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पं. बिरजू महाराज अपनी 'ससुराल' काशी आने के लिए रहते थे बेताब, खोजते थे ट्रैफ‍िक में लय

पं. बिरजू महाराज बनारस घराने के ख्यात संगीतकार पं. श्रीचंद्र मिश्र की बेटी अन्नपूर्णा देवी से उनका विवाह हुआ था। पं. बिरजू महाराज की बड़ी बेटी कविता मिश्रा का विवाह पद्मविभूषण पं. साजन मिश्र से हुआ है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 10:34 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 10:52 AM (IST)
पं. बिरजू महाराज अपनी 'ससुराल' काशी आने के लिए रहते थे बेताब, खोजते थे ट्रैफ‍िक में लय
बनारस घराने के ख्यात संगीतकार पं. श्रीचंद्र मिश्र की बेटी अन्नपूर्णा देवी से उनका विवाह हुआ था।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। कथक सम्राट पं. बिरजू महाराज का जब भी काशी आने का कार्यक्रम बनता तो वह दस दिन पहले से अपनी तैयारी शुरू कर देते थे। करते भी क्यों न, काशी उनकी ससुराल और समधियाना जो ठहरी। बनारस घराने के ख्यात संगीतकार पं. श्रीचंद्र मिश्र की बेटी अन्नपूर्णा देवी से उनका विवाह हुआ था। पं. बिरजू महाराज की बड़ी बेटी कविता मिश्रा का विवाह पद्मविभूषण पं. साजन मिश्र से हुआ है। इस तरह काशी उनकी ससुराल और समधियाना दोनों ही थी।

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काशी के ट्रैफिक में खोजते थे लय : ख्यात सितार वादक पं. नीरज मिश्र संस्मरणों को याद करते हुए कहते हैं कि कई बार हमे उनके साथ मंच साझा करने का अवसर मिला। काशी के ट्रैफिक और बोल-चाल में भी वह लय खोजते थे। कहा जाए तो उनमें साक्षात कृष्ण की छवि दिखाई देती थी। उनके निधन से संकटमोचन का आंगन, गंगा महोत्सव का मंच अब सदैव के लिए सुना हो गया।

बीती रात युवा बनारस में भी जुड़े रहे आनलाइन : रूपवाणी स्टूडियो लोहटिया में आयोजित तीन दिनी युवा बनारस कार्यक्रम की अंतिम निशा में ख्यात नृत्यकार विशाल कृष्णा की प्रस्तुति देखकर वह अभिभूत हुए। मन ही मन विशाल को उन्होंने अपना आशीष दिया।

कलाश्रम में ली अंतिम सांस : पं. बिरजू महाराज की पोती रागिनी महाराज ने दैनिक जागरण को फोन पर बताया कि पं. बिरजू महाराज युवा बनारस कार्यक्रम की समाप्ति के बाद डोरबाग स्थित कलाश्रम (संगीत संस्थान) में ही थे। अचानक से उनको घबराहट हुई। पोती रागिनी उनके बालों में हाथ फेर रही थी इस बीच उनका प्राण निकल गया। अभी कुछ दिन पहले ही वह एक निजी अस्पताल से डायलिसिस करवाकर घर लौटे थे। उनकी दिली इच्छा थी कि कथक नृत्य को सीखने और समझने के लिए एक संस्थान बने जहां युवा संगीत के इस विधा से परिचित हो को सकें। जिसे उन्होंने अपने जीवन में साकार किया। लखनऊ के अमीनाबाद स्थित बिंदादीन महाराज की ड्योढ़ी को उन्होंने कथक शोध संस्थान और संग्रहालय में बदल दिया था। इस संस्थान में पं. बिरजू महाराज के कथक नृत्य के कलाओं के विभिन्न प्रस्तुतियों की तस्वीरों सहेजी गयी हैं। युवा नृत्यकार यहां कथक की शैली को सीखने समझने के लिए आते हैं।


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