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Chandaeli में गौरैया संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे गोपाल, घोसला बनाने और पौधारोपण की मुहिम

धानापुर ब्लाक के रनपुर गांव के गोपाल कुमार गौरैया संरक्षण की दिशा में वीवन्डर फाउंडेशन के तहत वर्ष 2017 से कार्य कर रहे। घोसले और पौधारोपण कर गोपाल गौरैया को बचाने की मुहिम में जुटे हैं। इसमें उनका साथ दो सौ वालेंटियर की टोली देती है।

By saurabh chakravartiEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 08:30 AM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 09:51 AM (IST)
Chandaeli में गौरैया संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे गोपाल, घोसला बनाने और पौधारोपण की मुहिम
गोपाल कुमार गौरैया संरक्षण की दिशा में वीवन्डर फाउंडेशन के तहत वर्ष 2017 से कार्य कर रहे।

चंदौली, जेएनएन। धानापुर ब्लाक के रनपुर गांव के गोपाल कुमार गौरैया संरक्षण की दिशा में वीवन्डर फाउंडेशन के तहत वर्ष 2017 से कार्य कर रहे। घोसले और पौधारोपण कर गोपाल गौरैया को बचाने की मुहिम में जुटे हैं। इसमें उनका साथ दो सौ वालेंटियर की टोली देती है। तीन साल से उनके द्वारा चलाए जा रहे इस अभियान का परिणाम सुखद रहा है और कंकरीट के जंगलों में भी अब गरैया दिखाई पड़ने लगी हैं। पिछले दिनों मंडलायुक्त वाराणसी मंडल दीपक अग्रवाल ने संस्था की वार्षिक पत्रिका जीवा का विमोचन किया।
 बाल मन पर समाज के लिए कुछ करने की जिज्ञासा की छाप ने वयस्क हो चुके गोपाल को लगातार प्रेरित करना शुरू किया। उन्होंने अपने दोस्तों से अपनी भावना साझा की और सबने अपनी व्यस्तता में भी समाज को एक-दो घंटे समर्पित करने की हामी भरी। चर्चाओं के बीच जब लुप्त हो रहे जीव-जंतुओं का ज़िक्र आया तो बचपन के दिनों में घरों में फुदकती नन्ही गौरैया के संरक्षण पर रायशुमारी बनी। गोपाल ने जब आसपास नज़र दौड़ाई तो उन्हें कहीं भी गौरैया दिखाई नही दी। इंटरनेट पर सर्च किया तो वह हैरान रह गए कि घरों व गांव के पेड़ों पर चहचहाती गौरैया लुप्त होने की कगार पर है। तभी प्रण किया कि गौरैया को बचाना है।.....और इस तरह वीवन्डर फाउंडेशन की नींव पड़ी। गोपाल बताते हैं कि वीवन्डर माने 'हम घुमक्कड़।'
चलाया जागरूकता अभियान
 गोपाल और उनके साथियों ने सर्वप्रथम गौरैया को लेकर लोगों को जागरूक करना शुरू किया। बहुत सारे लोग, विशेष रूप से आज की पीढ़ी को गौरैया के बारे में पता भी नही था। लोगों के बाद उनकी टीम ने स्कूलों का रुख किया। बच्चों को जागरूक करने के साथ ही उन्हें गत्ते व लकड़ियों से घोसले बनाने की ट्रेनिंग दी। उनकी टीम ने अब तक 74 हजार बच्चों को इसकी ट्रेनिंग दे रखी है। साथ ही उन्होंने पौधारोपण पर जोर दिया। बच्चों से पौधे लगवाए भी और उन्हें संरक्षित करने को प्रेरित किया। इसके अलावा उन्होंने शहरों में 4 हजार से ज्यादा घरों में घोसले रखवाए व गौरैया के लिए दाना-पानी रखने को प्रेरित किया। अब उनका प्रयास रंग लाने लगा है। लोग वीडियो भेजने लगे हैं कि जहां-जहां उन्होंने घोसले रखवाए वहां गौरैया आने लगी हैं।
टीम के सदस्य झुग्गी-झोपड़ियों व बनारस के घाटों पर घूमने वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान करते हैं। फाउंडेशन उन्हें किताब-कॉपियां व रबर-पेंसिल भी मुहैया कराता है। उनका यह मिशन अब दिल्ली, उड़ीसा व कोलकोता तक पहुंच गया है। गोपाल बताते हैं कि बनारस के घाटों व चौराहों पर छोटे बच्चों का भीख मांगना आम बात है। हम उनके परिजनों को जागरूक करते हैं और पढ़ाई की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करते हैं।

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