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विंध्य की धरा पर लहलहाएगा औषधीय गुणों से भरपूर काला धान, किसानों को प्रेरित कर रहा कृषि विभाग

कृषि विभाग की पहल पर विंध्य क्षेत्र के अन्नदाताओं ने भी काला चावल की खेती करने का निर्णय लिया है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 26 Jun 2020 08:51 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jun 2020 10:23 PM (IST)
विंध्य की धरा पर लहलहाएगा औषधीय गुणों से भरपूर काला धान, किसानों को प्रेरित कर रहा कृषि विभाग
विंध्य की धरा पर लहलहाएगा औषधीय गुणों से भरपूर काला धान, किसानों को प्रेरित कर रहा कृषि विभाग

मीरजापुर, जेएनएन। औषधीय गुणों से भरपूर खुशबू और स्वास्थ्य का खजाना कहे जाने वाले काला चावल के लिए अब लोगों को परेशान नहीं होना पड़ेगा। कृषि विभाग की पहल पर विंध्य क्षेत्र के अन्नदाताओं ने भी काला चावल की खेती करने का निर्णय लिया है। इसके लिए विंध्याचल मंडल के जनपद मीरजापुर व भदोही में कृषि विभाग द्वारा काला चावल (धान) की खेती के लिए किसानों को बढ़ावा दिया जा रहा है। किसानों को काला चावल के बीज अनुदान पर मुहैया कराया जा रहा है। काला चावल की खेती करने से किसानों को अत्यधिक मुनाफा होता है।

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औषधीय गुणों से भरपूर इस चावल में खुशबू और स्वास्थ्य का खजाना है। तेजी से लोकप्रिय हो रहे काले धान की खुशबू अब विंध्य क्षेत्र तक पहुंच चुकी है। अब विंध्य क्षेत्र के चुनार के सुरेश सिंह, सिटी ब्लाक के सुखनंदन दुबे, छानबे ब्लाक के प्रदीप कुमार ने इस वर्ष इस धान की खेती करके नया अध्याय शुरू किया है। उनके खेतों में खुशबूदार काले धान की नर्सरी तैयार हो रही है। इलाके के अन्य किसान भी इस विशेष प्रजाति के धान की खेती की तैयारी कर रहे है।

काला धान की फसल 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है

काला धान की फसल 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है। एक बीघे में 8 हजार रुपये की लागत आती है और आठ ङ्क्षक्वटल प्रति बीघे की पैदावार होती है। काला धान का चावल 100 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक्री होती है। वहीं सामान्य चावल 20 से 50 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है। इससे किसानों को लगभग दोगुने का लाभ होता है।

- डा. अशोक उपाध्याय, उप निदेशक कृषि, मीरजापुर।

वसा की मात्रा कम पाई जाती है तथा पाचन शक्ति को बढ़ाता है

चावल की जितनी भी वैराइटी देश में है। उसमें कार्बोहाइड्रेट उपस्थित है। जहां भी कार्बोहाइड्रेट है वहां पर ग्लुकोज और फ्रुक्टोज उपस्थित है। चावल में ग्लुकोज होने पर सुगर होना निश्चित है। सामान्य धान की प्रजातियों की अपेक्षा काला चावल प्रजाति में सुगर की मात्रा काफी कम पाई जाती है। यह पचनीय होता है। इसमें वसा की मात्रा कम पाई जाती है तथा पाचन शक्ति को बढ़ाता है। इसमें यूरिया की मात्रा काफी कम प्रयोग करनी पड़ती है। इससे यूरिया की बचत होती है। पर्यावरण पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

- डा. एसएन सिंह, कृषि वैज्ञानिक मृदा, राजीव गांधी दक्षिणी परिसर, मीरजापुर।

काला चावल से किसानों की आय होगी दोगुनी

काला धान इसकी खेती किसानों को अच्छी कमाई भी करा सकती है। पारंपरिक चावल के मुकाबले पांच सौ गुना अधिक कमाई इस धान की खेती से हो सकती है। कई राज्यों की सरकारें इसकी खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी कर रही हैं। उप निदेशक कृषि डा. अशोक उपाध्याय ने बताया कि काला धान का चावल 100 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक्री होता है। वहीं सामान्य चावल 20 से 50 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है। इससे किसानों को लगभग दोगुने का लाभ होता है।

चंदौली में काला धान की हो रही खेती

वर्तमान समय में चंदौली जनपद में किसानों द्वारा बहुतायत में काला धान की खेती की जा रही है। इससे किसानों को काला धान का बीज मिल रहा है। काला धान से किसानों को उपज का अच्छा दाम मिलेगा।


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