देश की पहली कारपेट ईको लैब भदोही में, आइआइसीटी के ब्लू प्रिंट पर लगी मुहर
केंद्र सरकार ने पहली कारपेट ईको लैब भदोही में बनाने की स्वीकृति दी है। आइआइसीटी भदोही द्वारा तैयार लैब के ब्लू प्रिंट को हरी झंडी दे दी गई है।
भदोही [संग्राम सिंह]। मानव शरीर को जो जख्म दे, बीमारी को जन्म दे, ऐसी कालीन अब दुनिया को नहीं चाहिए। अमेरिकी और यूरोपीय देशों ने इस तरह के कालीन आयात पर रोक लगा दी है। आयातक अब वही कालीन लेेंगे, जिसकी ईको जांच प्रमाणित हुई होगी। ऐसे में देश के कालीन उद्योग को कोई चोट न पहुंचे, इसके लिए केंद्र सरकार ने पहली 'कारपेट ईको लैब' भदोही में बनाने की स्वीकृति दी है। चार जानलेवा केमिकल की जांच के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट आफ कारपेट टेक्नोलॉजी (आइआइसीटी)भदोही द्वारा तैयार लैब के ब्लू प्रिंट को हरी झंडी दे दी गई है। कपड़ा मंत्रालय ने पांच करोड़ रुपये स्वीकृत भी कर दिए हैं। लैब बनते ही देशभर में बनने वाले सालाना 12 हजार करोड़ रुपये के कालीन की ईको जांच सिर्फ भदोही में होगी। पूर्वांचल में कालीन का लगभग 4500 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार है। कालीन निर्यातक उमेश कुमार गुप्ता ने इस पहल से इस उद्योग के विस्तार की उम्मीद जताई है।
देश से 50 फीसद नॉटेड कालीन, 30 फीसद टप्टेड, 10 फीसद दरी व हैैंडलूम और 10 फीसद आउटडोर, कस्टम व डिजाइनर कारपेट का निर्यात अमेरिका, चीन, इजराइल, हांगकांग, ऑस्ट्रिया, इंग्लैैंड, स्पेन, जर्मनी व ऑस्ट्रेलिया में होता है। देश में भदोही, मीरजापुर, वाराणसी के अलावा आगरा, जयपुर, पानीपत, दिल्ली व कश्मीर में कालीन बनती है।
घातक केमिकल, बीमारी की जड़
एजो डाई : डाइंग के रूप में इस्तेमाल होता है, जिससे कालीन में चमक आती है। लेकिन इसे कैंसर कारक बताया जाता है।
हैवी मेटल्स केमिकल : यह क्रोमियम, लेड व आर्सेनिक युक्त हैै। यह भी खतरनाक बीमारियों को जन्म देता है। आइआइसीटी के एसोसिएट प्रोफेसर डा. रतिकांत मलिक के अनुसार कीटनाशक परमेथरिन और सिंथेटिक यार्न को भी परखा जाएगा।
कई देशों ने खतरनाक केमिकल युक्त कालीन लेने से इन्कार कर दिया है
कई देशों ने खतरनाक केमिकल युक्त कालीन लेने से इन्कार कर दिया है। ईको लैब की डिजाइन कपड़ा मंत्रालय ने फाइनल कर दी है। शीघ्र काम शुरू होगा।
- प्रो. आलोक कुमार, निदेशक, आइआइसीटी, भदोही