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शिव मंगल सिंह 'सुमन' जयंती : महामना मालवीय का कर्ज चुकाने सुमन काशी छोड़ जा पहुंचे थे मालवा

हिंदी छायावाद के अंतिम दौर में विद्रोही कवि के रूप में विख्यात प्रोफेसर और विचारक शिवमंगल सिंह सुमन की कविताओं में काशी का अलबेला ठाट-बाट रचा-बसा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 03:53 PM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 03:53 PM (IST)
शिव मंगल सिंह 'सुमन' जयंती : महामना मालवीय का कर्ज चुकाने सुमन काशी छोड़ जा पहुंचे थे मालवा
शिव मंगल सिंह 'सुमन' जयंती : महामना मालवीय का कर्ज चुकाने सुमन काशी छोड़ जा पहुंचे थे मालवा

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। हिंदी छायावाद के अंतिम दौर में विद्रोही कवि के रूप में विख्यात प्रोफेसर और विचारक शिवमंगल सिंह 'सुमन' की कविताओं में काशी का अलबेला ठाट-बाट रचा-बसा है। उन्नाव से उज्जैन तक के जीवन के सफर में उन्होंने अपनी शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पूरी की थी। यहीं उन्होंने एमए किया और अपनी पीएचडी भी यहीं पूरी की। बनारस का जिक्र करते हुए उन्होंने अपनी एक कविता में कहा है- 'बनारस के मघई पान की महमहाती भीतरी तरलता में फूटा था बनारसी ठाट'। एक कविता में उन्होंने कहा है- ' एक दिन काशी छोड़, मालवा जा पहुंचा था, महामना मालवीय का कर्जा चुकाने को'। अर्थात उन्होंने बीएचयू से जो ज्ञान अॢजत किया उसे महामना का कर्ज समझ कर उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में व अन्य जगह चुकाने में लगे रहे।

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गांधी और मालवीय जी को सुनाई थी अपनी कविता : बीएचयू के पूर्व कार्याधिकारी डा. विश्वनाथ पांडेय की किताब 'विजनरी ऑफ मॉडर्न इंडिया : मदन मोहन मालवीय' के मुताबिक सुमन जी बीएचयू की रजत जयंती के अवसर पर मालवीय जी और गांधी जी के समक्ष कविता सुनाने को उपस्थित हुए। बीच कविता में एक पंक्ति आई 'हुआ युगधर्म का बंदा, फिर दर-दर किया चंदा, खड़ा कर दिया उसने, पुन: भारत का नालंदा, हमारे विश्वकर्मा की, मालवीय की जय, हमारा विश्वविद्यालय-हमारा विश्वविद्यालय।' इस कविता में 'मालवीय की जय' वाक्य सुनकर महामना ने कहा कि इसे कविता से तत्काल हटा दो, इस पर वहां बैठे गांधी जी ने जोर से आवाज देकर कहा, 'नहीं, नहीं ये नहीं हटेगा।' गांधी जी के भाव को सुन वहां बैठे समस्त छात्र प्रसन्नचित हो उठे।

अटल जी रहे जीवन पर्यंत प्रेरित : डा. विश्वनाथ पांडेय ने बताया कि शिव मंगल जी जब ग्वालियर में प्रोफेसर थे, तब भारत के अटल बिहारी वाजपेयी जी उनके प्रिय शिष्यों में से एक थे। शिव मंगल जी की कविता 'वरदान नहीं मांगूंगा' से वाजपेयी जीवन पर्यंत प्रेरित रहे। उन्होंने इसी कविता की तर्ज पर 'रार नहीं ठानूंगा' कविता का लेखन किया था।


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