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बीएचयू के वैज्ञानिकों ने जांच के लिए लखनऊ भेजा वाराणसी का गंगा जल, हरे शैवालों का बढ़ना है चिंताजनक

गंगा में अचानक बढ़े हरे शैवालों के खतरे को देखते हुए बीएचयू के वैज्ञानिकों ने गंगा से एक ट्यूब पानी निकाल लिया है जिसे लखनऊ स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों को भेज दिया गया है। वहीं एक सप्ताह तक लगातार सैंपल लेकर लखनऊ भेजा जाएगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 27 May 2021 08:40 AM (IST)Updated: Thu, 27 May 2021 08:40 AM (IST)
बीएचयू के वैज्ञानिकों ने जांच के लिए लखनऊ भेजा वाराणसी का गंगा जल, हरे शैवालों का बढ़ना है चिंताजनक
वैज्ञानिकों ने गंगा से एक ट्यूब पानी निकाल जांच हेतु बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों को भेज दिया है।

वाराणसी, जेएनएन। गंगा में अचानक बढ़े हरे शैवालों के खतरे को देखते हुए बीएचयू के वैज्ञानिकों ने गंगा से एक ट्यूब पानी निकाल लिया है, जिसे लखनऊ स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों को भेज दिया गया है। वहीं एक सप्ताह तक लगातार सैंपल लेकर लखनऊ भेजा जाएगा।

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बीएचयू के न्यूरोलाजिस्ट प्रो. वीएन मिश्रा ने बीएचयू के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर यह सैंपल लेकर भेजा है। उन्होंने बताया कि दूसरा सैंपल गुरुवार को भेजा जाएगा। गंगा में सामनेघाट की ओर बुधवार रात में भी ये शैवालों का एक लेयर जमा है। वहीं ये ग्रीन एल्गी ब्लूम अब तो गंगा के दोनों छोर पर फैले हुए हैं। गंगा से जो पानी ट्यूब में भरा गया था वह पूरी तरह से हरे रंग का था।

यूट्रोफिकेशन प्रक्रिया में बनते हैं शैवाल

बीएचयू में इंस्टीट्यूट ऑफ एनवार्यनमेंट एंड सस्टनेबल डेवलपमेंट के वैज्ञानिक डॉ. कृपा राम ने बताया कि पानी में यूट्रोफिकेशन प्रक्रिया के होने से एल्गी ब्लूम वाली स्थिति आती है। यह तब होता है जब पानी में न्यूट्रिएंट (पोषक तत्व) काफी बढ़ जाते हैं। ये गैर-जरूरी सूक्ष्मजीवों की संख्या को बढ़ाते हैं जो कि हानिकारक है। डाॅ. राम ने बताया कि इतनी ज्यादा मात्रा में शैवाल तभी उगते हैं, जब न्यूट्रिएंट्स के साथ ही औसत से अधिक तापमान, सूर्य का प्रकाश और पारिस्थितिक तंत्र में ऊथल-पुथल हाेने के साथ ही जब पानी का बहाव कम होता है। उन्होंने बताया कि इससे बहुत भयभीत होने की जरूरत नहीं है। साफ-सफाई कर देने और बहाव बढ़ने पर ये पानी क साथ ही बह जाते हैं। डॉ. राम ने बताया कि न्यूट्रिएंट हमेशा ऊवर्रकों, जैविक खाद, सीवेज और जानवरों के वेस्ट से तैयार होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बारिश के बाद से गंगा में फास्फेट की मात्रा कहीं से बहकर एक जगह पर एकत्र हुई होगी। इससे शैवालों को प्रकाश संश्लेषण करने का सबसे उपयुक्त वातावरण मिलता है।


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