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बनारसी साड़ी की पहचान हथकरघा से है न कि पावरलूम से, बनुकरों को नहीं मिल रहा न्याय

काशी के हथकरघा द्वारा वस्त्र निर्माण का इतिहास वर्षों पुराना है। भगवान श्रीराम के जन्म व विवाह भगवान बुद्ध के जन्म व मृत्यु के समय काशी के बने वस्त्रों का उपयोग हुआ था।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 07 Sep 2020 06:40 PM (IST)Updated: Mon, 07 Sep 2020 06:40 PM (IST)
बनारसी साड़ी की पहचान हथकरघा से है न कि पावरलूम से, बनुकरों को नहीं मिल रहा न्याय
बनारसी साड़ी की पहचान हथकरघा से है न कि पावरलूम से, बनुकरों को नहीं मिल रहा न्याय

वाराणसी, जेएनएन। काशी के हथकरघा द्वारा वस्त्र निर्माण का इतिहास वर्षों पुराना है। भगवान श्रीराम के जन्म व विवाह, भगवान बुद्ध के जन्म व मृत्यु के समय काशी के बने वस्त्रों का उपयोग हुआ था। महाभारत काल में भी इसका जिक्र आता है। संत कबीर के द्वारा हथकरघा वस्त्र निर्माण का विवरण इतिहास के पन्नों में सुरक्षित है, लेकिन हमारे पूर्वजों की इस थाती हथकरघा को पावरलूम ने नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह कहना है लघु उद्योग भारती संघटन काशी के अध्यक्ष राजेश कुमार सिंह का। वे कोटवा लोहता में संघटन से जुड़े बुनकर व हस्तशिल्पियों के साथ हुई प्रांत की बैठक में बोल रहे थे।

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सिंह ने बताया कि बनारसी साड़ी देश विदेश में प्रसिद्ध है, लेकिन असली बनारसी साड़ी हथकरघा से ही बनी होती है। इसको जीआई मार्क भी प्राप्त है। पावरलूम से तो सूरत, चीन या दुनिया के किसी भी कोने में साड़ी बनाई जा सकती है। लेकिन वह कभी भी बनारसी साड़ी नहीं होगी। पावरलूम से बनी साड़ी को हथकरघा से बनी साड़ी बताकर खुलेआम बेचा जा रहा है। जबकि इसपर प्रतिबंध है। संघटन के बुनकर सदस्य सर्वेश श्रीवास्तव ने बताया कि बनारस की असली पहचान हथकरघा है। ये असंगठित अल्प अथवा अशिक्षित बुनकरों द्वारा संचालित होने के बावजूद जीएसटी के जंजाल में फंसा दिया गया। अपने हथकरघा पर बुनाई करने वाले कलाकार यानी बुनकर को आज दूसरों द्वारा संचालित पावरलूम पर मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सरकार की जो भी योजना आती है वह पावरलूम के लोगों को मिलती है। हथकरघा बुनकरों के लिए कोई भी योजना धरातल पर नजर नहीं आती है। पावरलूम खरीदने के लिए सरकार अनुदान देती है। साथ ही पावरलूम चलाने के लिए सरकार बिजली में छूट देती है। बावजूद इसके इस छूट का जमकर दुरुपयोग किया जाता है।

पावरलूम के नाम पर बिजली का दूसरे यंत्र चलाए जाते है। बहुत से लोग फर्जी बुनकर कार्ड बनवाकर, ईमानदार बुनकरों का हक लूट रहे है, जिसकी जांच होनी चाहिए। बुनकर गोपाल पटेल ने बताया कि बनारस का हथकरघा वस्त्र उद्योग जो कि कुटीर उद्योग की श्रेणी में आता है। इसके कारीगर अथवा बुनकर जिन्हें कुशल कलाकार की श्रेणी में होकर तमाम सम्मान प्राप्त होने चाहिए वो आज गरीब मजदूर की श्रेणी में गिने जाते हैं। इसकी मुख्य वजह इनका अल्प अथवा अशिक्षित होना है। बनारस अथवा बनारस की कारीगरी के उत्थान के लिए कुछ करने के लिए वास्तव में जमीनी स्तर पर काम करना होगा, ना कि लाल फीताशाही के रिपोर्टों व डाटाबेस के चोंचलों से। अध्यक्ष राजेश कुमार ङ्क्षसह ने कहा कि प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के वोकल फॉर लोकल, आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत लघु उद्योग भारती संघटन, काशी प्रांत हथकरघा बुनकरों एवं कुटीर उद्योग के कारीगरों के लिए संबंधित विभागों से संपर्क कर सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाएगा। बैठक में बुनकर मुबारक अली, नूरुद्दीन,  करीम, सलीम, मकसूद, गोपाल पटेल, राम दास आदि ने अपनी बात रखी।


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