लॉकडाउन का मिला फायदा, भारत में 40 फीसद कम हुआ सल्फर डाईआक्साइड का उत्सर्जन
कोरोना काल में भारत में सल्फर डाईआक्साइड के उत्सर्जन में 40 फीसद की कमी आई है। बनारस में सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर 30 जून को 40 दर्ज किया गया।
वाराणसी, जेएनएन। कोरोना के कारण लोगों को तमाम तरह की दुश्वारियां झेलनी पड़ रही है। जबकि इसके उलट इस कालखंड में पर्यावरण को काफी फायदा पहुंचा है। पिछले साल तक सल्फर डाइआक्साइड उत्सर्जन मामले में भारत सबसे आगे था। वहीं कोरोना काल में इसमें 40 फीसद की कमी आई है। यूरोपियन यूनियन कॉपरनिकस प्रोग्राम के तहत वैज्ञानिकों ने कॉपरनिकस सेंटीनल-5पी सैटेलाइट की मदद से विश्लेषण कर सैटेलाइट मैप जारी किया है। ग्रीन पीस की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल भारत सल्फर डाइआक्साइड उत्सर्जन मामले में अन्य देशों से आगे था। एसओ-2 वायु प्रदूषण का बड़ा कारक है। इससे स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की दिक्कतें होती हैं। साथ ही यह संवेदनशील ईको-सिस्टम को भी नुकसान पहुंचाता है।
अम्लीय वर्षा होने में भी एसओ-2 की बड़ी भूमिका
अम्लीय वर्षा होने में भी एसओ-2 की बड़ी भूमिका होती है। यूरोपियन यूनियन कॉपरनिकस प्रोग्राम के तहत कॉपरनिकस सेंटीनल-5पी सैटेलाइट पर लगे ट्रूपोमी इंस्ट्रूमेंट की मदद से वैज्ञानिकों ने वातावरण में कोरोना काल के दौरान सल्फर डाइआक्साइड की मात्रा का विश्लेषण किया है। इसके आधार पर जारी सैटेलाइट मैप में अप्रैल 2019 व अप्रैल 2020 में वातावरण में मौजूद सल्फर डाईआक्साइड की मात्रा का अंतर दर्शाया गया है। गाढ़ा लाल क्षेत्र व बैंगनी रंग एसओ-2 की अधिक मात्रा के लिए प्रयोग किया गया है, जबकि काला घेरा कोयला आधारित ताप विद्युत गृह के लिए है।
लॉकडाउन का मिला फायदा, प्रदूषण हुआ कम
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह के मुताबिक 10 जून को बनारस में सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर 66, 12 जून को 69, 25 जून को 39 व 30 जून को 40 दर्ज किया गया। इस तरह देखा जाए तो जून में एसओ-2 का औसत स्तर 55 के आसपास रहा। ज्ञात हो कि लॉकडाउन से पहले बनारस की प्रदूषित हवा में एसओ-2 का स्तर औसतन 90 के आसपास था।
एक दशक में दस गुना बढ़े श्वांस के मरीज
बीएचयू के टीबी एंड चेस्ट विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एसके अग्रवाल का कहना है कि वातावरण में एसओ-2 की मात्रा की मुख्य वजह औद्योगिक इकाइयां व डीजल वाहन हैं। पिछले 10-15 सालों में बाइक व कार की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है, वातावरण के लिए चिंताजनक स्थिति है। वायु प्रदूषण के कारण पिछले एक दशक में श्वांस संबंधी रोगियों की संख्या पांस से दस गुना तक बढ़ी है। लॉकडाउन प्रदूषण कम करने में वरदान साबित हुआ है। इस अवधि में हर तरह का प्रदूषण कम हुआ, जो निश्चित ही श्वांस रोगियों के लिए राहत भरी बात है। बीएचयू के इंटर्नल क्वालिटी एश्योरेंस सेल कोआर्डिनेटर प्रो. बीके सिंह ने बताया कि यूरोपियन स्पेश एजेंसी ने वातावरण की स्थिति का वैश्विक आंकलन करने के लिए यह विश्लेषण कॉपरनिकस सेंटीनल-5पी सैटेलाइट पर इंस्टाल ट्रूपोमी इंस्ट्रूमेंट की मदद से तैयार किया है।