बीएचयू के रिसर्च ग्रुप को मिली बड़ी कामयाबी, खोजा जीका वायरस के मस्तिष्क में पहुंचने का कारक
बीएचयू के मॉलिक्यूलर बॉयोलाजी विभागाध्यक्ष व वायरोलॉजिस्ट प्रो. सुनीत कुमार सिंह और उनके रिसर्च ग्रुप ने मस्तिष्क में पहुंचने के कारक की पहचान कर ली है।
वाराणसी, [मुहम्मद रईस]। वर्ष 2015 में ब्राजील, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण-पूर्वी एशिया सहित दुनिया के करीब 86 देशों को चपेट में लेने वाले जीका वायरस ने बड़े-बुजुर्ग संग गर्भ में पल रहे शिशुओं को सर्वाधिक प्रभावित किया था। इसकी चपेट में आए शिशुओं के मस्तिष्क पूर्णरूप से विकसित नहीं हो सके। इससे बचाव के लिए अब तक कोई दवा नहीं बन सकी है। हालांकि, बीएचयू के वैज्ञानिकों ने जीका वायरस के मस्तिष्क में पहुंचने का कारक खोज इससे निजात की आस जगाई है। आइएमएस-बीएचयू के मॉलिक्यूलर बॉयोलाजी विभागाध्यक्ष व वायरोलॉजिस्ट प्रो. सुनीत कुमार सिंह और उनके रिसर्च ग्रुप ने मस्तिष्क में पहुंचने के कारक की पहचान कर प्रभावी रोगजनक क्षमता को समझने का रास्ता साफ कर दिया है। शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'बॉयोकेमी' के जुलाई-20 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
...तो ऐसे कमजोर हो जाता है ब्लड-ब्रेन बैरियर
शरीर के अन्य भागों के रुधिर संचरण तंत्र (ब्लड सर्कुलेटरी सिस्टम) से मस्तिष्क को अलग करने को एक अवरोध रूपी लेयर होती है। इसे वैज्ञानिक भाषा में ब्लड-ब्रेन बैरियर कहा जाता है, जो रक्त में घुले विभिन्न पदार्थों एवं शरीर की इम्यून सेल्स के मस्तिष्क में प्रवेश को नियंत्रित करता है। अनियंत्रित प्रवेश घातक सिद्ध हो सकता है। ब्लड ब्रेन बैरियर मस्तिष्क की एंडोथेलियल कोशिकाओं से बनी होती है। ये टाइट- जंक्शन प्रोटीन व अधेरेंस जंक्शन प्रोटीन द्वारा एकसाथ जुड़ी रहती हैं। यदि ये दोनों कम हो जाएं तो ब्लड-ब्रेन बैरियर कमजोर हो जाता है।
संक्रमित कोशिकाएं वायरल प्रोटीन एनएस- 1 का करने लगती हैं स्राव
जीका वायरस संक्रमण के बाद संक्रमित कोशिकाएं वायरल प्रोटीन एनएस- 1 का स्राव करने लगती हैं। हाल में किए गए शोध में प्रो. सुनीत कुमार सिंह ने पाया कि 'एनएस-1' प्रोटीन ब्लड ब्रेन बैरियर को कमजोर कर शिशुओं के मस्तिष्क में जीका वायरस के प्रवेश में मददगार होता है और माइक्रोसेफली का कारण बनता है। प्रो. सिंह के मुताबिक जीका के 'एनएस-1' प्रोटीन की वजह से टाइट-जंक्शन प्रोटीन व अधेरेंस जंक्शन प्रोटीन की अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) कम होने लगती है, जिससे मस्तिष्क में बहुत से इंफ्लेमेटरी (दाहक) तत्व क्रियाशील हो जाते हैं जो कि ब्लड ब्रेन बैरियर को तोडऩे में मदद करते हैैैं। शोध से जीका वायरस के मॉलिक्यूलर पैथोजेनेसिस (आणविक रोगजनन) की जानकारी मिलने के साथ ही उसके खिलाफ प्रभावी औषधि निर्माण में मदद मिलेगी।
एडीज मच्छर से फैलता है जीका
जीका वायरस मच्छरजनित वायरस है, जो एडीज मच्छर से फैलता है। यह वही मच्छर है जो डेंगू, चिकनगुनिया और येलो फीवर वायरस के संक्रमण का कारक बनता है। जीका वायरस के संक्रमण से शिशुओं में माइक्रोसेफली या वयस्कों में गुइलाइन बारे सिंड्रोम होता है। माइक्रोसेफली एक ऐसी स्थिति है जहां नवजात शिशुओं में मस्तिष्क का आकार असामान्य या अविकसित होता है। जीका वायरस का इंक्यूबेशन पीरियड दो से सात दिनों का होता है।
भारत में मिले थे 157 मामले
वर्ष 2015 में जीका वायरस संक्रमण के दुनियाभर में करीब 15 लाख मामले दर्ज हुए थे। इनमें से करीब 3500 से अधिक शिशुओं में माइक्रोसेफली के मामले थे। भारत में वर्ष 2018 में जीका संक्रमण के 157 मामले सामने आए। जीका वायरस के खिलाफ निश्चित एंटी वायरल व वैक्सीन नहीं है। वैक्सीन निर्माण प्रक्रिया परीक्षण के विभिन्न स्तरों पर विभिन्न देशों में जारी है।
जीका वायरस के लक्षण
जीका वायरस डेंगू बुखार की तरह होता है। जिसमें थकान, शरीर का तापमान का बढऩा, लाल आंखें, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द व शरीर पर लाल चकत्ते आदि लक्षण हैं। दवा न होने के कारण संक्रमण से पीडि़त लोगों को दर्द से आराम के लिए पैरासिटामॉल (एसिटामिनोफेन) दी जाती है।