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तीन दिवसीय भारतीय लेखक शिविर 'गांधी और हिंदी सृजन' विषयक संगोष्ठी में बापू की प्रासंगिता पर मंथन

दुर्गाकुंड स्थित धर्मसंघ शिक्षा मंडल में रविवार को तीन दिवसीय भारतीय लेखक शिविर गांधी और हिंदी सृजन विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 04:09 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 04:09 PM (IST)
तीन दिवसीय भारतीय लेखक शिविर 'गांधी और हिंदी सृजन' विषयक संगोष्ठी में बापू की प्रासंगिता पर मंथन

वाराणसी, जेएनएन। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ, केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा साहित्य अकादमी नई दिल्ली व विद्या श्री न्यास के संयुक्त आयोजन में रविवार को दुर्गाकुंड स्थित धर्मसंघ शिक्षा मंडल में रविवार को तीन दिवसीय भारतीय लेखक शिविर 'गांधी और हिंदी सृजन' विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि विश्वनाथ प्रसाद तिवारी पूर्व अध्यक्ष साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने कहा कि गांधी जी के विचार हर युग में प्रासंगिक रहेंगे। उनके विचारों को भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व मे लोगों ने जाना और उसे सम्मान भी दिया।

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उन्होंने कहा कि गुजराती साहित्य के इतिहास में एक पूरे युग को गांधी युग की संज्ञा दी गई वही हिंदी साहित्य में छायावाद युग की उसे संज्ञा दी गयी थी इससे गांधी जी के विचारों को समझा जा सकता है। महान साहित्यकार प्रेमचंद का पूरा जीवन गांधी जी की नैतिक मूल्यों से प्रभावित था  और यह अंत तक बना रहा। गांधी जी ने इस देश के माहौल को देखते हुए एक अहिंसक लोकतंत्र के मॉडल की संकल्पना की थी लेकिन उसके बाद उन्ही के लोगों ने उसकी अनदेखी कर दी। यदि आज उनका वह मॉडल पूरे देश में लागू हो गया होता तो आज देश की स्थिति कुछ और होती।

उद्घाटन सत्र के अध्यक्षीय भाषण प्रो अच्युतानन्द मिश्र ( पूर्व कुलपति माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्ववविद्यलय) ने कहा कि गांधी जी ने पूरे देश और विश्व को राष्ट्र भाषा हिंदी से जोड़ने का मुख्य काम किया था गांधी जी ने कांग्रेस के लखनऊ में आयोजित 1916 में राष्ट्रीय अधिवेशन में हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने पर पहली बार बात की और कांग्रेस का भी वो पहला अधिवेशन था जिसमें किसी ने हिंदी में भाषण दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की बात गांधी जी ने कही थी क्योंकि गांधी जी का व्यक्तिगत मत था कि मातृ भाषा हमारी मां की तरह होती है और जो देश अपनी मातृभाषा का अनादर करता है उसका कभी उत्थान नही हो सकता है।

यदि हम सही मायने में गांधी जी का अनुसरण करना चाहते हैं तो हम उनके विचारों को आत्मसात करें तभी सही मायने में हम लोग गांधी के विचारों को समझ पाएंगे। अरुणेश नीरन (पूर्व प्राचार्य बुद्ध महाविद्यालय कुशीनगर) ने कहा कि भारतीय भाषाओं में चर्चा के दौरान ज्ञान विज्ञान का सृजन होता है। गांधी जी ने कहा था कि मैं अंग्रेजों को हिंदुस्तान को गुलाम बनाने के लिये क्षमा कर सकता हूं लेकिन उन्होंने हमारी भाषा को जिस तरह से नुकसान किया उसके लिये मैं उन्हें कभी क्षमा नही करूंगा। उद्घाटन सत्र में प्रो. महेश्वर मिश्र, पूर्व डीआइजी दयानिधि मिश्र, साहित्यकार जितेंद्र नाथ मिश्र, बीएचयू के पूर्व हिंदी विभागध्यक्ष श्रीनिवास पांडेय आदि उपस्थित थे।


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