।


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