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बलिया में 87वीं जयंती पर पैतृक गांव चकिया में याद किए गए वरिष्‍ठ साहित्यकार डा. केदारनाथ सिंह

साहित्य जगत में देश के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार स्व. डा. केदारनाथ सिंह की 87वीं जयंती उनके पैतृक गांव चकिया में मनाई गई।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 02:05 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 02:05 PM (IST)
बलिया में 87वीं जयंती पर पैतृक गांव चकिया में याद किए गए वरिष्‍ठ साहित्यकार डा. केदारनाथ सिंह
बलिया में 87वीं जयंती पर पैतृक गांव चकिया में याद किए गए वरिष्‍ठ साहित्यकार डा. केदारनाथ सिंह

बलिया, जेएनएन। साहित्य जगत में देश के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार स्व. डा. केदारनाथ सिंह की 87वीं जयंती उनके पैतृक गांव चकिया में मनाई गई। इस अवसर पर प्रो. यशवंत सिंह की अध्यक्षता में एक गोष्ठी आयोजित हुई, जिसमें जगह-जगह से आए साहित्यकारों और कवियों ने उनकी रचनाएं सुनाकर यादों को ताजा किया। केदारनाथ सिंह के जीवन से जुड़े किस्सों को वहां मौजूद क्षेत्र अौर गांव के लोगों ने भी साझा किया।

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जिलाधिकारी हरि प्रताप शाही के अग्रज, साखी पत्रिका के संपादक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. सदानंद शाही ने बतौर मुख्य अतिथि भोजपुरी में संबोधन कर केदारनाथ सिंह की बातों को उनके ही शब्दों में साझा करते हुए कहा कि केदार जी एक समग्रता के कवि थे। यानी जीवन को सिर्फ मनुष्यों तक केंद्रित नहीं करते हुए प्रकृति संरक्षण की भी सोच रखते थे। उन्होंने कहा कि शब्द, सरस्वती व मनुष्यों की साधना में लगे रहने वालों के लिए केदार जी एक वरदान थे। उनकी मिट्टी पर आने पर खुद को सौभाग्यशाली महसूस कर रहा हूं।

बीएचयू के प्रो. सदानंद शाही ने कहा कि केदारनाथ सिंह ने 'बिना नाम की नदी', कुंआ, तालाब, खेत-खलिहान आदि पर कविताएं लिखते रहे। वहीं आखिरी समय में भोजपुरी में 'भागड़ नाला जागरण मंच' नामक कविता में लिखा कि 'भागड़ दादा उठ, हो गइल बिहान। पशु-पक्षी, गाय, बैल, किसान भागड़ में तोहार पानी पीके प्यास बुझावे पहुचल बा लो'। प्रो. शाही ने आगे कहा कि उनकी रचनाओं में यह चिंतन था कि वह कौन सी वजह है कि कुआं, नदी, तालाब से पानी निकलकर बोतल में आ गया। आदमी, चिड़िया, जानवर, चुरूंगा, नदी-नाला सबको जोड़कर दुनिया बनी लेकिन देश से पानी ही चला गया। अब देश के पानी को जगाने की जरूरत है। ऐसी ही कई प्रकृति से जुड़ी समस्याओं पर आधारित और लोगों को जगाने के लिए उनकी कविताएं होती थी। प्रो. शाही ने साखी पत्रिका के कुछ अंश पढ़कर केदार जी की रचनाओं पर प्रकाश डाला। 

स्व. डा. केदारनाथ सिंह के पुत्र आइएएस सुनील सिंह ने जिलाधिकारी से मांग किया कि घर के सामने जो भागड़ नाला है, यह कई गांवों से होकर गुजर रही है लेकिन इस भागड़ नाले का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। अगर इस भागड़ नाले की सफाई की जाय तो काफी उपयोगी सिद्ध होगा। इस मौके पर दुबहड़ डिग्री कालेज के प्राचार्य दिग्विजय सिंह, कवि उदय प्रकाश, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. अवधेश, भाजपा नेता मुक्तेश्वर सिंह, प्रधान प्रतिनिधि अरुण सिंह, संतोष सिंह, शैलेश सिंह, एडीओ पंचायत योगेश चौबे, मित्रेश तिवारी, निर्भय नारायण सिंह सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।

डा. केदार नाथ सिंह की बातों से गवई माहौल झलकती थी

स्व. डा. केदारनाथ सिंह के पैतृक गांव पर हुई गोष्ठी में जिलाधिकारी हरि प्रताप शाही ने कहा कि मेरा सौभाग्य रहा कि केदारनाथ सिंह जी का आशीर्वाद हमेशा मिलता रहा। मेरी पोस्टिंग जहां भी रही, कभी ना कभी उनसे मुलाकात होती रही। सजहता, सरलता में उनकी विद्वता भी झलकती थी। सबसे खास बात है कि उनकी हर रचना में गांव, गांव के लोग, गवई माहौल जैसी मूल बातें झलकती थी। उनकी जयंती पर उनके गांव में मौजूदगी को अपना सौभाग्य समझता हूं। उन्होंने अपील किया कि यह आयोजन हर वर्ष होना चाहिए। 

कविता के माध्यम से भी दी गई श्रद्धांजलि 

डा. केदारनाथ सिंह की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में आए कवियों ने केदार जी की कविताओं के माध्यम से विशेष रूप से प्रकृति को बचाने का संदेश दिया। बीएचयू में अध्ययनरत सुशांत ने प्रकृति का महत्वपूर्ण अंग पेड़ों की सुरक्षा पर आधारित केदारनाथ सिंह जी की 'लोहे के टंगुनिया से बगिया में बाबा, कटिहा ना अमवा के सोर' कविता सुनाकर सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया। सुशांत की मीठी आवाज में केदारनाथ सिंह की इस कविता को सुन वहां हर किसी ने अपनी तालियों के माध्यम से सराहना की। पेड़ों के संरक्षण के अलावा उन्होंने आज की ज्वलन्त पारिवारिक समस्याओं पर आधारित अपनी भी कुछ कविताएं पढ़कर मौजूद समस्त साहित्यकारों का आशीर्वाद लिया। सुशांत की कविता 'देहिया ने दरार परे त परे, नेहिया में दरार ना फटाई रे' को भी सबने खूब सराहा।


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