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वित्तीय अनियमितता के दोषी प्रोफेसर से दो माह बाद हटा प्रतिबंध, कुलपति बीएचयू ने चेतावनी के साथ वापस लिया आदेश

अभी दो माह पहले ही वित्तीय अनियमितता में तीन वर्ष के लिए प्रतिबंधित किए गए प्रोफेसर को कार्यवाहक कुलपति ने चेतावनी देकर प्रतिबंध मुक्त कर दिया। एफएफसी की रिपोर्ट में उन्हें दोषी पाने के बाद कुलपति ने बीते 27 नवंबर को उनके विरुद्ध असंबद्धता की कार्रवाई की थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 25 Nov 2021 07:10 AM (IST)Updated: Thu, 25 Nov 2021 07:10 AM (IST)
वित्तीय अनियमितता के दोषी प्रोफेसर से दो माह बाद हटा प्रतिबंध, कुलपति बीएचयू ने चेतावनी के साथ वापस लिया आदेश
कुलपति बीएचयू ने चेतावनी के साथ वापस लिया आदेश

जागरण संवाददाता, वाराणसी : अभी दो माह पहले ही वित्तीय अनियमितता में तीन वर्ष के लिए प्रतिबंधित किए गए प्रोफेसर को कार्यवाहक कुलपति ने चेतावनी देकर प्रतिबंध मुक्त कर दिया। आरोप सामने आने के बाद निदेशक की अध्यक्षता में गठित तथ्य खोज समिति (एफएफसी) की रिपोर्ट में उन्हें दोषी पाने के बाद कुलपति ने बीते 27 नवंबर को उनके विरुद्ध असंबद्धता की कार्रवाई की थी। मामला कृषि विज्ञान संस्थान के डेयरी विज्ञान और खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग का है।

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विभाग के प्रोफेसर अनिल कुमार चौहान पर आरोप था कि उन्होंने सीएफएसटी के समन्वयक की हैसियत से स्वीकृत बजट से अधिक खर्च किया था। 24 लाख की बजाय 33 लाख रुपये के खर्च और खरीदे गए सामानों की कीमत भी तीन से चार गुना अधिक पाई गई थी। एफएफसी ने इसे वित्तीय विवेक की कमी बताते हुए पाया कि उन्होंने प्रयोगशाला उपभोग्य सामग्रियों की खरीद पर कोई राशि खर्च नहीं की, जिसके लिए बजट बनाया गया था और जो छात्रों के अध्ययन के लिए आवश्यक हैं। इसके बजाय कुछ अन्य सामान खरीदे गए। इसके लिए 12 अक्टूबर 2020 को उन्हें कारण बताओ नोटिस दी गई।

समिति की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद बीते 27 सितंबर को कुलपति ने आदेश दिया कि प्रो. अनिल कुमार चौहान को अगले तीन वर्षों में वित्तीय खर्चों से संबंधित कोई प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए। अब बीते 23 नवंबर को कुलपति वीके शुक्ल के आदेश के हवाले से संयुक्त रजिस्ट्रार द्वारा जारी पत्र में प्रो. चौहान के विरुद्ध दो माह पूर्व जारी प्रतिबंध पत्र को वापस ले लिया गया है। प्रो. चौहान को इस तरह के मामले में भविष्य में और सावधान रहने को कहा गया है। मुझ पर लगाए गए सारे आरोप मिथ्या थे। मैंने जो भी खरीदारी की थी, उसकी पूर्व संस्तुति विभागाध्यक्ष ने स्वयं दी थी। उनके बिना अप्रूवल के कोई खरीदारी नहीं हुई थी। मैंने अपने विरुद्ध निर्णय आने के बाद सभी साक्ष्य कुलपति महोदय के सामने प्रस्तुत किया। उसे देखते हुए कुलपति महोदय ने मेरे विरुद्ध जारी कार्रवाई पत्र को वापस लेते हुए मेरे साथ न्याय किया है।


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