Bank strike : बंदी के कारण बैंकों के नहीं खुले ताले, एटीएम खाली होने से लोग हुए परेशान
निजीकरण के खिलाफ बैंक कर्मियों की दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल के पहले दिन सोमवार को जनपद में भी काफी असर दिखाई दिया। बैंकों के ताले बंद रहे। इससे खाताधारकों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। हड़ताल से करोड़ों के कारोबार पर असर पडऩे का दावा किया गया।
बलिया, जेएनएन। निजीकरण के खिलाफ बैंक कर्मियों की दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल के पहले दिन सोमवार को जनपद में भी काफी असर दिखाई दिया। बैंकों के ताले बंद रहे। इससे खाताधारकों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। हड़ताल से करोड़ों के कारोबार पर असर पडऩे का दावा किया गया। वहीं इससे दो दिन पहले भी बैंक बंद थे। ऐसे में खाताधारकों की परेशानी बढ़ गई। एटीएम भी खाली होने से कैश के लिए लोग इधर-उधर भागते रहे। बैंक कर्मियों ने सभा व जुलूस के माध्यम से प्रदर्शन किया। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में भी यही हाल रहा
सरकार के फैसले को बताया गलत
बैंक कर्मियों की युनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियन के आह्वान पर सोमवार को यूपी बैंक इंपलाइज यूनियन के बैनर तले बैंक कर्मियों ने अपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन किया। बैंक कर्मियों ने कहा कि सरकार का सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का फैसला गलत है। किसानों, लघु बचतकर्ताओं, पेंशनभोगियों, छोटे एवं मध्यम आकार के उद्यमियों, व्यापारियों, स्वारोजगारियों, विद्यार्थियों, महिलाओं, कर्मचारियों व देश की 95 फीसद जनता के हितों के लिए यह हड़ताल है।
लेन-देन की दिक्कतों का था तीसरा दिन
नगर में एटीएम भी खाली हो गए थे। इस वजह से लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेनदेन की दिक्कतों का यह तीसरा दिन था। 13 मार्च को माह का दूसरा शनिवार था। 14 मार्च को रविवार होने की वजह से बैंक बंद रहे। अब 15 और 16 मार्च को दो दिवसीय हड़ताल के कारण कुल चार दिनों तक बैंक का कार्य प्रभावित होगा। शहर में यूएफबीयू के संयोजक केएन उपध्याय की अध्यक्षता में हुए प्रदर्शन में अशोक यादव, ब्रजेश द्विवेदी, पुनीत कुमार श्रीवास्तव, राजेश अग्रवाल, आनंद मिश्रा, आरके ङ्क्षसह, अमित ङ्क्षसह, चंद्रशेखर सिंह आदि शामिल रहे।
हड़ताल में छाए रहे ये मुद्दे
ग्रामीण शाखाओं का बंद होना और बैंकों का अधिक शहर उन्मुखीकरण। सार्वजनिक बचत के लिए अधिक जोखिम, लघु बचत योजनाओं पर ब्याज में कमी और सेवानिवृत्ति, वरिष्ठ नागरिकों पेंशन भोगियों की आय में कमी। कृषि ऋणों में कमी, सीमांत और छोटे किसानों को कृषि कार्य से बेदखल करना। छोटे और मध्यम व्यापारियों को ऋण लेने में कठिनाई। विद्यार्थियों के शिक्षा ऋण में कमी। बुनियादी ढ़ांचे व जनोन्मुखी विकास के लिए ऋण में कमी। कारपोरेट एवं बड़े घरानों को सस्ता एवं अधिक ऋण। बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर कम। स्थायी नौकरियों पर हमला और अनुबंध नौकरियों पर ठीकेदारों का कब्जा। ग्राहकों के लिए अधिक सेवा शुल्क आदि मुद्दे छाए रहे।