Move to Jagran APP

13,000 किलोमीटर की दूरी तय कर मां के साथ वाराणसी के असि घाट पहुंचे इंग्लैैंड से कैंसर के मरीज ल्यूक

करीब 13000 किलोमीटर साइकिल चलाकर इंग्लैैंड के ब्रिस्टल शहर के रहने वाले ल्यूक रविवार को अपनी मां के साथ वाराणसी पहुंचे। ल्यूक चौथे स्टेज के कैंसर के मरीज हैैं। ल्यूक तीन लाख पौंड स्टर्लिंग (तीन करोड़ रुपये) इकट्ठा करने के लिए ब्रिस्टल टू बीजिंग साइकिल यात्रा पर निकले हैैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 01:02 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 01:33 AM (IST)
13,000 किलोमीटर की दूरी तय कर मां के साथ वाराणसी के असि घाट पहुंचे इंग्लैैंड से कैंसर के मरीज ल्यूक
वाराणसी के असि घाट पहुंचे इंग्लैैंड से कैंसर के मरीज ल्यूक ग्रेनफिल शा

जागरण संवाददाता, वाराणसी : कैंसर का नाम सुनते ही दिल हताशा से बैठ जाता है। सामने मृत्य दिखाई देने लगती है। इस खौफनाक बीमारी से दूसरों को जीवन दान देने के लिए कैंसर के मरीज इंग्लैैंड के रहने वाले ल्यूक ग्रेनफिल शा ने जो किया, उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

loksabha election banner

24 साल के इंग्लैैंड के ब्रिस्टल शहर के रहने वाले ल्यूक का जीवन भी एक सामान्य नौजवान जैसा ही था। अचानक एक दिन उन्हें पता चला कि चौथे स्टेज के कैंसर के मरीज हैैं। एक पल को तो वह निराश हो गए लेकिन फिर उन्होंने खुद को प्रेरित किया और अपना जीवन उन बच्चों के नाम कर दिया जो इस जानलेवा बीमारी से पीडि़त हैैं। करीब 13,000 किलोमीटर साइकिल चलाकर वह रविवार को अपनी मां के साथ काशी पहुंचे। असि घाट पर ल्यूक ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य कैंसर पीडि़त हजारों बच्चों के इलाज के लिए धन जुटाना है। वह तीन लाख पौंड स्टर्लिंग (तीन करोड़ रुपये) इकट्ठा करने के लिए ब्रिस्टल टू बीजिंग साइकिल यात्रा पर निकले हैैं। उन्होंने कहा कि काशी मोक्ष की नगरी है। लेकिन हम यहां जीवन जीने और जीवनदान करने की उम्मीद लेकर आए हैं। बनारस से वह बांग्लादेश और वहां से चीन की राजधानी बीजिंग जाएंगे। इस पूरी यात्रा में वह 30 देशों से गुजरेंगे। ब्रिस्टल से निकलने के बाद नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रिया, हंगरी, सर्बिया और काला सागर पार करके टर्की, जार्जिया, मध्य एशिया और पाकिस्तान आदि देश होते हुए भारत पहुंचे। उन्होंने बताया कि इस यात्रा में उन्हें लोगों का खूब स्नेह मिला।

ल्यूक ने कहा कि किसी अच्छी भावना से यात्रा पर निकलें और इसमें काशी शामिल न हो तो यात्रा अधूरी मानी जाती है। यहां आध्यात्मिक शक्ति है। बाबा काशी विश्वनाथ और मां गंगा से वह अपने मुहिम को पूरा करने का आशीर्वाद मांगने आए हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यात्रा के लिए साइकिल इसलिए चुनी कि ताकि फिट रहकर अपने ऊपर आए संकट को कुछ दिनों के लिए टाल सकें। साइक्लिंग हर रोग को हराने की दवा है। कैंसर का पता चलने के बाद उन्होंने शादी नहीं करने का फैसला किया और अपना जीवन एक बड़े मकसद के नाम कर दिया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.