स्वदेशी मार्कर से महज 250 रुपये में कैंसर की मार्किंग, बीएचयू के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग ने खोजा फार्मूला
स्तन कैंसर (ट्यूमरस) के इलाज के लिए बीएचयू के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग ने स्वदेशी फार्मूला ईजाद किया है।
वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। स्तन कैंसर (ट्यूमरस) के इलाज के लिए बीएचयू के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग ने स्वदेशी फार्मूला ईजाद किया है। इस विधि से ट्यूमर की मार्किाग करने में महज 250 रुपये ही खर्च होंगे, जबकि विदेशी मार्कर पर 10 हजार रुपये तक खर्च हो जाते हैं।
यहां के चिकित्सकों ने यह मार्कर बोनमैरो नीडल के जरिये बनाया है। स्तन कैंसर में कीमोथेरेपी के पहले ट्यूमर की मार्किंग की जाती है, क्योंकि कीमोथेरेपी के बाद ट्यूमर छोटा हो जाता है या फिर समाप्त हो जाता है। ऐसे में सही स्थिति का पता लगाना बहुत ही आवश्यक होता है। इसमें माॄकग काम आती है।चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रो. मनोज पांडेय के अनुसार यहां प्रति वर्ष विभिन्न प्रकार के कैंसर के करीब एक हजार मरीजों का ऑपरेशन होता है। इस रोग का मुख्य इलाज ऑपरेशन ही है। हां, शुरुआत में कीमोथेरेपी की जाती है। कीमो से पहले ट्यूमर की मार्किंग की जाती है, ताकि वास्तविक जगह पर उपचार किया जा सके। वैसे तो माग के लिए आमतौर पर विदेश से आयातित मार्कर उपयोग में लाए जाते हैं, जो काफी महंगे होते हैं। भारत में इनका दाम आठ से 10 हजार रुपये तक पड़ता है। बीएचयू में अब स्वदेशी युक्ति से मार्किंग की जा रही है, जिस पर महज 250 रुपये का खर्च आता है।
इस युक्ति में बोनमैरो नीडल और 10 मिमी का स्टील का तार, जिसे के-वायर भी कहते हैं, काम आता है। तार को कीमोथेरेपी से पहले मार्कर क्लिप के रूप में ट्यूमर के चारों ओर डालते हैं। खास बात यह है कि एक्स-रे या अल्ट्रासाउंड में भी यह आसानी से दिख जाता है। इससे उपचार आसान हो जाता है। प्रो. मनोज पांडेय बताते हैं कि प्रयोग की सफलता के बाद अब इसे चिकित्सा जगत तक पहुंचाया जा रहा है। इसी उद्देश्य से पांच अगस्त को एक टीचिंग वेबिनार आयोजित हुआ, जिसमें इस युक्ति को प्रस्तुत किया गया। अनेक डॉक्टरों ने इसे देखा और समझा।
बेहद सस्ती और कारगर तकनीक
बेहद सस्ती और कारगर तकनीक को अब सुविधाजनक डिवाइस का रूप देने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के मैकेनिकल विभाग से संवाद किया गया है।
- प्रो. मनोज पांडेय, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू, वाराणसी